किसान सड़कों पर

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कृषक चर्चा में
मास भर से
आन्दोलन धरना प्रदर्शन में
पहली बार नहीं
इससे पूर्व भी कई बार
आखिर क्यों
किसलिए ?
अब और तब
आ जाना पड़ जाता है
सड़क पर
कहलाता अन्नदाता
आधार निवाले का
पर, किन्तु ,परन्तु ,लेकिन-वेकिन
सब इसके हितैषी
बड़े-बड़े बोल बोलने वाले
तथाकथित अपना रास्ता भी
निकाल लेने वाले
जिनको कहते मध्यस्थ
व्यापार कर लेने वाले,
सम्मान-पुरस्कार पा चुके
देश-देशान्तर में
हर तरह के आयोगों,दलों,संगठनों के
माननीय सबके सब
इनके साथ
परिणाम ढाक के तीन पात
और
किसान सड़कों पर ।
आजादी के सात दशक बीते
समय कम नहीं
अनेक आए-गए
किसान के सपने रीते ,
कुछ कर सकने का अवसर मिला
लेकिन स्थिति ज्यों की त्यों ?
किसान सड़कों पर,
अभी नही तो कभी नहीं
मानकर
समाधान देना होगा
उत्तर देना होगा
उन सवालों का
जिनसे किसान सड़कों पर
आम जनता हो,व्यापारी,अधिकारी
राजनेता अथवा कर्मचारी
जबाब देही सबकी
आखिर किसान सड़कों पर,
अपने स्वार्थ को परार्थ में बदलने
हर तरह के लोभ से बाहर निकलने
देश के लिए समाज के लिए
समाज की रीढ़ कहे जाने वाले के लिए
समय को समझकर
ऐसा कर जाओ कि
किसान न आए
कभी सड़कों पर
जी हां कभी सड़कों पर ।

शशांक मिश्र भारती
बड़ागांव शाहजहांपुर

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