सुनीता ने एक बार फिर आईने में अपने आपको देखा । सफेद बालों की एक लट उसके गाल से टकरा रही थी
‘‘तुम्हारी जो बालों की लट हैं न वो मेरे अधिकारों का हनन करती है’’ ।
‘‘कैसे……………’’
‘‘भला उसे क्या अधिकार कि वो तुम्हारे गालों पर यूं आवारा सी घूमे…….उस पर केवल और केवल मेरा अधिकार है…….तुम समझा दो…उसे वरना…….’’
‘‘वरना……क्या……….किसी दिन कैंची से कतर दूंगा………..समझीं…’’
कमिल प्यारा से गालों से बालों की लट को अलग कर कानों के पीछे ठंूस देता ।
सुनीता ने गहरी सांस ली । अब तो बाल सफेद हो गए अब कमिल यदि पास होता तो भी उसे कोई फर्क नहीं पड़ता । वैसे तो वह रोज अपनी इस लट को कानों के पीछे ऐसे ही ठूंस लिया करती थी पर आज उसने ऐसा नहीं किया । वैसे तो आज वह वेसे तैयार भी नहीं हुई थी जैसे वह रोज होती थी । आज सुबह से ही उसका मन भारी था । वह जिस स्कूल में टीचर थी आज वहां कमिल आने वाला था । उसके स्कूल के वार्षिक समारोह में वह अतिथि था । अब वह बड़ा लेखक जो बन गया है । वैसे तो वह पहिले भी बहुत अच्छा लिखता था
‘‘कमिल तुम अपनी कहानियों में इतना दर्द कैसे ले आते हो……..पढ़कर आंखें नम हो ही जाती हैं…’’
‘‘समाज में दर्द ही दर्द है हमने ही अपनी आंखें बंद कर रखीं हैं….कभी इस दर्द को महसूस करने की कोशिश करो तो मेरी कहानियों का दर्द कम लगेगा…’’
कमिल के चेहरे पर कहानी के नायक जैसा दर्द उभर आता । वह चुप हो जाती ।
पर अनी कहानियों में दर्द लिखने वाला एक लेखक किसी को दर्द भी दे सकता है उसने कभी सोचा नहीं था यदि सोचा होता तो वह कभी कमिल से न तो प्यार करती और न ही शादी । पर उस समय उसके सोचने की शक्ति उसके पास थी ही कहां वह तो प्यार में पागल हो गई थी कमिल के और होती क्यों नहीं वह था ही बहुत हैंडसम । गदराया शरीर गौर वर्ण गोलाई लिये चेहरा और बोलने में जैसे उसकी बातों में सम्मोहन होता था, उतना ही अच्छा लिखता भी था । वैसे वह ऐसे ही पहली निगाह में उसके प्यार में नहीं उलझी थी । उसकी तो आदत ही थी कि वह कोई भी निर्णय जल्दबाजी में कभी नहीं करती थी । बहुत सोच विचार करती और अपनी ही तराजू में उसे तौलती जब उसे भरोसा हो जाता तो ही वह आगे बढ़ती । कमिल पर भी उसने ऐसे ही भरोसा किया था । कमिल तो उसके साथ पढ़ता था कालेज में । दोनों रोज ही मिलते पर वह ज्यादा ध्यान उसकी ओर नहीं देती थी । वह तो चिहुंकता हुआ कालेज आता और सभी के साथ घुलमिल कर बात करता मुझसे भी बात करने का प्रयास करता
‘‘हाय……सुनीता जी…………कैसी हैं आप……………’’
मैं अक्सर मौन ही रहती । वह पढ़ने में भी बहुत होशियार था । वह हर विषय के नोट्स तैयार करता ‘‘क्या है कि जब हम नोट्स बनाते हैं न तो वह विषय बहुत अच्छी तरह समझ में आ जाता है…….अब यह तो जरूरी नही है कि जब परीक्षा हो तब ही पढ़ो……पहिले से ही सारे विषय को इतने अच्छे से समझ लो कि जब परीक्षा हो तब पढ़ने की जरूरत ही न पड़े’’ । उसके चेहरे पर मुस्कान होती । वैसे यह तो सच ही था कि परीक्षा के दिनों में वह अक्सर पिक्चर देखने जाता और अपने आपको तरोताजा रखता । उसकी सारी सहेलियां कमिल से नोटस लेती और उनसे ही पढ़ती पर उसने कभी ऐसा नहीं किया
‘‘सुनीताजी……क्या आपको नोट्स नहीं चाहिए….’’
‘‘जी……नहीं………..मैं अपने बलबूते पर पढ़ने पर विश्वास रखती हूॅ…….’’ ।
‘‘ओह……………चलिये कोई बात नहीं ………….ढेर सारी शुभकामनायें………’’
शायद उसे अच्छा नहीं लगा था । पर मुझे इसकी परवाह नहीं थी ।
सीनियर छात्रों को विदाई देना थी इसलिये एक कार्यक्रम रखा गया था । कार्यक्रम का संचालन सुनीता को ही करना था । इसलिये आज वह विशेष रूप् से तैयार होकर आई थी । पिंक कलर का सलवार सूट पहन लिया था । बाल खुले थे । उसके बहुत बहुत लम्बे थे काले सुर्ख…….आज उसने बालों को भी आवारागर्दी करने की छूट दे दी थी । एक लट एसके गालों को पर आवारागर्दी कर रही थी पर उसने उसे रोका नहीं………। कालेज के मेन गेट पर कमिल की निगाह उस पर पड़ गई थी । वह आवाक से देखता रहा था बहुत देर तक उसे पर उसने उसकी ओर निगाह तक उठाई । वैसे तो कमिल भी बहुत खूबसूरत लग रहा था । उसने भी ब्राउन कलर का सूट पहना था । आंखों पर चश्मा……..ये चश्मा उसकी खूबसूरती ज्यादा बढ़ता था । उसने उड़ती हुई निगाहों से उसे देखा । विदाई समारोह में प्राचार्य ने बाला था कि कमिल भी अपना भाषण देगा इसलिये उसे कमिल को बोलने के लिय बुलाना पड़ा । कमिल ने बहुत अच्छा भाषण दिया था भावपूर्ण । ज्यादातर छात्रों की आंखों से आंसू बह निकले थे । मेरी आंखें भी नम हो गई थीं । उसके बोलने में अजीब सा सम्मोहन था । माता पिता किस उम्मीद के साथ अपने बच्चों का लालन-पालन करते हैं और अपना सर्वस्व दांव पर लगाकर पढ़ाते हैं ऐसे में क्लसा दर क्लाय पढ़ने वाला छात्र कैसे आने माता पिता के सपनों को जीवंतता देने का प्रयास करता है । बहुत ही अदभुत भाषण । बहुत देर तक तालियों बजती रहीं थीं । सारे लोगों ने खड़े होकर उसे सम्मान दिया था । कार्यक्रम के संचालक होने के नाते मुझे भी बहुत तारीफ करनी पड़ी थीं………..पर वो तारीफ झूठी नहीं थी । पहली बार मैं कमिल के प्रति आकर्षित हुई थी ।
‘‘आपने आज बहुत अच्छा भाषण दिया……’’ । मेरी निगाहें भले ही नीची थीं पर कनखियों से मैं कमिल को ही देख रही थी । उसके चेहरे पर अपने भाषण का दर्द अभी भी था
‘‘धन्यवाद………’’ । उसने मेरी ओर नहीं देखा था । मेरा मन हो रहा था कि कमिल मेरी ओर देखे और मुझसे बात करे । पर कमिल ने इससे अधिक कुछ नहीं बोला और चला गया ।
जब कोई आपको अनदेखा करे तो उसके लिये मन की चाहत और बढ़ जाती है । कमिल अनदेखा कर रहा था ऐसा मुझे लगा पर वास्तव में तो वह ऐसा ही था । पर यह समझते हुए भी मैं उसके प्रति अपनी कोमल भावनाओं को बढ़ता हुआ महसूस कर रही थी । कालेज में परीक्षा के लिये अवकाश हो चुका था इस कारण किसी से मिलना नहीं हो रहा था । कमिल से भी नहीं मिलना हुआ । परीक्षा की तैयारियों के चलते पढ़ाई का दबाब भी बहुत बढ़ गया था पर मन पढ़ाई में लग नहीं रहा था ।
अखबार में कमिल की कहानी छपी थी ‘‘घमंडी लड़की’’ । वैसे तो उसकी कहानियों अक्सर अखबारों में या पत्रिकाओं में छपती रहतीं थीं पर मैं उन्हें कभी नहीं पढ़ती थी पर आज उस कहानी को पढ़ने का मन हुआ था । एक ही सांस में पढ़ती चली गई । मैं उस लड़की में अपनी सूरत देख रही थी । क्या सच में उस कहानी की पात्र मैं ही हूॅं अथवा यह केवल संयोग ही था ।
हम जब अस्पताल पहुंचे तब तक पिताजी को होश आ चुका था । कमिल उनके तलुओं को पर मालिस कर रहा था । दरअसल हमें बहुत लेट ही पिताजी के एक्सीडेन्ट की सूचना मिली थी । मैं और माॅ बदहवास की हालत में अस्पताल पहुंचे । मुझे समाने देखकर कमिल आश्चर्य में था शायद वह नहीं जानता था कि वे मेरे ही पिताजी हैं
‘‘आप…………….’’
मैं कुछ नहीं बोली सीधे पिताजी का हाथ अपने हाथ में लेकर बैठ गई । मेरी आंखों से आंसू बह रहे थे । पिताजी ने धीमे से अपनी आंखें खोलीं
‘‘अब ठीक हूॅ……….बेटा……तू रो क्यों रही है…….’’
‘‘पिताजी…………..कहकर मैंने उनकी छाती पर अपना सिर रख दिया था ।
परीक्षाहाल से आखिर पेपर के दिन मैं तो पहिले ही पेपर देकर बाहर निकल आई थी पर कमिल को आने में समय लगा ।
‘‘कैसा रहा………………?’’
‘‘बहुत बढ़िया…………………’’
हम दोनों काफी हाउस में आकर बैठ चुके थे । दोनों के चेहरे पर दर्द था ।
‘‘हम कैसे मिलेगें…………अब……………….’’
‘‘सपने में…………………..’’
‘‘नही…………..चलो हम शादी कर लें……………’’
‘‘अच्छा……………पहले कुछ काम तो ढूंढ़ लें……………’’
‘‘काम तो शादी करके भी ढूंढ़ा जा सकता है………..’’
‘‘तब तक हम खायेगें क्या………….प्रेम से रोटी तो बनाइ्र जा सकती है….पर प्रेम की रोटी नहीं बनाई जा सकती मेडम…………’’
‘‘वो मैं कुछ नहीं जानती…………………..’’
‘‘ये जो तुम्हारी लट जो बार-बार तुम्हारे गालों पर आ रही है न………..इससे मुझे बहुत चिढ़ होती है…..तुम इस लट को समझा दो……………..जिस चीज पर मेरा अधिकार है वहां वह अतिक्रमण न करे……समझीं……….वरना…………..’’
‘‘वरना……………क्या…………’’
‘‘ःकिसी दिन कैंची से उसे जड़ से ही मिटा दूंगा……….’’
‘‘मजाक में मेरी बात मत उड़ाओ………………’’
‘‘यदि प्रेम में विरह न हो तो उसमें गहराई नहीं आती……इसलिये हम कुछ दिनों तक विरह वेदना में तड़फने के इस अवसर को हाथ से नहीं जाने देचा चाहेगें…’’
‘‘मैंने कहा न मैं बहुत परेशान हूॅ…….तुम मजाक कर मेरी बातों को अनसुना कर रहे हो…..’’
‘‘चलो…………चलें………………..’’
‘‘तुम मेरे प्रश्न का उत्त्र दिए बग्ेर नहीं जा सकते………………..’’
‘‘कुछ प्रश्नों के उत्तर नहीं होते उनके भाव होते हैं……………जिन्हें महसूस किया जाना होता है’’
‘‘मैं मूर्ख हूॅ………….मुझे भाव महसूस नहीं होता मुझे केवल शब्द सुनाई देते हैं……तुम जो बालना चाहते हो शब्दों में बोलो………….और ये गोल-गोल बातें घुमाना बंद कर दो………………’’
कमिल मौन हो गया ।
एक महिने बाद कमिल मेरे घर आया था । पिताजी के एक्सीडेन्ट की घटना के बाद वह पिताजी का लाड़ला बन गया था । बनेगा भी क्यों नहीं । जिस हालत में वह घायलवास्था में पिताजी को बीच सड़क से डठाकर अपनी गोदी में अस्पताल लाया था ऐसा कोई और कर भी नहीं सकता था । लोग तो सड़क पर दर्द से तड़फते घायल को देखकर बाजू से निकल जाते हैं ताकि उन्हें पुलिस की झंझअ से मुक्ति मिल जाए । पर कमिल ने ऐसा कुछ नहीं सोचा था । वह तो यह भी नहीं जानता था कि वे मेरे पिताजी हैं । उसके दिमाग में तो केवल एक ही बात थी को वो घायल को जल्दी से जल्दी अस्पताल पहुंचाये । खून ज्यादा बह गया था तत्काल खून की आवश्यकता थी । उसने बगैर हिचके अपने आपको आगे बढ़ा दिया था । उसी की जिद्द पर डाक्टरों को उसका दो बाटल खून लेना पड़ा । जब तक सुनीता और उसकी माॅ अस्पताल पहुंचते वह घायल पिताजी की सेवा करता रहा । उनके पैरों के तहुआ की मालिस की । उनके शरीर के ख्ूान को पौछा और ढाढ़स बंधाता रहा । पर जैसे ही उसे पता चला कि वे सुनीता के पिताजी हैं उसके चेहरे पर गहरे संतोष के भाव उभर आए थे । सुनीता को जब सारे घटनाक्रम का पता चला तो उसकी श्रद्धा कमिल के प्रति बढ़ गई थी ‘‘तुम वाकई जिस दर्द को अपनी कहानियों में लिखते हो उस दर्द को जीते भी हो…….’’ । कमिल कुछ नहीं बोला था । सुनीता उसके स्वभाव को जानती थी इसलिये उसने भी जोर नहीं दिया । पिताजी जब तक अस्पताल में रहे वह दिन में भी और देर रात तक उनके पास रहा आता, वहीं बैठकर पढ़ता रहता ‘‘सुनीता तुम जाकर अपनी पढ़ाई करो…..पिताजी के पास मैं रहा आऊंगा’’ । यदि कमिल नहीं होता तो सुनीता कितनी परेशान होती यह वह समझ चुकी थी । अस्पताल से छुट्टी हो जाने के बाद कमिल ने आना छोड़ दिया था । पर पिताजी उसके नाम की माला जपते रहते । कालेज में पेपर देने के बाद वह कमिल को साथ लेकर आती और पिताजी के पास बिठा देती । पिताजी का स्नेह उसके प्रति बढ़ता ही जा रहा था । परीक्षा हो जाने के बाद से ही कमिल ने तो सुनीता से मिला था और न ही पिताजी के पास आया था । सुनीता कमिल से नाराज थी ‘‘बहुत घमंड आ गया है……किसी के पीछे लेगो तो वो अपने आपको शहंशाह समझने लगता है’’ वह बड़बड़ाती । गुस्से से उसका चेहरा लाल हो जाता ।
आज उसने कमिल को पिताजी के पास बैठे देख तो लिया था पर उसने उसकी ओर निगाह तक नहीं डाली । अपना गुस्सा जाहिर करने के लिये वह दो बार उसके सामने से निकली भी पर दरवाजे की ओट से कमिल को देख लेने का लोभ वह नहीं छोड़ पाई थी । वह यह भी देख लेना चाह रही थी कि उसके जैसी उत्सुकता कमिल को भी है या वह केवल पिताजी से मिलने ही आया है ।
‘‘सुनीता………..कमिल के लिए नाश्ता लेकर आओ………..’’ ।
उसने पिताजी की आवाज तो सुन ली थी पर अनसुना किए रही । नाश्ता देने माॅ ही बाहर गई ।
कमिल ने सुनीता के बारे में कोई उत्सुकता प्रकट नहीं की जिसकी राह सुनीता देख रही थी । उसे कमिल का यूूं अंजाना व्यवहार अखर गया । उसका गुस्सा अब आपे से बाहर होता जा रहा था ।
‘‘कमिल मैं चाहता हूॅ कि मैं तुम्हारी और सुनीता की शादी करा दूं………..यदि तुम चाहो तो…….’’
उसके पिताजी की आवाज मं अनुरोध झलक रहा था ।
‘‘पर………….अंकल………………’’
‘‘मैं जानता हूॅ कि सुनीता के मन में भी तुमहारे प्रति ऐसे ही भाव हैं………’’
कमिल कुछ नहीं बोला । सुनीता की उत्सुकता बढ़ गई थी कमिल का जबाबा सुनने की । पर कमिल को चुप देख कर उसका गुस्सा अब सातवे आसमान पर जा पहुंचा था । कमरे में से किसी सामान के गिरने की आवाज गूंजती रही बहुत देर तक ।
सुनीता और कमिल की शादी हो जाने के कुछ माह बाद ही सुनीता की नौकरी लग गई थी । वह शिक्षक बन गई थी । उसकी पोस्टिंग दूसरे शहर के स्कूल में हो गई थी । कमिल को छोड़कर ही उसे आना पड़ा था क्योंकि कमिल की नौकरी प्राइवेट थी और वह उस नौकरी को छोड़ना नहीं चाह रहा था । सप्ताह के अंतिम दिनों में कभी सुनीता कमिल के पास आ जाती तो कभी कमिल सुनीता के पास चला आता । दो दिनों तक दोनों मस्ती करते और फिर अपने अपने काम पर लौट जाते ।
‘‘तुम जो ये समाज सेवा के काम करते रहते हो न किसी दिन हमारे लिये झगड़े के कारण न बन जायें……….जरा इन पर विराम दो……………’’ सुनीता ने सहज में ही बोला था ।
‘‘समाज सेवा के कार्य कभी किसी के झगड़े के कारण नहीं बनते मेडम जी…झगड़े का कारण हमेशा हमारी सोच ही बनती है…………..इसलिये कभी भी अपनी सोच को छोटा मत होने देना…….’’
कमिल ने उसके गालों से आवारागर्दी करती लट को हटाते हुए कहा ।
‘‘वैसे आजकल बहुत अच्छा लिख रहे हो……..लोग भी बहुत पसंद कर रहे हैं तुमको….’’
सुनीता को वाकई कमिल पर गर्व होता था । उसके ही स्कूल में उसके स्टाफ के लोग कमिल की बहुत तारीफ करते थे ‘‘हाय सुनीता………जाने कितना अच्छा भाग्य लेकर आई हो कि कमिल की पत्नी बन गईं………….काश………..तुम्हारे जैसा भाग्य मेरा भी होता……………..’’ ।
सुनीता के चेहरे पर भले ही लालिमा बढ़ जाती हो पर उसकी सीना भी चैड़ा हो जाता ।
वैसे तो वह उस क्लास की टीचर थी ही नहीं पर उस दिन उसे उस क्लास को सम्हालने की जिम्मदारी अनायास ही मिल गई थी । बच्चों की हाजिरी लेते समय वह चैंक गई थी
‘‘संजय……पिता….कमिल वर्मा………..’’
ये कमिल कौन हो सकते हैं…………..कहीं…………मेरे ही पति तो नहीं………….। शंका के बीज उसके दिमाग में प्रवेश कर चुके थे । उसने गौर से संजय को देखा । संजय दूर दूर तक कमिल से मेल नहीं खा रहा था । सुनीता बैचेन हो गई थी । शाम को पूरी छुट्टी के बाद उसने संजय को अपने पास बुलाया
‘‘तुम्हारे पिताजी का क्या नाम है………….’’
‘‘कमिल वर्मा ……………….’’
‘‘और तुम्हारी माॅ का……..’’
‘‘श्रीमती निर्मला…………………..’’ उसने अपनी माॅ के नाम के आगे वर्मा नहीं लगाया था ।
‘‘यहां तुम किसके पास रहते हो…………….’’
‘‘कालेज के हास्टल में………..पहली कक्षा से ही मैं यहां रह रहा हूॅ मेम…….’’
‘‘ठीक है तुम जा सकते हो…………..’’
‘‘जी……………….’’
संजय तो जा चुका था पर सुनीता अपने स्थान से हिल भी नहीं पा रही थी । उसकी आंखों से आंसू बहने को बेताब थे । घर के आने बाद सुनीता सीधे अपने पलंग पर जाकर फफक-फफक कर रो पड़ी थी । उसका दिमाग कुरूक्षेत्र का मैदान बन चुका था । अनेक प्रश्न उसके सामने हथियार लिये खड़े थे । संजय कौन है……तो क्या कमिल पहिले से ही शादी-सुदा है…..उसने उसे
क्यों नहीं इसके बारे में बताया……कमिल ने उसे धोखा दिया है……ये निर्मला कौन है……अनेक प्रश्न ज्वार-भाटा बनकर उमड़-घुमड़ रहे थे । कुरूक्षेत्र के मैदान में वह अनेकोें प्रश्नों से घिरी निहत्थी खड़ी थी….उसे किसी कृष्ण के गीता के ज्ञान की आवश्यकता थी जो बता सके कि सच क्या है । सुनीता रात भर रोती रही । पहिले तो उसका मन हुआ कि वह कमिल को फोन लगाकर इन प्रश्नों का उत्तर जानने की कोशिश करे पर उसने ऐसा नहीं किया ।
इस सप्ताह सुनीता को कमिल के पास जाना था । पर वह नहीं गई । कमिल ने बहुत देर तक तो उसकी राह देखी फिर सुनीता को फोन लगाया । सुनीता ने केवल एक ही शब्द बोला ‘‘मैं नहीं आ रही हूॅ’’ कहकर फोन काट दिया । अगले सप्ताह जब कमिल उसके पास पहुंचा तो वह नहीं मिली । वह कहीं चली गई थी । सुनीता का व्यवहार कमिल को अच्छा नहीं लग रहा था । उसके दिमाग में भी गुस्सा प्रवेश करता जा रहा था । उसने सुनीता से संपर्क बनाने की बहुत कोशिश की पर हर बार वह असफल ही रहा । उसकी बैचेनी बढ़ती जा रही थी साथ में नाराजगी भी ।
सुनीता और कमिल के बीच तलाक हो चुका था । सुनीता ने कभी संजय के बारे में कमिल से जान लेने की प्रयास नही किया इसलिये कमिल को पता ही नहीं चला कि आखिर सुनीता ने उससे दूरी क्यों बना ली है । उसे लग रहा था कि शायद सुनीता के जीवन मंे कोई और आ चुका है इसलिये उसने उससे तलाक ले लिया । कमिल ने अपना सारा ध्यान अब लेखन पर केन्द्रित कर लिया था । उसके लेखन के कारण समाज में वह विष्ष्टि स्थान पा चुका था । तलाक के बाद से ही फिर वह कभी सुनीता से नहीं मिला । उसे जब उसी स्कूल में मुख्यअतिथि के रूप में बुलाया गया तो उसने केवल इस उत्सुकता के कारण कि सुनीता से भेंट हो जाये हां बोल दिया था ।
एक बड़ी सी कार से कमिल स्कूल के मेन गेट पर उतरा । मेन गेट से लेकर अंदर कार्यक्रम स्थल तक खड़े स्कूल के बच्चों ने उस पर फूलों की बरसात की । मंच के एक ओर खड़ी सुनीता ने कमिल को देखा । कमिल अभी भी वैसा ही हैंण्डसम लग रहा था । आंखोें पर चश्मा, गालों पर चमक वह उसके पसंद की ब्राउन कलर का सूट पहने था । सुनीता ने गौर से देखा कि कि कानों के पास उसके बाल भी सफेद हो गये । वह बहुत सुन्दर लग रहा था । सुनीता ने अपनी निगाहें झुका लीं, उसका मन घृणा से भरता जा रहा था । वह कमिल को अभी तक माफ नहीं कर पाई थी । उसके कारण ही उसका सारा जीवन यूं एकाकी ही बीता था । न तो वह कमिल को भुला पाई और नही उसके ्रपति अपनी कटुता को कम कर पाई । उसने माईक अपने हाथ में ले लिया था । कमिल स्कूल के प्राचार्य के साथ सीधा मंच पर आकर निर्धारित कुर्सी पर जाकर बैठ चुका था । उसके सामने सैंकड़ो छात्र स्कूल की यूनिफार्म पहिने बैठे थे । एक ओर स्कूल का स्टाफ बैठा था । वह अपनी खोजी निगाहों से सुनीता को देखने का प्रयास कर रहा था पर उसे सुनीत कहीं नजर नहीं आ रही थी । तभी उसके कानों में चिपरिचित आवाज गूंजी ‘‘हमारे देश के ख्यातिलब्ध साहित्यकार माननीय श्री………….’’ वह आवाज में खोता चला गया । जाने कितने दिनों के बाद उसने यह आवाज सुनी थी । उसने माइक लेकर संचालन कर रही सुनीता की ओर निगाह घुमाई ।
‘‘ओह…….किमतनी प्यारी लग रही है सुनीता……पहिले जैसे ही उसके चेहरे पर लालिमा है और आवाज में ओज……उसने एक सफेद लट को एसके गालों में पर आवारागर्दी करते देखा…..ओह… इसने आज भी मेरा पीछा नहीं छोड़ा…………’’ । कमिल ने अपना ध्यान सुनीता की ओर से हटा लिया था । पर सच तो यह है कि यह उसका असफल प्रयास ही था । वह सामने की ओर देखते हुए भी सुनीता को ही देख रहा था । सुनीता माइक पर अनाउंस कर रही थी ।
‘‘हमारा कार्यक्रम कुछ ही देर मेें प्रारंभ होगा…….हमारे एक और अतिथ अभी आने वाले हैं……..’’
सभी चैंक गए । आमंत्रण कार्ड में तो केवल कमिल का ही नाम था अब और कौन अतिथि आने वाले हैं ।
‘‘हमारे ही स्कूल से अपनी शिक्षा ग्रहण कर चुके और ही हाल ही में यूपीएससी की परीक्षा पास कर कलेक्टर जैसे पद को सुशोंभित करने वाले संजय वर्मा ………’’
तालियों की गड़गड़ाहट से सारा हाल गूंज गया था ।
कुछ ही देर बाद आंखों में गागल लगाये और तन पर सूट पहिने एक नौजवान ने कार्यक्रम स्थल पर प्रवेश किया । सारे लोग उसके अभिवादन में अपने स्थान पर खड़े हो गये थे । कमिल को भी खड़ा होना पड़ा था । संजय मंच पर आकर कमिल के पास बैठ गया था । स्वागत की औपचारिकतायें पूरी की जा रही थीं । सुनीता कनिखियों से कमिल के चेहरे को पढ़ने का प्रयास कर रही थी । उसे लगा था कि संजय कमिल का पुत्र है तो कमिल उसे गले से लगायेगा और संजय उसके पैरों को छूकर अपने पुत्रवत धर्म का पालन करेगा । सुनीता इस दृश्य को देखना चाह रही थी ताकि कमिल को रंगे हाथों को पकड़ सके । उसने ही संजय को कार्यक्रम के लिए आमंत्रित किया था बगैर किसी को बताये ।
सुनीता की उम्मीदों के विपरीत कमिल ने संजय को लेकर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की थी । ऐसा लगा ही नहीं कि कमिल संजय को जानता भी है ‘‘साला ढोंगी…….’’ सुनीता ने मुंह बिचकाया । पर संजय ने भी कमिल को देखकर ऐसी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी जिससे महसूस हो कि कमिल उसके पिता हों । स्वागत की औपचारिकता हो चुकी थी । संजय और कमिल दोनों पास-पास ही बैठे थे । सुनीता ने माइक संभाल लिया था ।
‘‘आज बड़ा ही अच्छा संयोग है कि हम अपने इस मंच पर बाप-बेटे की जोड़ी को बैठा हुआ देख रहे हैं’’
सुनीता की घोषणा से एक बार फिर सारे लोग चैंक गए ।
सुनीता ने मंच की ओर ईशारा करते हुए कहा कि
‘‘संजय जो हमारे विद्यालय के होनहार छात्र रहे हैं और आज कलेक्टर जैसे पद पर आसीन हुए हैं वे वास्तव में हमारे कार्यक्रम के मुख्यअतिथि और ख्यातिलब्ध साहित्यकार कमिल जी के पुत्र हैं….’’
सन्नाटा और गहरा हो चुका था ।
कमिल ने अपने पास बैठे संजय की ओर देखा । संजय भी उन्हें ही देख रहा था ।
जो लोग कमिल को पहचानते थे वे भी आश्चर्य चकित थे ।
कमिल तो अकेले रहते हैं…….उनका ब्याह तो हुआ था पर पत्नी उनसे अलग हो चुकी थी । फिर संजय कैसे कमिल का पुत्र हो सकता है । अनेक प्रश्न उपस्थिति लोगों के दिमाग में तूफान मचा रहे थे । सुनीता भी बैचेनी से कमिल की प्रतिक्रिया का इंतजार कर रही थी । संजय अपनी सीट से उठा और उसने सुनीता के हाथों से माइक ले लिया
‘‘साथियो…..आपकी ही तरह मैं भी हतप्रभ हूॅ मेम की बातों को सुनकर……यह सच है कि मेरे पिता का नाम भी कमिल वर्मा ही है……..पर दुर्भाग्य से में कभी उनसे मिला नहीं हूॅ……..बचपन से लेकर आज तक मेरे बैंक एकांउट में केवल पैसे ही आते रहे हैं…….जिनकी वजह से मैं अपनी पढ़ाई कर सका हूॅ…….मेरी माॅ ने भी कभी मुझे अपने पिता के बारे में नहीं बताया था । उनके गुजर जाने के बाद मैं केवल इतना ही समझ पाया हूॅ कि मैं जिनका नाम अपने पिता के नाम के रूप् में लिखता आ रहा हॅू वे मेरे जन्म देने वाले पिता नहीं हैं, उन्होने केवल मुझे पिता के रूप में अपना नाम दिया है ताकि मैं समाज के सामने सर उठाकर जी सकूं…….यदि ये ही मेरे वो पिता हैं तो मैं वाकई आज धन्य हुआ हूॅ………और मेम को भी धन्यवाद देता हूं कि उन्होने मुझे उन महान व्यक्ति से मिलवा दिया जिनके कारण आज में इतने बड़े पद पर आसीन हो पाया हूॅ……..’’ संजय की आवाज रूंध गई थी । उसके आंसू आंखों का तट बंधन को तोड़कर बह निकले थे । संजय कमिल की ओर बढ़े और उनके पैरों पर अपना माथा रख दिया ।
कमिल आवाक से सारे घटनाक्रम को समझने का प्रयास कर रहे थे । वे अतीत के उस प्रसंग को अपने सामने फिल्म की तरह देख रहे थे
‘‘साहब…….आप केवल इतना अहसान मुझ पर कर दो कि मेरे बेटे को अपना नाम दे दो ताकि वह शान के साथ समाज में जी सके……….’’
‘‘पर…………………..’’
‘‘मैं अपने जीवन के अंतिम क्षणों में आपसे भीख मांग रही मजबूर महिला की इतनी सी मदद नहीं करेगें……आप……’’
कमिल मौन थे
‘‘आप का यह अहसान मेरे बेटे को जीवन दे देगा वरना…………….’’
कमिल को समझ में ही नहीं आ रहा था कि वह क्या करे ।
वह औरत अंतिम संास ले रही थी । शायद वह बहुत घायल थी और उसके शरीर से बहुत सारा खून बह चुका था । उससे चिपका हुआ चार-पांच साल का लड़का जोर-जोर से रो रहा था । कमिल जब तक उस महिला को अस्पताल पहुंचाता तब तक महिला मर चुकी थी ।
उस लड़के को लेकर वह अनाथाश्रम पहुंचा था
‘‘मुझे यहां नहीं रहना पापा……………..प्लीज अपने साथ ले चलो………’’ वह उसके पैरों से चिपक गया । कमिल उसे अपने साथ अपने कमरे पर ले आया था और कुछ दिनों के बाद उसने अपने मित्र के सहयोग से उसे किसी विद्यालय के हास्टल में भरती करा दिया था । कमिल उसके बाद उससे कभी नहीं मिला । वह हर माह नियमित उसे पैसे भेज देता ।
संजय उसके पैरों पर झुका हुआ था ।
‘‘ओह…….तो यही वो बालक है……….जिसे वह पैसे भेजता रहा है…….’’
उसने संजय को गले से लगा लिया । सारा वातावरण गमगीन हो चुका था ।
‘‘मैं धन्य हुआ………..किसी की नफरत ने मुझे अपने गुमनाम बेटे से मिला दिया । मैं संजय से उसके बचपन के कुछ दिनों के अलावा कभी नहीं मिला और न ही मुझे इस बात का ज्ञान रहा है कि वह पिता के रूप में मेरा नाम लिख रहा है……मैं तो केवल उसकी शिक्षा के लिये उसे पैसे देता रहा हूॅ……….पर अच्छा हुआ….आज मेरे सामने एक ऐसा बेटा खड़ा है जिसने अभावों के बाबजूद अपनी शिक्षा को इस मुकाम तक पहुंचाया जहां कोई सुविधाओं में रहकर भी पहीं पहुंच सकता । मेरा नाम भी धन्य हुआ और मेरे पैसों की भी सार्थकता सिद्ध हुई ।
कमिल ने संजय को अपने सीने से लगा लिया था ।
सुनीता के चेहरे पर पछतावे की लकीरें उभर चुकी थीं । उसने कमिल को समझने में गल्ती की थी शायद । काश की उसने कोई धारणा बनाने के पहिले कमिल से ही सारा सच पूछ लिया होता……..उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे । कमिल ने उसकी ओर देखा और अपनी बांहे उसकी ओर फैला दीं । सुनीता दौड़ कर उसकी बांहों मे समा चुकी थी । सभी के आंखों से आंसू बह रहे थे ।
कुशलेन्द्र श्रीवास्तव
जिला-नरसिंहपुर म.प्र.