दौलत – शौहरत और ऐशो – आराम की जिंदगी व्यतीत करने वाली रेखा अपने दो बच्चों के साथ फुटपाथ पर बैठी आंसुओं के समंदर में गोते लगा रही थी । भूख से बिलखते बच्चे और दाने – दाने को मोहताज रेखा दर – दर की ठोकरें खाने को मजबूर थी । समाज के ताने ने उसकी जिंदगी को और अधिक बेचारगी में तब्दील कर दी थी । आज उसके मां – बाप भी उसे अपने साथ रखने को तैयार नहीं थे । वह पश्चाŸााप की अग्नि में झुलस रही थी , पर इस तपिश से ठंडक दिलाने वाला भी कोई नहीं था ।
उसके जीवन में सदैव साथ निभाने वाला उसका प्रेमी देवर भी उसे छोड़ चुका था । वह अपने देवर की दौलत की चका चैंध में इस प्रकार खो गयी थी कि उसकी आंखों के आगे दौलत के सिवा कुछ नजर ही नहीं आ रहा था । दौलत की लालसा ने ही उसे अपने पति को छोड़ देवर के साथ भागने पर मजबूर कर दिया । उसका पति विकास दूसरी शादी कर अपना घर बसा चुका था ।
लोगों के घरों में काम कर अपने बच्चों की परवरिश करने को मजबूर रेखा को लोग बुरी निगाहों से देखते थे । लेकिन वह तो अपना सब कुछ लुटाकर वह अपने बच्चों की परवरिश करने के लिए मजबूर थी और इंसान के शक्ल में भेड़ियों से बचने का प्रयास कर रही थी ।
आज उसे विकास याद आ रहा था । वह बीते दिनों की बातें याद करने लगी।
जब वह नई नवेली दुल्हन बनकर विकास के घर आयी थी । घरवालों ने उसे सिर – आंखों पर बिठा लिया था । सास तो मानों उसे बेटी की तरह मानती थी । विकास का तो कहना ही क्या ? वह तो सारा दिन रेखा के आगे – पीछे मंडराया करता था । उसका देवर केशव भी उसके रूप – रंग देखकर उसके सौंदर्य पर मुग्ध हो गया । यही कारण था कि केशव उसके आसपास मधुमक्खी की तरह मंडराया करता था । केशव की दौलत और उसके इस प्रकार रेखा के आगे – पीछे मंडराना उसे अपनी ओर आकर्षित कर रहा था । उसका पति विकास बेरोजगार था , तो वहीं उसका देवर केशव कमाने वाला था । केशव रूपयों से मालामाल था । वहीं विकास पैसे – पैसे को मोहताज रहता था । लेकिन उसकी मां उसे पैसो से मोहताज नहीं होने देती । वह बराबर विकास को पैसे देती रहती । इतना होने के बावजूद भी विकास रेखा की हर जरूरत को पूरा करने का प्रयास करता । लेकिन धीरे – धीरे उसके वैवाहिक जीवन में कड़वाहट आनी शुरू हो गयी । विकास रेखा से दूर होता जा रहा था , तो केशव से उसकी नजदीकियां बढ़ती ही जा रही थी । इस प्रकार रेखा के वैवाहिक जीवन के पांच वर्ष पूरे हो गये । रेखा दो बच्चों की मां बन गयी । फिर भी उसके व्यवहार में कोई अंतर नहीं आ रहा था । वह दिन पर दिन अपने देवर केशव के मोहजाल में फंसती ही जा रही थी । केशव भी उस पर पानी की तरह रूपये लुटा रहा था । रेखा और केशव के इस गलत आचरण को देखकर विकास के माता – पिता काफी व्यथित थे कि उनकी अपनी ही बहू घर की खुशियों में ग्रहण लगा रही थी । केशव अविवाहित था । इन दोनों के प्रेम से घर का माहौल दूषित हो रहा था । घर में रोज लड़ाई – झगड़े होने लगे । विकास जब भी रेखा को केशव से दूर रहने को कहता , तो वह कहती – ” तुम लोग जान बूझकर मेरे चरि.त्र पर अंगुली उठा रहे हो । मेरा तुम्हारा भाई से कोई संबंध नहीं है । क्या देवर भाभी में हंसी – मजाक करना गुनाह है ? तुम लोग बेकार में बात को तूल दे रहे हो । आखिर तुम कमाते ही क्या हो ? सारा दिन घर में निठल्ले बैठे रहते हो । तुम्हारे इस प्रकार बेकार बैठे रहने से क्या मेरी जिंदगी सुखमय हो सकती है ? यदि तुम मेरी जरूरतों को पूरा नहीं कर सकते हो , तो तुम्हारा भाई मेरी जरूरतों को पूरा कर देता है ; इसमें क्या बुराई है ? “
विकास रेखा को समझाते हुए कहता है – ” रेखा , तुम दौलत की भूखी हो । दौलत की भूख ही इंसान को गलत रास्ते पर चलने को मजबूर कर देती है । आज तुम उसी रास्ते पर चल पड़ी हो , जिसका भविष्य अंधकारमय है । तुम रेत से महल तैयार कर रही हो , जो एक दिन भरभरा कर ढह जाएंगा । तुम्हारे कहने का मतलब यही है न कि मैं बेकार बैठा इंसान हूं । आज सारे देश में मेरे जैसे न जाने कितने युवा है जिनकी स्थिति बद से बदतर है । नौकरियां पेड़ पर नहीं उगती कि जाओ और तोड़ लो । सारे देश में बेरोजगारों की फौज खड़ी है । रोजगार के अवसर खत्म होते जा रहे हैं । सारा देश बेकारी और महंगाई से त्रस्त है । मैं कहीं न कहीं कोई काम खोज ही लूंगा । लेकिन तुम दौलत के लालच में अपनी और केशव की जिंदगी के साथ खेल रही हो । बाद में बहुत पछताओगी । तुम्हारे आंसू भी पोंछने वाला कोई नहीं होगा । अब भी समय है अपने आपको सुधार लो । दौलत ही सब कुछ नहीं है । जीवन में संघर्षशील बनो । वरना यह दौलत का नशा तुम्हें कहीं का नहीं छोड़गा । “
लेकिन रेखा तो दौलत की चकाचैंध में ऐसी खोयी थी कि उसे आगे – पीछे कुछ नजर नहीं आ रहा था । रेखा विकास की बातों पर कोई ध्यान नहीं देती थी । वह तो अपनी ही दुनिया में मस्त रहती थी और उधर विकास घुटन भरी जिंदगी जीने को मजबूर था ।
एक दिन विकास किसी काम से बाहर गया हुआ था । घर के लोग सो चुके थे । विकास देर रात घर आया । रेखा को अपने कमरे में न पाकर बच्चों से पूछा – ” रेखा कहां है ? “
बड़ी बेटी ने सहमे स्वर में कहा – ” अंकल के कमरे में । “
विकास शीघ्र अपने कमरे से निकल केशव के कमरे की ओर लपका । देखा कमरे का दरवाजा खुला है । वह जैसे ही कमरे के भीतर प्रवेश किया । वहां का दृश्य देखकर दंग रह गया । वे दोनों एक – दूसरे की बांहों में झूल रहे थे ।
रेखा विकास को देखकर अपने आपको केशव से अलग कर अपने कपड़े को ठीक करने लगी । विकास क्रोधित स्वर में बोला – ” रेखा , अब तुम क्या कहना चाहती हो । मेरा तो शक पहले से ही था कि तुम मुझे धोखा दे रही हो । रेखा ! अब मैं तुम्हें एक पल भी अपने साथ नहीं रख सकता । बेवफा औरत अब तुम मेरी जिंदगी से दूर चली जा । “
इस पर रेखा चीखते हुए बोली – ” हां , हां , मैं केशव से प्यार करती हूं । मैं केशव के बगैर नहीं रह सकती । हां , मैं दौलत की पुजारिन हूं । तुम जैसे निक्कमें और भिखारी के साथ मैं अपनी जिंदगी बिता नहीं सकती । तुम मुझे क्या छोड़ोगे , मैं ही तुम्हें छोड़कर जा रही हूं । अब केशव ही मेरी जिंदगी है । “ केशव ने भी रेखा के सुर में सुर मिला दिया । इस प्रकार रेखा अपने हंसते – खेलते परिवार को छोड़कर घर से केशव के साथ चली गयी ।
रेखा के घर छोड़ने के कुछ दिन बाद ही विकास को सरकारी नौकरी मिल गयी । विकास को भी एक सभ्य लड़की से प्यार हो गया और दोनों ने शादी कर ली ।
इधर रेखा का जीवन कुछ समय तो सुखमय बिता , लेकिन एक दिन केशव ने रेखा की जिंदगी में भूचाल ला दिया । केशव को एक खूबसूरत और कमाने वाली लड़की से प्यार हो गया । वह रेखा को छोड़कर उससे विवाह कर लिया ।
रेखा को जब इस बात की जानकारी हुई , तो वह केशव के पास गयी और बोली – ” केशव , तुम मेरे साथ ऐसा नहीं कर सकते । तुमने मेरे साथ धोखा किया है । तुम मेरी जिंदगी के साथ खिलवाड़ नहीं कर सकते । अब मेरा और मेरे बच्चों का क्या होगा ? तुमने तो मुझे कहीं का नहीं छोड़ा । तुम मुझे ऐसे कैसे छोड़ सकते हो । “
केशव मुस्कुराकर बोला -” मैंने तुम्हें धोखा नहीं दिया है और न मैंने तुमसे विवाह किया है । तुम स्वयं अपने पति को ठुकराकर मेरे साथ रहने लगी । धोखा तो तुमने पति विकास को दिया है । तुम दौलत की खातिर किसी को भी धोखा दे सकती है । जो औरत अपने पति के साथ गद्दारी कर सकती है । ऐसी औरत पर कौन विश्वास करेेगा ! तुम सिर्फ दौलत से प्यार करती हो न कि मुझसे । जिस दिन मेरे पास दौलत नहीं होगी , तुम उस दिन मुझे भी ठुकरा दोगी । तुम जैसी लालची औरत पर भला कौन विश्वास करेगा । जहां तक बच्चों का सवाल है वे मेरे नहीं हैं । अब तुम अपना ठिकाना कहीं और ढूंढ़ लो । मैं तुम्हें अपने साथ नहीं रख सकता । “
रेखा अब करती भी क्या ? उसे अपने कर्मों की सजा मिल गयी थी । अब उस एहसास हो गया था कि दौलत का नशा क्या होता है ? इसी दौलत के नशे के कारण वह अपने पति और परिवार से दूर हो गयी । अब वह विकास के पास तो जा नहीं सकती । जायेगी भी तो किसी मुंह से ? आखिर उसने देवर – भाभी के रिश्ते को जो कलंकित कर दिया ।
पुष्पेश कुमार पुष्प
बाढ़ ( बिहार )