यह जानकर प्रसन्नता होती है कि जब शिक्षा में कोई नवाचार आए और बच्चों के लिए सुलभ तरीका उपलब्ध करा दें। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए डॉ दशरथ मसानिया ने हमारे वेदों की पुरानी वाचिक परंपरा को पुनर्जाग्रत किया है और गणित ,अंग्रेजी, हिंदी जैसे विषयों को भी सरस और गायन में लाकर आकर्षक बना दिया है। इस प्रकार गणित के साथ साथ व्याकरण जैसे दुरुह विषय को भी सरल बनाया है ,साथ ही उन्होंने धार्मिक,नैतिक,साहित्यकार, महापुरुषों ,नारी शिक्षा तथा खेल आदि विषयों को चालीसा में बांधकर गायन विधा में ढाला है। चालीसा में दो या तीन दोहे और चौपाइयों की परंपरा होती है। सामान्यतया प्रत्येक चालीसा में 40 चौपाई और दो या तीन दोहे होते हैं ।उनकी भाषा सरल और ग्राह्य है। उन्होंने हिंदी के अलावा उर्दू और अंग्रेजी शब्दों का भी प्रयोग किया है ताकि जन-जन और बालमन तक पहुंच आसानी से हो सके ।इनके चालीसाओं को देश भर में अब धीरे धीरे ही सही शैक्षणिक उपयोग जाने लगा है। जिसका प्रमाण शोसल मीडिया पर भी देखा जा सकता है।
इन चालिसाओं पर लघु शोध तथा समीक्षायें भी लिखी जाना चाहिये। स्कूली पाठ्यक्रम में भी जोड़ा जा सकता है जिससे बच्चों के साथ शिक्षक भी लाभांवित हो सके।
डाॅ एन डी शास्त्री
भाषाविद् भरतपुर (राज)