कहीं किसी ने मेरी रचनाओं को पढ़कर कहा-`खूब परी-कथाएं लिखिएl`
`क्या गलत करती हूँ जो,
हर तरफ लगी साम्प्रदायिकता की आग पर,
मैं कुछ कोमल कल्पनाओं की
हल्की फुहार डाल,तपिश को
कम करने की कोशिश करती हूँ?
क्या ग़लत करती हूँ जो,
इस प्रतियोगिता के दौर में,
मैं कुछ मधुर-मिलन की चांदनी रात्रि
की ज्योत्सना बिखरने की कोशिश करती हूँ?
क्या गलत करती हूँ,जो बिना बारिश
के फटती ज़मीन के दर्द को,सावनी
कजरी से पाटने की कोशिश करती हूँ?
क्या गलत करती हूँ,जो बारिश में ढह
स्वप्न महलों की नींव से गढ़ती हूँ?
क्या गलत करती हूँ जो धर्म के नाम पर,
इंसानियत को काटने वाले खंजर
के जख्मों को प्रेमगीत के मोर पंखों से
सहलाने की कोशिश करती हूँ ?
क्या गलत करती हूँ,जो नारी मन
को रौंदकर गुजरते क्रूर सामाजिक
अश्वारोहियों की दमघोंटू धूल से बचने
के लिए,नारी स्वाभिमान का
सांस लेता आसमान देखने की कोशिश
करती हूँ?
आप ही बताइए,हर तरफ फैली विद्रुपताओं,
कुप्रथाओं,जटिलताओं से कुछ पल के लिए
लिखने की कोशिश करती हूँ,तो मैं
क्या गलत करती हूँ????
#लिली मित्रा
परिचय : इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर करने वाली श्रीमती लिली मित्रा हिन्दी भाषा के प्रति स्वाभाविक आकर्षण रखती हैं। इसी वजह से इन्हें ब्लॉगिंग करने की प्रेरणा मिली है। इनके अनुसार भावनाओं की अभिव्यक्ति साहित्य एवं नृत्य के माध्यम से करने का यह आरंभिक सिलसिला है। इनकी रुचि नृत्य,लेखन बेकिंग और साहित्य पाठन विधा में भी है। कुछ माह पहले ही लेखन शुरू करने वाली श्रीमती मित्रा गृहिणि होकर बस शौक से लिखती हैं ,न कि पेशेवर लेखक हैं।