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(आज मातृ दिवस के अवसर पर विशेष )
आज सहारा वृद्धाश्रम में बहुत शांति थी। न कोई भजन गा रहा था,और न ही कोई कैसेट बज रहा था। सारे वृद्ध बहुत ही गमगीन और उदास होने के साथ घबराए हुए भी थे। आज वृद्धाश्रम की बहुत ही हँसमुख- मिलनसार सरला जी का निधन हो गया,जो पिछले कुछ समय से बीमार चल रही थी। बीमारी की हालत में वो अपनी इकलौती बेटी मधु को बहुत याद कर रही थी। मधु स्कूल जाती तो कभी खाने का डब्बा नहीं ले जाती, मुझे उसे पकड़ कर देना पड़ता..बहुत नाजुक थी, जल्दी बीमार पड़ जाती।मैंने उसके लिए बहुत पूजा करवाई थी। बड़ी मन्नत के बाद हुई थी मेरे बुढ़ापे का सहारा है वो..,बुढ़िया बुखार की तेजी में बड़बड़ा रही थी।दुर्गेश जी उनके सिरहाने बैठ उनके सिर पर ठन्डे पानी की पट्टियाँ रख रहे थे। दुर्गेश जी सहारा वृद्धाश्रम के संचालक थे। बचपन से मां-बाप का साया सिर से उठ गया था,तो इस आश्रम में सेवा देकर अपने मन को तसल्ली देते रहते थे। बुजुर्गों की देखभाल, मृत्यु होने पर क्रिया कर्म वगैरह करना वो अपना धर्म समझते थे। इनके सिर पर कभी ठीक से बाल उग ही नहीं पाते थे कि,फिर किसी वृद्ध की मृत्यु हो जाती,फिर बाल दे देते। बुजुर्गों की देखभाल करने में ये कोई कमी नहीं रखते थे। उनके साथ त्योहार मनाना,हँसना बोलना,आदि में ही अपना समय व्यतीत करते थे। ज्यादा बुखार देख दुर्गेश जी ने सरला की बिटिया को सूचना दे दी कि तुम्हारी माँ की तबियत ठीक नहीं है,तुम्हें बहुत याद कर रही है। बेटी ने बताया कि आज उसके बेटे को हल्दी लग रही है,समय निकाल कर आ जाऊंगी। घर में मेहमान हैं,अभी थोड़ी व्यस्त हूँ। अक्सर दुर्गेश जी तबियत बिगड़ने पर सूचना देते थे। कभी-कभी वो आ भी जाती थी माँ को देखने,पर उस दिन शादी की गहमागहमी में उसने ज्यादा ध्यान नहीं दिया।
१०-१२ दिन बाद दुर्गेश जी के आश्रम में फोन आया कि, आई अब कैसी है,शादी में बहुत काम का बोझ था। मैं बहुत थक गई हूं,अभी तक थकान उतरी नहीं है। अब कैसी है माँ? दुर्गेश जी ने बताया कि,अब मत आओ.. कैसी क्या..वो तो अब नहीं रही..जाने के पहले वो तुम सबको बहुत याद कर रही थी। उन्हें हर आहट पर लगता था कि,तुम उनसे मिलने आई हो। उस ही दिन उनका स्वर्गवास हो गया था। उधर से रोने की आवाज़ आने लगी। दुर्गेश जी फोन रखने ही वाले थे..कि उधर से आवाज़ आई- वो आई के पैर में चांदी की सवा किलो की रकम थी, उसका क्या किया आपने..कहीं बेच तो नहीं दी। आप लोगों का कुछ ठीक नहीं है,मैं आज ही उन्हें लेने आती हूँ।
#वीना सक्सेना
परिचय : इंदौर से मध्यप्रदेश तक में समाजसेवी के तौर पर श्रीमती वीना सक्सेना की पहचान है। अन्य प्रान्तों में भी आप 20 से अधिक वर्ष से समाजसेवा में सक्रिय हैं। मन के भावों को कलम से अभिव्यक्ति देने में माहिर श्रीमती सक्सेना को कैदी महिलाओं औऱ फुटपाथी बच्चों को संस्कार शिक्षा देने के लिए राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। आपने कई पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया है।आपकी रचनाएं अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुक़ी हैं। आप अच्छी साहित्यकार के साथ ही विश्वविद्यालय स्तर पर टेनिस टूर्नामेंट चैम्पियन भी रही हैं। कायस्थ गौरव और कायस्थ प्रतिभा से अंलकृत वीना सक्सेना के कार्यक्रम आकाशवाणी एवं दूरदर्शन पर भी प्रसारित हुए हैं।
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अंतर्मन को छूती रचना।।