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ज़ुल्म सहेगी ना अब नारी ,
मत समझो इसको बेचारी।
घर,बाहर ये कभी न हारी ,
हर बाधा पर पड़ती भारी ।
देश का ये अभिमान बढ़ाये,
क्यों समुचित सम्मान न पाये।
भ्राता, तात से कुछ न माँगे
हँस करके सारे सुख त्यागे।
पति से कहती कर आभास
हर पल हूँ तेरा विश्वास ।
सफल तभी परिवार हुआ,
जब नारी सत्कार हुआ।
वीराने को महल बनाती ,
हर मुश्किल का हल बन जाती।
भक्ति, शक्ति, शृंगार है नारी
मत समझो इसको बेचारी।
आसिया फ़ारूक़ी
(राज्य अध्यापक पुरस्कार प्राप्त शिक्षिका)
फ़तेहपुर (उत्तर प्रदेश)
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