हिंदी कवि सम्मेलन मंचों पर गीतों की मिठास है नरेंद्रपाल जैन
इंदौर। राजस्थान की धरती ने साहित्य और देश को न केवल शौर्य और बलिदान सौंपा है बल्कि ऐसे हीरे भी दिए है जिनका कार्य, लेखन और सक्रिय कर्मठता आज काबिल ए तारीफ़ हैं।
हिंदी कवि सम्मेलनों के मंच जिसकी आत्मा गीत है उसे संरक्षित करने का कार्य करने वाले वागड़ धरती ऋषभदेव (केशरिया जी) राजस्थान में निवासरत कवि नरेन्द्रपाल जैन जिनका लेखन मार्मिक व सारगर्भित है और श्रोताओं को मंत्रमुग्ध करने का सामर्थ्य रखता हैं। आज मातृभाषा.कॉम द्वारा भावना शर्मा ने उनका साक्षात्कार लिया एवं श्रोताओं और पाठकों तक पहुँचाया। नरेंद्रपाल जी एक छोटे से कस्बे से निकले इस शख्स ने साहित्य को नई ऊंचाइयां प्रदान की है। यह वहीं कवि है, जिसके शब्दों में वह ताकत है कि पाण्डाल में बैठे हजारों-हजारों श्रोताओं की आंखों में सतत अश्रुधार बह निकले। बेटी की विदाई, सैनिक की बेटी, लाचार माँ की मृत्यु, माँ भारती, माँ-बाप हैं किताबें… आदि ऐसी रचनाएं हैं, जो माहौल में करुण रस की मिश्री घोल देती है। अनगिनत राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर काव्य पाठ के साथ अनगिनत सम्मानों से उनकी झौली झलक रही है।
जिन गीतों के गोविंद को हमने गोपालदास नीरज जी में सुना, वो सामर्थ्य अब मंचों पर गीतकार नरेंद्रपाल जैन में दिखने लगा है।
1.लेखन की प्रेरणा आपको कहाँ से मिलती है?
स्वप्रेरणा। मेरा मानना है कि कुछ चीज़ें ईश्वरीय देन होती है। लेखन आत्मिक औऱ मानसिक विचारों की उपज है, जो कुछ व्यक्तियों में विद्यमान रहते हुए दृश्य, श्रव्य घटनाओं से बाहर आते हैं।
2. कविताओं के अलावा साहित्य की और किस विधा में आपकी कलम यात्रा करती है?
सभी विधाओं में। गीत, ग़ज़ल, छंद आदि। गीत विधा में विशेष रुचि है। श्रृंगार रस, करुण रस, ओज रस, व्यंग्य, देशभक्ति, सामाजिक, पारिवारिक आदि विषयों पर लिखता हूँ औऱ मंचों पर इन सभी रसों की एक साथ यात्रा करता हूँ।
3. चूँकि आप कवि/ शायर हैं अतः लेखन से जुड़े किसी यादगार वाकये की किस्सागोई साझा करें।
जब मैंने पहला कवि सम्मेलन का मंच पढ़ा, तब मैं 18 वर्ष का था। 1994 से प्रारम्भ हुए कवि सम्मेलन और साहित्य सम्मेलनों की अनवरत यात्रा चल रही है। बहुत सी घटनाएं यादगार रहीं, किन्तु सबसे अधिक वे मंच मेरे लिए यादगार रहे, जिनमें मेरे गीतों की प्रस्तुति के बाद श्रोताओं की आंखें नम हो जाती हैं। मैं भी बहुत भावुक हूँ। मेरे गीत बेटी की विदाई, सैनिक की बेटी, लाचार माँ की मृत्यु, माँ भारती की जलती हुई वसुंधरा, माँ-बाप हैं किताबें… ये वे रचनाएँ हैं, जिन्हें मंचों पर पढ़ते समय मेरी स्वयं की आंखें भी भर आती हैं।
4. आपने जैन कवि संगम का निर्माण क्यों किया? इसके उद्देश्य क्या है?
यदि कोई नवोदित आगे बढ़ने के लिए आपकी उंगली पकड़ता है, तो आपको आगे लाना चाहिए। देशभर में जैन समाज के कवि सम्मेलन अधिक होते हैं, किन्तु उनमें जैन कविगणों को ही प्राथमिकता नहीं मिलती है। अतः जैन मंचों पर जैन प्रतिभाओं को भी अवसर मिले । साथ ही जैन समाज के सभी कवि सम्मेलन धार्मिक प्रसंगों पर होते हैं, अतः उन मंचों पर कोई जैनेतर कवि भी मद्य पान कर नहीं आवे, अश्लीलता, फूहड़ता, नोकझोंक इन सभी का कोई स्थान न हो, विशुद्ध मंच हों।
5. गीत लेखन आपके लिए कितना सहज है और इस पर आपकी व्यक्तिगत राय क्या है?
यह सब भावनाओं का खेल है। गीत में लेखन अधिक होने के कारण अब गीत लिखना सहज हो गया है। घटनाएं देख, सुनकर भाव तुरन्त उद्वेलित होकर बाहर आते हैं और पंक्तियां गुनगुनाते हुए गीत सृजन आरम्भ हो जाता है।
6. चूँकि आपके लेखन के मूल में प्रेम, करुण रस एवं व्यंग्य, ओज, देशभक्ति आदि हैं। आप किस प्रकार इन सभी विधाओं में तारतम्य बैठाते हैं?
मन के घोड़े पर जो भाव सवारी करने लग जाते हैं, वही सृजन हो जाता है।
7. साहित्य को आप अपने तरीके से कैसे परिभाषित करते हैं?
साहित्य सिर्फ लोकरंजन या स्वरंजन नहीं होकर समाज और देश के लिए हितकारी भी हो।
8.हिंदी कवि सम्मलेनों का भविष्य आप कैसा देखते हैं?
युवाओं की रुचि काव्य सृजन में बढ़ी है, किन्तु अधिकांश कवि सम्मेलन राजनीति और समूहों की संकीर्णता में उलझे हुए हैं। इसके बावजूद भी विशुद्ध मंच अभी-भी विद्यमान हैं। आने वाले समय में सोशल मीडिया इस क्षेत्र औऱ अधिक महत्व का हो जाएगा।
9. लेखन के अलावा आपके शौक में और क्या-क्या शुमार है?
राजकीय सेवा में कार्यरत हूँ। समय मिलने पर कभी-कभी चित्रकारी करने बैठ जाता हूँ।
10. कुछ बातें कवि सम्मेलनों के।मंचों के अनुभवों के बारे में बताएं।
कवि सम्मेलनों में वे रचनाएँ पढ़नी चाहिए जिनके शब्दों में सरलता हो, जो श्रोताओं के दिल और दिमाग में उतर जाए। श्रोता जब घर जाएं आपकी पंक्तियाँ गुनगुनाते हुए जाएं।
11. आपके प्रिय कवि कौन है जिनसे आप प्रेरणा प्राप्त करते हैं?
गोपालदास नीरज साहब, हरिवंशराय बच्चन साहब, डॉ कुंवर बेचैन जी, डॉ विष्णु सक्सेना जी। इनकी रचनाओं ने मुझे बहुत प्रभावित किया है। यद्यपि में हास्य बहुत कम लिखता हूँ, किन्तु पद्मश्री सुरेंद्र शर्मा जी को बहुत सुनता हूँ। डॉ कुमार विश्वास जी वर्तमान की युवा पीढ़ी के आदर्श हैं।
12. मातृभाषा परिवार के नवोदित रचनाकारों को आप क्या सन्देश देना चाहेंगे?
नियमित सृजन करें, इससे शब्द कोष में वृद्धि होगी और नए भाव उपजेंगे, जिससे लेखन भी सुदृढ होगा।
13. पाठकों के लिए कुछ खास ,जो आप कहना चाहें?
पाठक और श्रोता समालोचक होते हैं। आप साहित्य प्रेमी हैं और आप को लगे कि कहीं पर साहित्य का अवमूल्यन हो रहा है, उस समय आप अपनी सकारात्मक भूमिका अदा करें।
14. आपने विदेशों में कहां-कहाँ काव्य पाठ किया?
बैंकॉक और नेपाल में।
साथ ही वर्ष 2000 में न्यू जर्सी में मेरी काव्य पुस्तक मनोभाव खूब पसंद की गई। जिसका माध्यम गुजरात प्रवासी एसोसिएशन रहा।
(भावना शर्मा, दिल्ली)