अरुणाचल प्रदेश की बुगुन जनजाति संपन्न एवं सुशिक्षित : सुनील चौरसिया ‘सावन’

0 0
Read Time4 Minute, 4 Second

हिमगिरि के उत्तुंग शिखर पर स्थित केंद्रीय विद्यालय टेंगा वैली, अरुणाचल के सम्मुख खोला कैम्प और शींगचुंग नामक बुगुन बाहुल्य गांव है । सभ्य, सुशिक्षित एवं मिलनसार प्रवृति की बुगुन जनजाति का पुराना नाम खोवा है। प्रकृति पुजारी बुगुन जन नया फसल तैयार होने पर क्ष्यत्सोई, फम्खों और डिंग्खों नामक त्यौहार बड़े धूमधाम से मनाते हैं-

गिरि-सरिता पूजन बुगुन, क्ष्यत्सोई त्योहार।
उमंग मोथोंग, डिंग्खो, सफल फसल आहार।। – सावन

गांव बूढ़ा (ग्राम प्रधान) दावा सराई के अनुसार सिंग्खो, राग्यो, मुखो और चांदी का पथोंग बुगुन का पारंपरिक पहनावा है। फसल कटने पर यह लोग उसको गोम्पा में चढ़ाते हैं जिसे मोथोंग कहते हैं। बुगुन जनजाति की उप जनजातियां जैसे फिन्या, ग्लो, फियोंग, सराई, मार्फियो, लाली, मोस्बू, छारूंग, शिखा, फुंग, बदोई, जीरी, रीमरी, पाचुम् , हकम् ,सुरुम् ,लांग्या , चिदुन् , चिथम् , लाक्यांग , खानाम् इत्यादि अरुणाचल प्रदेश के जिला पश्चिम कमेंग के शिंगचुंग, बिछुम, कस्पी, वान्हूं , मांगोपा , नाम्फरी , डिचिन , वांघू , रामालिंग इत्यादि गांव में सुख – शांति से निवास करते हैं-

पश्चिम कमेंग में बुगुन, कस्पी, वान्हूं, बिछुंग।
गिरि मांगोपा, नाम्फरी, बसे गांव शींचुंग।। -सावन

इनका परंपरागत भोजन मामे खुसुंग (आटा और मैदा का) और मागिंग (बांस की सब्जी) है। शिकार प्रिय बुगुन समुदाय में कास्यो, उब्वाय इत्यादि नृत्य लोकप्रिय हैं। इनकी बोली और भाषा बुगुन है जो सिर्फ मौखिक है। खो (नदी) , नियोम् (धरती), नीयुफ् (आसमान) हानाइ (सूर्य) और प्हम् (पहाड़) के साथ-साथ नाग मंदिर में स्थित शिवलिंग को भी ये लोग पूछते हैं। इनके घर के बीचों बीच में स्पाव (चूल्हा) होता है। मंजिया (आलू) उबुंग (कद्दू) , सुरुवा (नमक) मिर्ची (जल्याव) , निंगाव (चावल) माहाप (आटा) , थिल्ये (तेल), मावाइ (बीन्स), स्पों (मक्का), फुआ (दारू) , सुनुकदिनिक ( हेलीपैड), मुरा (बैठक), लाराय लासाम (पर्यावरण), हसम् ( हवा), हाबिया (चांद ) , सादयोंग (तारा ) , हानाइ (दिन), इग्यं (रात ) इत्यादि इनकी विशेष शब्दावली हैं। बुगुन महिला समाज की अध्यक्षा सरिता फिन्या और युवा लेखक जिम्बू मार्फ्यू ने बताया कि बुगुन जनजाति में शादी हेतु वर पक्ष कन्या पक्ष के वहां मिथुन, धेनु, वाराह इत्यादि के साथ प्रस्ताव लेकर जाता है। शादी से पहले दूल्हा अपने ससुराल में कुछ दिनों तक रहता है और सेवा करता है। जीवन की मुख्यधारा से जुड़ी बुगुन जनजाति शिक्षा- दीक्षा पर विशेष बल दे रही है।

मार्फियो, लाली, फिन्या, सराई, ग्लो, फियोंग।
क्ष्यत्सई, फम्खो, डींग्खो, गोम्पा में मोथोंग।।

#सुनील चौरसिया ‘सावन’
स्नातकोत्तर शिक्षक, हिन्दी केंद्रीय विद्यालय टेंगा वैली अरुणाचल प्रदेश।

matruadmin

Next Post

दक्षिण फिल्मों का जादू बिखरा, बॉलीवुड चला दक्षिण सिनेमा की तरफ

Sun Dec 6 , 2020
दक्षिण सिनेमा में तेलगू, मलयालम, कन्नड़ भाषी फिल्में होती है, इत्र अपनी महक देगा ही देगा वेसे ही दक्षिण भारतीय फिल्मों ने न केवल देश मे विदेशों तक अपनी साख बना ली है, बाहुबली ने चाइना में 2000 करोड़ का व्यापार किया था, बाहूबली, रोबोट, अपरिचित जैसी फिल्मों ने न […]

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।