न किस्सों में न कश्तियों में,जिन्दगी खूबसूरती है रिश्तों में।किसे पता था वक्त ऐसा भी आएगा,जब इंसान इंसान से दूरियां बनाएगा।खुदको भगवान समझ लिया था,मौत के फैसले खुद लिख रहा था।कुदरत का कहर तो देखो अब,मौतके डरसे खुद छुपा बैठा है।बहुत घमंड था उसे अपनी शक्तियों पर,जिससे दुनियां का बादशाह बन रहा था।और स्थान ईश्वर का खुद ले बैठा था।तभी तो उसके क्रोध के कारण,अब रोने को मजबूर हो रहा है।और करना सको पूजा प्रार्थना और हवन,इसलिए खुदके द्वार भी बंद कर लिए।अपने को बाहुबली समझने वाले देश भी,आज चूहा बनकर बैठे है।बहुत गुरुर था उसे अपने, नए नए अविष्कारों पर।वो ही विज्ञान आज फेल होकर,बैठा है एक कोने में।कब तक अपने डर को छुपाओगें,और खुदकी मौत से क्या बच पाओगें?जो तूने बोया है अब तक,उसका फल तुम अब पाओगें।बहुत खेल चुके प्रकृति के नियमों से।और बना लिया था उसे गुलाम।अब निकलते ही हाथ से उसने,तुम्हें ही बेहाल कर दिया।और बजाने को थमा दिया,घमंडियो को एक एक घुंघुना।अब घर में छुपके बजा रहे है,और मौत के डर को छुपा रहे है।बहुत मनमानी करते आये हो,स्वार्थों को पूरा करने के लिए।और बर्बाद करते रहे,छोटे छोटे बेहगुना देशों को।अब ये ही देश तालियां, थालियां और मोमबत्तीयां।अपनी बर्बादी पर बजा और जला रहे है।और सचको अब भी नही जान पा रहे है।और खुदको अब भी खुदा मान रहे है।अरे माटी का संसार है ये,खेल सके तो अब खेल।बाजी अब रब के हाथ में है,तेरा विज्ञान हो गया पूरा फेल।अब भी वक्त है सुधार जाओ,और अपनी करनी पर पसताओ।मतकर कौशिश महाशक्ति बनने की,वरना खुद ही मिट जाओगे।और दुनियाँ के नक्शे में से,खुदका नाम निशान मिटाओगे।फिर कही के भी नही रह पाओगे,और किसी के गुलाम बन जाओगे।।
संजय जैन (मुम्बई)