गली का गुंडा

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कभी गली का गुंडा हुआ करता था हरेराम । एक दिन नेताजी के कार्यक्रम में पूडी-सब्जी खाने के लिये चला गया और फिर उसी दिन से हरेराम नेताजी की पार्टी का कर्मठ कार्यकर्ता बन गया । अब हरेराम के गले में पार्टी का गमछा होता और माथे पर एक हाथ लंबा तिलक । नेताजी का खासमखास हरेराम दिन दूनी, रात चौगुनी उन्नति करते-करते शहर का सबसे बड़ा उभरता युवा नेता बन गया ।

चुनावों का सीजन आ गया । हरेराम ने विधायकी की टिकट हेतु पार्टी मुखिया के मुंह पर एक करोड़ दे मारे… रातों-रात हरेराम के शहर भर में पोस्टर, बैनर लग गये । लूटमार से इकट्ठा की गई अपार दौलत चुनावी प्रचार में खर्च होने लगी ।

चुनाव का परिणाम आया । हरेराम भारी मतों से विजयी हो गये । अब हरेराम गली के गुंडे से सम्मानीय विधायक हो गया । राजनीति में दबदबा तो पहले से ही था, इसीलिए विधायक से सीधे मंत्री भी बन बैठा ।

मंत्री बनने के बाद भी हरेराम का पेट न भरा । अकूत दौलत कमाने के लालच में दुनिया का ऐसा कोई गैरकानूनी काम नहीं था जो उसने किया न हो । विकास करते -करते एक दिन विकास का परिणाम निकला । हरेराम को ब्लड कैंसर हो गया, लीवर -किडनी एक साथ फेल हो गए और हरेराम का राम नाम सत्य हो गया…। हरेराम की मौत पर किसी ने दो आंसू तक न बहाये, फिर भी राजनीति के क्षेत्र में शोक की लहर दौड़ गयी ।

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा
आगरा, उत्तर प्रदेश

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