आज महफिल है हंसी हो, कुछ जवां से आप भी,
आज फिर दिल के बहकने
का इरादा-सा है क्या।
कह नहीं सकते जुबां से,
और दिल खामोश है
कौन है वो कोई अपना,
कोई बेगाना है क्या।
है बसा जो एक सपना,
आज आँखों में नया
आज राही मन्जिलों को
पा नहीं सकता है क्या।
मांगने से क्या मिलेगा,
आज इस संसार में
मुफलिसी का दौर है
ये पेट भर पाएगा क्या।
जब तलक थी वो अमीरी, लोग तब तक साथ थे
आब के टुकड़ों से कोई
वास्ता रखता है क्या।
दासतां ये प्यार की,
किसको सुनाएं आज हम
बेवफाओं के दिलों में
प्यार भी पलता है क्या।
आज बहते आँसूओं की,
कोई कीमत जान ले
जान देकर भी दिलों को,
कोई पा सकता है क्या।
आँसूओं ने जान ली है,
आज रोने की वजह
पूछते हैं आँख से वो,
दिल नहीं रोता है क्या।
#प्रदीप भट्ट