राष्ट्र की सम्पूर्ण संकल्पना, उसके होने का मतलब, उसकी कार्ययोजना, उसकी संस्कृति, उसकी भाषा, लोकव्यवहार और आचरण सबकुछ उसके निवासियों की जागृत मेधा से उन्नत है।
और इन्हीं की चिंता और संगठनात्मक परिचय से मिलकर शब्द बनता है राष्ट्रवाद ।
राष्ट्रवाद शब्द में पहले पायदान पर राष्ट्र आता है, उसके बाद उसकी विचारधारा या कहें वाद का स्थान है।
अथर्ववेद में लिखा है ‘वयं तुभ्यं बलिहृत: स्याम’ जिसका अर्थ है- हम सब मातृभूमि के लिए बलिदान देने वाले हों यही भाव किसी राष्ट्र की उन्नति के कारक तत्व में निहित होना चाहिए।
आज राष्ट्रवाद के नाम पर राजनीति, विचारधारा या कहें बचकानापन जो सामने आ रहा है वह संकल्पना ही घातक है।
आज राष्ट्र की आवश्यकता है, इसमें रहने वाले राष्ट्रवासियों का जागृत होना है।
हम सोए सिंहों की भाँति जंगल में रह तो रहे हैं पर अपने कर्त्तव्यों के प्रति सजग नहीं, न ही अधिकारों के प्रति जागरुक।
इसी का फ़ायदा वो ताकते उठाने लगी हैं, जो चाहती हैं भारत की अवनति।
अब हमें मार्ग चुनना है जिसमें राष्ट्र निहित हो या वो जिसमें राष्ट्र का बुरा निहित।
आज तकनीकी का भलीभाँति उपयोग करके हम कैसे अपने राष्ट्र को विश्व गुरु बना सकते हैं, उस मार्ग पर चलना ही हमारे लिए भी हितकारी है और राष्ट्र के लिए भी।
क्योंकि सवा सौ करोड़ हिंदुस्तानियों तक कम समय में पहुँचने का सबसे कारगार मंच तकनीकी और सोशल मीडिया है।
इसका सार्थक उपयोग करके हम स्वर्णिम राष्ट्र की संकल्पना को साकार कर सकते हैं और भारत को पुनः विश्व गुरु बना सकते हैं।
कैसे करें सोशल मीडिया का उपयोग
- ख़ूब पढ़ें, ग्रंथों का अध्ययन करें, देश की अवधारणा को समझें, उस पर टिप्पणियाँ लिखें, फिर फेसबुक, ट्विटर, न्यूज़ पोर्टल, अन्तरतानों पर प्रसारित करें।
- ज़्यादा से ज़्यादा राष्ट्रवादी लोगों के माध्यम से जागरुकता फैलाएं।
- देश की शिक्षा नीति, भाषा नीति, विज्ञान, तकनीक, वित्त, रक्षा नीति पर अध्ययन करके जागरुक लोगों की राय प्राप्त कर नीति निर्धारक तत्वों तक उन सुझावों को पहुँचाएं।
- एक घंटा देह को, एक घंटा राष्ट्र को और एक घंटा हिंदी भाषा को दीजिए, क्योंकि हिंदी ही एकमात्र ऐसी भाषा है जिसके माध्यम से सम्पूर्ण राष्ट्र को पुनः जोड़ा जा सकता है और सांस्कृतिक विखंडन से राष्ट्र को बचाया जा सकता है।
- राष्ट्र के विभिन्न मुद्दों पर जनता को जागरुक करें, उन विषयक साहित्य या आलेखों को प्रचारित प्रसारित करके जागरुकता का संचार करें।
प्रथम चरण में इतने भी काम यदि हमने शुरू कर दिए तो यकीन मानिए एक दशक में हमारा भारत विश्वगुरु बन जाएगा।
-डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’
हिन्दीग्राम, इंदौर