है कोइ राब्ता तो रज़ा के बगैर भी,
शामिल हैं रूह में वो वफ़ा के बगैर भी।
दौलत कमाई’लाख मगर एक सच है ये,
हासिल हुआ न सुकुन दुआ के बगैर भी।
अक्सर नसीब को मेरे तंहाइयां ही क्यों,
ईनाम में मिली है ख़ता के बगैर भी।
इतना यकीं तो रख मेरी आहों पे यार तू,
होगी दुआ कबूल खुदा के बगैर भी।
काफी है नाम एक भिगोने को तनबदन,
सांसों में इत्र फैला हवा के बगैर भी।
है भार कोइ रूह पे उसके यकीन कर,
वो मर रहा है रोज कजा के बगैर भी।
काबिज है जिस्म पर कोई इस कदर ‘वंदना’,
पलटे हजार बार सदा के बगैर भी।
#वंदना मोदी गोयल
परिचय : वंदना मोदी गोयल, फरीदाबाद में रहती हैं। शिक्षा एमए(हिन्दी)और पत्रकारिता में डिप्लोमा किया है।प्रकाशित कृतियों में उपन्यास ‘हिमखंड,’छठापूत’ सहित सृजन सागर कथा संग्रह,साझा संकलन आदि हैं। आपकी साहित्यिक उपलब्धियों में पिरामिड शीरी सम्मान, काव्य गौरव सम्मान,सारस्वत सम्मान,
साहित्य रतन सम्मान और मुक्तक सम्मान प्रमुख हैं,साथ ही आप मंच पर काव्य पाठ भी करती हैं। अच्छा साहित्य पढ़ना और पुराने गाने सुनना आपका शौक है।