हिमगिरि के उत्तुंग शिखर पर स्थित केंद्रीय विद्यालय टेंगा वैली, अरुणाचल के सम्मुख खोला कैम्प और शींगचुंग नामक बुगुन बाहुल्य गांव है । सभ्य, सुशिक्षित एवं मिलनसार प्रवृति की बुगुन जनजाति का पुराना नाम खोवा है। प्रकृति पुजारी बुगुन जन नया फसल तैयार होने पर क्ष्यत्सोई, फम्खों और डिंग्खों नामक त्यौहार बड़े धूमधाम से मनाते हैं-
गिरि-सरिता पूजन बुगुन, क्ष्यत्सोई त्योहार।
उमंग मोथोंग, डिंग्खो, सफल फसल आहार।। – सावन
गांव बूढ़ा (ग्राम प्रधान) दावा सराई के अनुसार सिंग्खो, राग्यो, मुखो और चांदी का पथोंग बुगुन का पारंपरिक पहनावा है। फसल कटने पर यह लोग उसको गोम्पा में चढ़ाते हैं जिसे मोथोंग कहते हैं। बुगुन जनजाति की उप जनजातियां जैसे फिन्या, ग्लो, फियोंग, सराई, मार्फियो, लाली, मोस्बू, छारूंग, शिखा, फुंग, बदोई, जीरी, रीमरी, पाचुम् , हकम् ,सुरुम् ,लांग्या , चिदुन् , चिथम् , लाक्यांग , खानाम् इत्यादि अरुणाचल प्रदेश के जिला पश्चिम कमेंग के शिंगचुंग, बिछुम, कस्पी, वान्हूं , मांगोपा , नाम्फरी , डिचिन , वांघू , रामालिंग इत्यादि गांव में सुख – शांति से निवास करते हैं-
पश्चिम कमेंग में बुगुन, कस्पी, वान्हूं, बिछुंग।
गिरि मांगोपा, नाम्फरी, बसे गांव शींचुंग।। -सावन
इनका परंपरागत भोजन मामे खुसुंग (आटा और मैदा का) और मागिंग (बांस की सब्जी) है। शिकार प्रिय बुगुन समुदाय में कास्यो, उब्वाय इत्यादि नृत्य लोकप्रिय हैं। इनकी बोली और भाषा बुगुन है जो सिर्फ मौखिक है। खो (नदी) , नियोम् (धरती), नीयुफ् (आसमान) हानाइ (सूर्य) और प्हम् (पहाड़) के साथ-साथ नाग मंदिर में स्थित शिवलिंग को भी ये लोग पूछते हैं। इनके घर के बीचों बीच में स्पाव (चूल्हा) होता है। मंजिया (आलू) उबुंग (कद्दू) , सुरुवा (नमक) मिर्ची (जल्याव) , निंगाव (चावल) माहाप (आटा) , थिल्ये (तेल), मावाइ (बीन्स), स्पों (मक्का), फुआ (दारू) , सुनुकदिनिक ( हेलीपैड), मुरा (बैठक), लाराय लासाम (पर्यावरण), हसम् ( हवा), हाबिया (चांद ) , सादयोंग (तारा ) , हानाइ (दिन), इग्यं (रात ) इत्यादि इनकी विशेष शब्दावली हैं। बुगुन महिला समाज की अध्यक्षा सरिता फिन्या और युवा लेखक जिम्बू मार्फ्यू ने बताया कि बुगुन जनजाति में शादी हेतु वर पक्ष कन्या पक्ष के वहां मिथुन, धेनु, वाराह इत्यादि के साथ प्रस्ताव लेकर जाता है। शादी से पहले दूल्हा अपने ससुराल में कुछ दिनों तक रहता है और सेवा करता है। जीवन की मुख्यधारा से जुड़ी बुगुन जनजाति शिक्षा- दीक्षा पर विशेष बल दे रही है।
मार्फियो, लाली, फिन्या, सराई, ग्लो, फियोंग।
क्ष्यत्सई, फम्खो, डींग्खो, गोम्पा में मोथोंग।।
#सुनील चौरसिया ‘सावन’
स्नातकोत्तर शिक्षक, हिन्दी केंद्रीय विद्यालय टेंगा वैली अरुणाचल प्रदेश।