लफ्ज़-ओ-लिहाज़ कवि सम्मेलन सम्पन्न
इंदौर।
गत दिवस साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था “हुनर” एवं “स्थाई” के तत्वावधान में स्थानीय कुंती मोहन माथुर सभागार में कवि सम्मेलन “लफ़्ज़-ओ-लिहाज़” का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष आदरणीय डॉ अर्पण जैन ‘अविचल’ रहें।
सर्वप्रथम अतिथियों ने दीप प्रज्वलन कर कार्यक्रम की औपचारिक शुरुआत हुई इसके बाद बंगलूरू की गायिका देबोलिना घोष ने शास्त्रीय संगीत से समा बांधा।
मुख्य अतिथि डॉ अर्पण जैन अविचल ने अपने वक्तव्य में कवि सम्मेलन के शताब्दी वर्ष का जिक्र करते हुए कहा कि ‘युवाओं के हाथों में आज कवि सम्मेलनों की बागडोर है जो निश्चित ही सुखद भविष्य का संदेश हैं। युवा वर्ग कविता की ऊर्जा है।’
इसके बाद कवि सम्मेलन शुरू हुआ जिसमें नितेश जायसवाल(नीमच, म.प्र.), रामकृष्ण (मुजफ्फरपुर, बिहार), सज्जन चौरसिया (हाजीपुर, बिहार ), मौसम कुमरावत (इंदौर , म.प्र.), जितेंद्र तिवारी (ग्वालियर, म.प्र.) एवं निशांत चौधरी (इंदौर, म.प्र.) ने अपनी श्रेष्ठ रचनाओं का पाठ किया। साथ ही बेंगलुरु से पधारी शास्त्रीय संगीत गायिका देबोलीना घोष ने अपनी ग़ज़लों की विशेष प्रस्तुति दी और श्रोताओं को अपनी सुरीली आवाज से मंत्रमुग्ध किया । तबले पर उनका साथ दिया हिमांशु व्यास (नागपुर, महाराष्ट्र) एवं हारमोनियम पर उनके साथ रहे शुभम खंडेलवाल (इंदौर,म.प्र.)
कवि नितेश जायसवाल ने अपनी कविता ‘दिल के दर पर दस्तक देते जाने कितने सारे लोग |
तन्हा यादों में घुटते हैं, कितने गम के मारे लोग |
अब जूतों के नोक तले हैं – थे आंखों के तारे लोग |
मतलब की दुनिया में मतलब, मतलब से हैं सारे लोग।’ सुनाई इसके बाद रामकृष्ण ने कहा कि ‘बैठ दरगाह में हमने राधा लिखा ।
हमने संगम को गंगा से ज़्यादा लिखा । धर्म के धाम से राम सब ने चुने । हम ने सीता को रघुवर से ज़्यादा लिखा ।’
कवि मौसम कुमरावत ने पढ़ा कि ‘मैं अपनी हर कविता में मेरे जज़्बात लिखता हूँ ,
बिगड़ते और सँवरते सब ; सही हालात लिखता हूँ।
कभी लिखता हूँ ‘राधा’ मैं, कभी लिखता हूँ मैं ‘मोहन’,
मैं ‘मौसम’ हूँ , कड़कती धूप में बरसात लिखता हूँ ।’ और फिर
सज्जन चौरसिया ने ‘ग़म चीखते हैं तो ठहाके की आवाज़ आती है,
जैसे सरहद से पटाखे की आवाज़ आती है।
अपने ही घर में अब रोज़ सिसकता हूँ मैं,
जैसे पिंजड़े से परिंदे की आवाज़ आती है।’ कविता सुनाई। इसके
बाद ग्वालियर के कवि जितेंद्र तिवारी ने ‘टुकड़ों से चट्टान बनाने लगती है।
रोज़ नई पहचान बनाने लगती है।
पहले तो इंसान बनाता है आदत।
फिर आदत इंसान बनाने लगती है।’ का काव्य पाठ किया अंत में
निशांत चौधरी ने ‘पकड़ कर हाथ उसे नजदीक लाकर छोड़ देना है|
य’आनी जाम को बस लब लगाकर छोड़ देना है ।
हम इतना जानते थे बस मोहब्बत दिल लगाना है ।
उन्हें ये भी पता था के लगाकर छोड़ देना है ।’ जैसी शायरियाँ सुनाई।
इस अवसर पर प्रसिद्ध कवि गौरव साक्षी व मातृभाषा उन्नयन संस्थान के जलज व्यास भी उपस्थित रहें। संस्था के सदस्यों द्वारा मुख्य अतिथि एवं आमंत्रित कविगण को स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया गया । कार्यक्रम का प्रारंभिक संचालन प्रतीक दुबे ने किया और अंत में आभार देबोलिना घोष ने माना ।