भूल गए क्या…माँ…दादी के हाथ की,
वो हरी काँच की चूड़ियाँ….?
जो चूल्हे की आँच में तपकर,
हो जाती थी..और मजबूत।
रोटी थेपकर खेत भी खोद लेते थे,
वो चूड़ी भरे हाथ….।
सिलाई मशीन से लेपटॉप तक की यात्रा तय करते…
वही चूड़ी वाले हाथ,कलम को थाम..
क्रांति ले आए..शिक्षा के क्षेत्र में…।
समय चक्र के साथ दूसरे पहियों को भी,
अपनी मर्जी से चलाते हैं,यही चूड़ी वाले हाथ..
राष्ट्रोन्नति के यज्ञ में समिधा भी ये देते हैं।
ये कमजोरी…नाकामी का प्रतीक नहीं…
कमजोरी व कायरता है..पुरूषों को चूड़ी भेंट करना..।
अगली बार किसी निकम्मे को कुछ भेंट करना हो,
तो खोजिए कुछ और….
कुछ और….पौरुष में से….
और कुछ नहीं तो…एक पोटली,
अहं ही सही..वही दे दीजिए…
चूड़ियों की ताकत समझ जाएंगे..।
#ज्योति जैन
परिचय: ज्योति जैन की विद्यार्थी जीवन से ही साहित्य में रुचि रही है और अनेक साहित्यिक प्रतियोगिताओं में विजेता हुई हैंl आप एयरविंग की कैडेट व बेटमिन्टन खिलाड़ी रहीं हैंl कई प्रतिष्ठित समाचार पत्र-पत्रिकाओं में १००० से अधिक लेख,कहानी,कविता,लघुकथा व समीक्षाएँ प्रकाशित हो चुकी हैंl गुजराती,पंजाबी में भी आपकी रचनाएँ अनुवादित हुई हैं तो बांग्ला-मराठी में पुस्तकें अनुवादित हैंl आपकी आकाशवाणी में सतत् सक्रियता के साथ ही भारतीय वांग्मयपीठ(कोलकाता)द्वारा `गुरूदेव रविन्द्रनाथ ठाकुर सारस्वत सम्मान` सहित अनेक सम्मान राष्ट्रीय-प्रदेश स्तर पर पाए हैं। पूना कॉलेज में आपकी लघुकथाओं पर शोध-पत्र तथा पूना-मुम्बई में न् सेमिनार में भी आपके शोध-पत्र प्रस्तुत हुए हैं। आप मध्य प्रदेश के इंदौर की कई प्रतिष्ठित संस्थाओं की सदस्या और पदाधिकारी भी हैं। पारम्परिक ‘माँडना’कलाकार सहित वर्तमान में निजी कॉलेज में अतिथि व्याख्याता हैं। जलतरंग व बिजूका (लघुकथा संग्रह),भोर बेला व सेतु तथा अन्य कहानियाँ (कहानी संग्रह),मेरे हिस्से का आकाश व माँ-बेटी (कविता संग्रह),पार्थ……..तुम्हें जीना होगा(उपन्यास) आदि प्रकाशन आपके नाम हैंl
बेहद उम्दा ,विचारणीय
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