म्हारे देश में
आपणी-आपणी कहानी
सुणावै सै
अर अपने रोले-रोवै सै
मेरे ढब्बी ब्होत घणे
थे उन में तै एक
मेरा घणा प्यारा ढस्बी
जो आज मेरे बीच में ना सै
जो कदे भी लौटे कोनी आवै
उसका कै नाम, सै
उसका मेरे साहसी नाम ना लेवो
वो तो मेरे भीतर दिल में बैठा सै
वो लिकड़ कोन्याी
क्यू प्यारा इतना था मेरा ढब्बी
उसनै तो मेरे भीतर रहण दै
कदे वो बण कै राख
हवा के गेल्या उड़ ज्या
कदे बिखेर न दे मेरे ढब्बी की
यादां नै
म्हारे दिल मै रहण दे उसकी
याद नै ना घाव होने म्हारे
दिल में ना होण दे छेद दिल मे
मेरे प्यारे प्यारे गरीबी तै
झुलसन आलै आदमी
गौर तै ध्यान लगा कै
सुन ल्यो
मन्नै थारी ये चिन्ता घणी सै
क्यू इस भीड मैं थारी
कोए गिणती ना
मैं भी योह सोचू सूं
कदे उस मेरे ढब्बी का
नाम भी भूल ज्याउ
इस भीड़ मैं
मन्ने डर सै कदे
हाम ना भूल ज्यावां
उस जाडे़ की इस बरसात
अर आंधी के मौसम
नै जो आज भी मेरे
भीतर घाव पैदा करै सै
मन्नै भय सै
उसकी उम्र तै
एक ऐसी कली जिसकी बरसात
तक याद नहीं
कदे चान्दनी रात मैं
महबूबा के संग
प्यार भरा गीत नहीं गाया
कदै महबूबा का गीत नहीं सुना
वह अपनी महबूबा प्रेमिका
की तलाश खातर
घणा लम्बा इंतजार नहीं करणा पड़या
उसके ना की तो घड़ी की
सूई तक रूक गई थी
असफल हुए सै उसके हाथ
जो उसकी
दिवारों के पास नहीं पहोंचे
उन खातर उनकी आंखा में
अनेक इच्छाओ की किरण
थी जो आज तक अर
अभी तक नहीं डूबी थी
वह किसी लडकी को
चूम नहीं सका
छू नहीं सका
वह नाही कर पाया
किसी के साथ ईश्क
उसने आपणी जिन्दगी में
दो बार ही भरी आहे
एक तो हमेशा लड़की खातर
पर उस पर की उसनै
वादे खासा ध्यान नहीं दिया
वह अभी बहुत छोटा
था उसे आस थी
उसने आपणे
उम्मीदों में रास्ता खोजण की
म्हारे देश मे
बस आपणी आपणी रागनी
गावै सै
जद वो दूर चला गया तो
उसकै मां तै बिदा ना ली
अर ना आपणे
ढब्बी तै मिलां
किसी से उसनै कुछ नी कहां
ना ही उसनै कुछ शब्द बोले
एक शब्द भी नहीं
वह डर सा गया था
कि उसकी बूढ़ी मां
उस खातर लम्बी
रातां नै आसान करण
की सोचे सै
जो आजकल
अफसोस तै बात करती
रहवे
उसकी चीजा नै
कदे अलमारी तै
कदे खाट के तकीये के नीचे से
कदे उसके सूटकेस तै
चीजा नै देख्या सै
उस नै देख कै वो बेचैन
सी होज्या सै
अर कहवै सै
अरी ओ रात
ओ सितारा
ओ खुदा
ओ बादल
कदे तामनै मेरी उड़ती चिडि़या
को देख्या सै
मां की आख्ये चमकते सितारे
की भांति रहवै सै
हाथ उसका फूला की डाली पै
अर उसके दिल में चांद, सितारे
भरे पडै सै
अर उसके केश हवाओं में
फूलो की तरह झूला बनकर
झूल रहै सै
क्या तुमनै उस राहगीर
मुसाफिर शरणार्थी की
देख्या सै
जो अभी भी यात्रा करण
खातर तैयार नहीं सै
वह अपना खाणा लिये बगैर चल्या गया
कौन खिलावगा उसने खाना
क्यूकर मिटेगी उसकी भूख
कोण देगा साथ उसका
रास्ते में
जो अनजान बनकर
खतरों के बीच
खड़ा सै मेरा लाल
अरी ओ रात
ओ सितारे
ओ गलियां
ओ बादल
कोए तो उसने जोकै कह दो
कहवै सै के म्हारे पास
इसका कोए जवाब कोन्या
ब्होत घणा बड़ा से
यू जख्म, घाव
आंसूओं से
दुखों सै
अर कष्टों से
नहीं बरदाश्त कर पावेगी
तुम मेरी सच्चाई
क्योकि तेरा बच्चा मर
चुका सै
ऐसे आंसू मत बहाओ
क्योकि आप अपने
आंसू बचाकर रखो
शाम के लिए
कल के लिए
जद सड़का पै मौत ए
मौत नजर आवेगी
उस बख्त खातर
जद ये भर जावेगी
तुम्हारे बेटे जैसे राहगीर
की तरह
तब तुम अपने आंसू
पोछ डालो
अर एक स्मृति चिहन की
तरह उन आंसुओं नै
सम्भाल के धर द्यो
क्योंकि वो कुछ एक
आंसु अपने प्रिय जन
की स्मृति चिहन की तरह
बचाकर रखना
जो पहले ही मर चुके सै
मां तु आपणे आंसु ना बहावै
इन्ने बचाकै रख
कल खातर खातर
शाम खातर
क्योंकि इन आंसुओं की
जरूरत मेरे बाप नै
भाई नै
अर बहन नै
अर दोस्त नै
भी पड़ सकै सै
इस काम खातर
मां आपणे आंसू बचाकर रख
कल खातर
म्हारे लिए
समाज के लिए
म्हारे देश मैं
लोग मेरे दोस्त के बारे
में ब्होत घणी ये बात करै सै
कैसे वह गया
क्यूकर गया
क्या वह लौटकर आवेगा
कैसे उसने आपनी जवानी खोयी
गोलियां की बोछार नै
उसके चेहरे को
अर छाति को बींध कै
रख दिया
बस मत कहना
मैंने उसका घाव/जख्म
देख्या सै
उसका असर आज भी दिखै सै
कितना बड़ा था वो
जख्म
मैं अपने दूसरों बच्चां
खातर सोचूं सूं
अर हर उस औरत खातर
जो बच्चा अर गाड़ी ले के
चल रही सै
ढब्बीयों यू मत पूछो
यह कब आवेगा
बस यू ही पूछो कि
म्हारे देश के
लोग कब जांगेंगे
कब उठेंगे।
कब उजियारा होगा।
खान मनजीत भावडिया मजीद