पर्व मुबारक हो
भ्राता तुमको॥
भातृ-भगिनी
का प्रेम पगा रिश्ता
जग से न्यारा॥
थाली में सजी
रोली अक्षत राखी
मधु मिठाई॥
आशीष यही
मस्तक पर रोली
सजे हमेशा॥
रक्षा तुम्हारी
सदा करे ये डोरी
यही कामना॥
नभ से ऊँचा
सिंधु से गहरा ये
बंधन होगा॥
परिचय : १९८९ में जन्मी गुंजन गुप्ता ने कम समय में ही अच्छी लेखनी कायम की है। आप प्रतापगढ़ (उ.प्र) की निवासी हैं। आपकी शिक्षा एमए द्वय (हिन्दी,समाजशास्त्र), बीएड और यूजीसी ‘नेट’ हिन्दी त्रय है। प्रकाशित साहित्य में साझा काव्य संग्रह-जीवन्त हस्ताक्षर,काव्य अमृत, कवियों की मधुशाला है। कई पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएँ प्रकाशित होती हैं। आपके प्रकाशाधीन साहित्य में समवेत संकलन-नारी काव्य सागर,भारत के श्रेष्ठ कवि-कवियित्रियां और बूँद-बूँद रक्त हैं। समवेत कहानी संग्रह-मधुबन भी आपके खाते में है तो,अमृत सम्मान एवं साहित्य सोम सम्मान भी आपको मिला है।