“सोचता हूं……. मेरी मां तूने है बहुत कष्ट पाए,तेरे ऊपर है दुखों घनघोर बादल छाए, गरीबी में सारा अपना बचपन गुजार दिया।।
“सोचता हूं……किया सर्वस्व तूने न्योछावर भर जवानी में, पिता,
भाइयों के घर को संवारने में अपना बहुमूल्य समय गुजार दिया।।
“सोचता हूं…… जब भर जवानी की दहलीज में पति का साया तेरे
घर से उठा, छिन- भिन हुई तू , हृदय ने तेरी वेदना को पुकार दिया।।
“सोचता हूं…… विधवा असहाय होकर नन्हे तीन बच्चों को गरीबी में
तूने दूसरों के घर मजूरी कर दुविधा में , कैसे दुख भरा समय थाम दिया।।
“सोचता हूं…..अकेली ही तू चलती रही कष्टों की राहों में,कभी अपनों की ठोकर खाकर, कभी पारायों की तभी भरे समाज ने तुझे बाहर निकाल दिया।
“सोचता हूं….. कैसे निकली होगी तेरे चित् से करुणामय चितकार, तू कहती गर्जना से,मां भारती जा अबकी तुझे ,मैंने अपने दोनों लालों को उधार दिया।
“सोचता हूं….. सूने आंगन में,हर दिवाली में ,ओझल हुए तेरे दोनों लाल नजर से, तो क्या सैनिकों ने नहीं, तेरी ही कोख से दो क्षत्रियों ने है अवतार लिया।
“सोचता हूं…… शर्म नहीं तेरे अपनों को तुझे आज कैसे दुत्कार दिया, मैं कहता हूं फिर, इतना सब होने पर आज तूने अपने को कैसे संवार दिया।
ठाकुर तारा
सुन्दर नगर(हिमाचल प्रदेश)