उदास चेहरे पर मुस्कान

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चिन्टू बहुत देर तक उत्सुकता के साथ किताब को उलट-पलट कर देखता रहा फिर वहीं खड़े-खड़े वह एक कहानी को पढ़ने लगा । दुकानदार उसको घूर कर देख रहा था । चिन्टू एक दो दिन में उसकी दुकान पर आता और कोई न कोई किताब मांगता और पढ़ने लगता फिर किताब का दाम पूछता और खरीदे बिना ही चला जाता । आज भी चिन्टू दुकान खोलते से ही आ गया था और कक्षा दूसरी की किताब को हाथ में लेकर पढ़ने लगा था । दुकान में ज्यादातर समय तो ग्राहक रहे आते इसलिये दुकानदार चिन्टू पर ज्यादा धन नहीं दे पाया था पर आज दुकान पर ग्राहक नहीं थे इसकारण दुकानदार का ध्यान चिन्टू पर चला ही गया था । उसने गौर से चिन्टू को देखा । चिन्टू की उम्र कोई 7-8 साल की ही होगी, उसके चेहरे पर रूखापन साफ दिखाई दे रहा था । उसके कपड़े फटे थे, उसके बाजू में एक थैला भी लटका था। चिन्टू उत्सुकता के साथ कितबा को पढ़ रहा था उसकी आंखों में मासूयित छलक रही थी । वैसे तो दुकानदार का मन हो रहा था कि वह चिन्टू को दुतकार कर भगा दे पर उसेके चहरे की मासूमियत के कारण वह ऐसा नहीं कर पा रहा था । चिन्टू सतर्क निगाहों के साथ दुकान के एक कोने पर खड़े होकर किताब पढ़ रहा था पर वह रितछी निागहों से दुकानदार को भी देखता जा रहा था वह जानता था कि उो कभी भी वहां से चले जाने को कह दिया जायेगा । अचानक उसने दुकानदार को यूं घूरते हुए देख लिया था । चिन्टू सहम गया। उसे लगने लगा था कि उसे अब किताब को पढ़ना बंद कर चले जाना चाहिए पर वह जिस कहानी को पड़ रहा था वह उसे बहुत अच्छी लग रही थी और उसे अधूरी छोडकर जाने का मन नहीं था । उसने प्रश्नवाचक निगाहों से याचना भरे अंदाज में दुकानदार को देखा मानो उनसे कुछ देर और पढ़ लेने की अनुमति ले रहा हो । दुकानदार ने उसे कड़ी निगाहों से घूरा । चिन्टू सहम गया पर किताब को पढ़ना बंद नहीं किया ।
‘‘पापा मम्मी बुला रहीं हैं…….आप जायें मैं तब तक दुकान पर बैठता हूॅ’’
दुकानदार घर के अंदर जा चुके थे और उनका बेटा दुकान पर बैठ गया था ।
चिन्टू ने नजरें उठाकर उसे देखा ।
वह ज्यादा बड़ा नहीं था 10-11 साल का ही होगा । आंखों पर चश्मा था और चेहरे पर शालीनता । वह भी उसे ही देख रहा था
‘‘क्या नाम हैं तुम्हारा…’’ उसकी आवाज में माधुर्य था । चिन्टू के चेहरे पर राहत और प्यार के भाव उभरे । उससे इतने शालीन ढंग से किसी ने बात नहीं की थी । जो भी मिलता वह ही उसे दुतकारता । दिन में दर्जनों बार अकारण गालियां खाना उसकी आदत में आ चुका था । वह सिर नीचा कर के गालियां भी सुनता रहता और दुतकार भी । आज भी उसे यह ही उम्मीद थी पहिले दुकानदार से फिर उसके बच्चे से । पर जैसे ही उसने प्यार से प्रश्न किया चिन्टू भावुक हो गया ।
‘‘मेरा नाम चिन्टू है……..और आपका…….’’
‘‘राघव………’’
दोनों मौन हो गए । राघव ने उसके हाथ में कितबा देखकर पूछा
‘‘किस स्कूल में पढ़ते हो……’’
‘‘जी…..अब मैं नहीं……पढ़ता…..दो साल पहिले ही पढ़ाई छोड़ दी’’ चिन्टू ने नजरे नीची कर के कहा । शायद उसे अपने न पढ़ पाने का अफसोस हो रहा था ।
‘‘क्यों………?’’
‘‘कुछ नहीं ऐसे ही………पर आप किस क्लास में पढ़ते हैं ’’
‘‘मैं तो प्राईवेट स्कूल एन पी एस में पढ़ता हूॅ……पर जब तुम पढ़ते ही नहीं हो तो किताब में क्या चित्र देख रहे थे……..’’
‘‘चित्र नहीं……….मैं इसकी कहानी पढ़ रहा था…….बहुत अच्छी कहानी है…….आप भी अवश्य पढ़ना’’
चिन्टू के चेहरे पर कहानी के एक-एक पात्र उभरते जा रहे थे……मानो उनमें से एक वह स्वंय ही हो
‘‘अच्छा……..तुम रहते कहां हो………..’’
‘‘वो सड़क किनारे बढ़ा सा नाला है न……..वहीं एक झोपड़ी में रहता हूॅ………आपने पूछा नहीं कि कहानी में ऐसा क्या है……आपको कहानियां अच्छी नहीं लगती क्या…….’’
चिन्टू चाह रहा था कि वो कहानी के बारे में बात करे । कहानी के दर्द को वह अपने अंदर गहरा घुसा सा महसूस कर रहा था । वह उस दर्द को बांटना चाहता था ।
‘‘कहानियां तो मुझे अच्छी लगती हैं पर उन कहानियों में जो बढ़ाचढ़ाकर लिखा जाता है न मुझे उससे नाराजगी है……’’ राघव के शब्दों में अभी भी शालीनता थी ।
चिन्टू को राघव के ये बातें ज्यादा समझ में नहीं आई ।
‘‘कहानी में मेरे जैसा ही एक लड़का है…उसे किताबें पढ़ने का बहुत शौक है पर किताबें खरीदने के लिए उसके पास पैसे ही नहीं होते तो वह रोज वहां जाता है जहां कचरा फेंका जाता है….उस कचरे में से एक एक पन्नों को ढूंढकर उन्हें पढ़ता भी है और उन्हें सम्हालकर रखता भी जाता है ’’
‘‘यही तो मैं कह रहा हूॅ…….कितना बढ़ाचढ़ाकर लिख दिया …अब भला कोई लड़का कचरा घरों में फेंके गए ऐसे पन्नों को इकट्ठा करके भी पढ़ सकता है…..’’ राघव के चेहरे पर नाखुशी के भाव उभर चुके थे ।
चिन्टू खामोश हो गया । उसके चेहरे पर असमंजस के भाव थे । उसका बांया हाथ अपने दांय काधं पर लटके थैले की तलहटी तक पहुंच गया था । राघव ने उसे खामोश देखा तो वह फिर से बोला ‘‘देखों चिन्टू……गरीब बच्चे जो पढ़ाई छोड़ देते हैं न वो इसलिए की उनका मन पढ़ने में लगता ही नहीं है……वे दिन भर आवारागर्दी करते रहना चाहते हैं और चोरी करके खर्चा निकालते हैं…इसलिए ही तो जीवन भर गरीब के गरीब ही बने रहते हैं………’’
‘‘ऐसा नहीं है बाबा………’’ चिन्टू की आंखों में आंसू झलक आए थे ।
‘‘कहानियों में ऐसी ही उनके बारे में अच्छी अच्छी बातें लिख दी जाती हैं……..तुम भी तो गरीब हो….तुमने कभी कचरे के ढेर से पेज उठाकर पढ़े हैं….सच बताना यदि तुमने सच बोला न ……क्या नाम बताया हैं तुमने अपना…….ओह चिन्टू……हां तो मैं तुमको यह किताब ऐसे ही दे दूंगा….’’ राघव के चेहरे पर परिहास के भाव थे ।
चिन्टू का बांया हाथ अभी भी उसके दांये कांधे पर लटक रहे थैले के अंदर ही था । एक झटके में ही उसने उस हाथ को बाहर खींच लिया था । बाहर निकले हाथ में कुछ फटे-पुराने कागज थे । उसने सम्हालकर कागजों को दुकान की टेबिल पर बिछा दिया था ।
राघव अचंभित सा उन कागजों को देख रहा था
‘‘ये बड़ा वाला कागज है न उसमें एक कविता है
‘‘चलो बच्चो, स्कूल चलो
क, ख, ग और गिनती सीखो
बस्ता टांगो. जूते पहने,
साफ, स्वच्छ कपड़े पहने
चलो बच्चो स्कूल चला…..’’
और सबसे नीचे वाले कागज में कौआ और मटका की कहनी है ।
चिन्टू कागजों को देखे बगेैर एक एक कागज के बारे में बताता जा रहा था । अवाक सा राघव उन कागजों को अलट-पलट कर देख रहा था ।
चिन्टू खामोश हो गया । उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे
‘‘मैं रोज सुबह एठकर स्कूल नहीं जाता मैं तो कचरा घर जाता हूॅ और एक एक कागज को बीनता हूॅ….उन्हें बबूल के कांटों से फंसाकर जब भी समय मिलता है पढ़ता हूॅ……..’’
राघव के चेहरे पर उसके प्रति हमदर्दी के भाव दिखाई देने लगे थे ।
‘‘मित्र इतने गंदे कागजों से भी तुम पढ़ लेते हो……..फिर स्कूल क्यों नहीं जाते…….ओह समझ गया….तुम्हारे माता पिता नहीं जाने देते होगें…..’’
चिन्टू खामोश था ।
‘‘मैं पढ़ने में तुम्हारी मदद कर सकता हूॅ……….’’
चिन्टू खामोश रहा ।
‘‘मेरे पास मेरी ही पुरानी किताबें हैं……मैं तुमको दे सकता हूॅ और साथ ही यदि तुमको कुछ समझ में न आये तो मैं समझा भी सकता हूॅ……..’’
चिन्टू की आंखों से आंसू बह रहे थे । उसे लग रहा था कि अब उसके पढ़ने का स्वप्न पूरा होने वाला है । पर वह खामोश ही रहा ।
राघव भी मौन रहकर उसके चेहरे पर आ जा रहे भावों को पड़ने की कोशिश कर रहा था ।
कुछ देर की खामोशी के बाद चिन्टू ने अपने कागजों को समेटकर अपने थैले में रख कर जाने के लिए कदम आगे बढ़ा दिये ….
‘‘ये जो किताब तुम पढ़ रहे थे न…..वह भी रख लो वह तुम्हारी हो गई……..’’
‘‘पर आपके पिताजी………नहीं रहने दो वो आप पर नाराज होगें……’’
‘‘मैं नाराज नहीं होउंगा……..यदि मेरे बेटे ने तुम्हे किताब दी है तो मैं भला क्यों नाराज होउंगा…..तुम किताब ले जा सकते हो….’’ राघव के पिताजी दुकान में आ चुके थे और उन्होने बातें सुन लीं थीं । उनके चेहरे पर अपने बेटे के प्रति संतोष के भाव थे ।
चिन्टू ने उस किताब को उठाकर माथे से लगा लिया और फिर अपने थैले में डाल दिया ।
‘‘सुनो बेटे……तुमको जब भी कोई किताब पढ़ना हो तो यहां आ जाना…’’
दुकादार की स्नेहिल वाणी चिन्टू के कानों में गूंज रही थी । वह तेज कदमों से अपने घर की ओर बढ़ रहा था ।

कुशलेन्द्र श्रीवास्तव

matruadmin

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