हंसते चीखते गली मोहल्ले,
अब वीरान से हो गए है।
शहर के सारे चौहराये,
अब सुनसान हो गए है।
पर घर परिवार के लोग,
घरों में कैद हो गए है।
और परिवार तक ही,
अब सीमित हो गए है।
और बनाबटी दुनियाँ को,
अब वो भूल से गये है।।
महानगर बेहाल हो गए है,
माल सिनेमा बंद हो गए है।
पर गांवों के चौपाल,
अब आवाद हो गये है।
क्योंकि गांवों के वासिंदे,
गांव लौट आये है।
और गांवों में शहरों जैसी,
चहल पहल बढ़ाये है।
छोड़कर चकाचौंध शहरों की,
अब सुखशांति से जीने आये है।।
बेटा बहू नाती पोते आदि,
गांव परिवार में लौट आये है।
और सुख दुख के लिए,
अपनो के बीच आ गये है।
और आधुनिकता की परिभाषा को,
अब महानगरों में छोड़ आये है।
और गांव की खुली हवा में,
मानो वो अब जीने आये है।
और अपनी पुरानी संस्कृति को,
अब ठीक से समझ पाये है।।
जीवन की बहुत बड़ी सीख,
दुनियाँ वालो को मिली है।
बनाबटी चकाचौंध क्या होती है,
ये दुनियाँ को समझ आया है।
विश्वशक्ति बनाने के चक्कर में,
अपने घरों को ही आग लगा दी।
और इसके अच्छे बुरे परिणाम,
पूरे विश्व को मिल गये है।
इसी तो हम लोग अच्छे थे,
अपने पुराने दौर में ही।
जिसमें रूखी सुखी खाकर,
कम से कम शांति से जीते थे।।
जय जिनेंद्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)