शास्त्री- बापू तेरे ही देश में
लूट रही है अस्मत से बेटियां
और बहशी बना है आदमी
बापू तेरे देश में ।
रो रहा है अन्नदाता और
भर रही हैं तिजोरिया उद्योग पतियों की
लाल बहादुर शास्त्री तेरे देश में।
सत्ता बनी है शातिर
अपने सिंहासन परस्ती की खातिर
शास्त्री-बापू तेरे ही देश में ।
आम जनता पीट रही है
अपनी छाती विलाप से
बह रहा है क्रंदन हवाओं में
सिसक रहा है बचपन आहों मैं
शास्त्री- बापू तेरे ही देश में ।
दुश्मनों को खदेड़ने वाली सेनाएँ
मुठठिया भींचे खड़ी हुई है
सीमाओं पर अपने लाव लश्कर संग
मौन बना है नेतृत्व
शास्त्री – बापू तेरे ही देश में ।
जय- जवान, जय -किसान से
हरित क्रांति का शंखनाद करने वाले जननायक का
आह्वान करता है भारत
अपने ही पैदा किए हुए अनाज की सही लागत को पाने का
अपनी ही सरकार से
शास्त्री – बापू तेरे ही देश में ।
बेरोजगारों की लंबी-लंबी कतारें
हताशा- निराशा में डूबा हुआ युवा
बुलाता है अपने प्यारे बापू को
स्वदेशी ,आत्मनिर्भर का बिगुल बजाने के लिए
शास्त्री -बापू तेरे ही देश में ।
लोकतंत्र की जड़ों से
पनपते कट्टरवादी ,पूंजीवादी पेड़ को
काटने के लिए
आह्वान करती है
भारत माता
अपने दोनों में लालो का
फिर से आकर
अपनी सरकारों से आजादी दिलाने का
शास्त्री – बापू तेरे ही देश में।
स्मिता जैन