प्रेम के लिए कारण नहीं होता

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जिस प्रेम का कारण बताया वह प्रेम नहीं होता, प्रेम के साथ क्यों कोई संबंध नहीं है ! क्या राधा कृष्ण के बीच कोई प्रेम का कारण हम कभी जान पाये !! नहीं ना…।

यह तो अद्भुत कई जन्मों का प्रेम है।प्रेम के भीतर हेतु होता ही नहीं, यह अकारण प्रेम की भाव दशा है। न कोई शर्त होती, ना ही राधा कृष्ण के प्रेम की तरह सीमा होती है।
प्रेम मस्तिष्क की बात नहीं है, ह्रदय से निकला भाव है। इसलिए प्रेम होता है, तब बस होता है …!!

राधा से कृष्ण का अटूट प्रेम बंधन है, यह अनोखा भरोसा है , जैसे कृष्ण का राधा पर है,जैसे विश्वास की भाँति प्रबल बंधन है…।जैसे फूलों को देखते ही उसमें सुगंध है ही यह भाव जागृत होते है, ऐसे ही प्रेम गुण परमात्मा मे श्रद्धा है ही, यह जागृत होते हैं ।

शायद प्रेम शब्द को सुन एक सुगबुगाहट सी हम अपने आस पास महसूस करने लगते हैं न जाने कितने तीर आंखो की तरकश में एक सवालिया तीर दागने लगते है, पर क्यों …?

उसका प्रेम जब जब गुजरता है मेरे भीतर
मेरे अंदर की ख़ामोशी बहुत चीखती है कहना चाहती है
उसके बिना जीना कोई जीना नहीं है….पर याद आ जाती है मां की कातर दृष्टि जो याद दिलाती है बार बार प्रेम करना शोभा नहीं देता ,प्रेम के बदले में मिलने वाले
भयंकर दंडों को वो चित्रांकित कर देती है
अपनी कातर दृष्टि…
पहले जैसे दादी बताया करती थी , झूठ बोलने,चोरी करने,या किसी भी तरह का पाप करने के पशचात् जब मृत्यु को प्राप्त होते हैं धर्मराज के समक्ष नरक के
लेखा जोखा के अनुरूप मिलने वाले भयंकर दंडों
वाले चित्र का पोस्टर दिखाकर डराती थी कि किस तरह उबलते तेल में डाला जाता है
सर्प बिच्छुओं से भरे कुंड में पटक दिया जाता है,
और हम इन्हें देखकर ही डर कर,झूठ चोरी आदि किसी भी गलत कार्य को करने से सदैव डर कर रहते थे…
और अब मां का कहना है “प्रेम” करना भी गलत है
और पाप है…जिसकी सजा बहुत भयंकर हो सकती है
और सच मैने इस “पाप” से मुंह फेर लिया ,मार लिया “प्रेम” को अपने…और जाना प्रेम पाप है…
और सीखा नफ़रत करना…और कह दिया उसे झूठ कि
प्रेम नहीं है उससे…।।
पर दादी,मां एक बात बताओ ना,जब धर्मराज झूठ बोलने की सजा सुनाएंगेतब तुम बचाओगी ना मुझे
या….बचा लोगी अभी
मेरा प्रेम….??

** राधा कृष्ण के प्रेम की मुरली मधुर बजती है
मीरा की वीणा भी प्रेम रस झरती है ,
पावन बना प्रेम के इनको
हम पूजा करते हैं ,
फिर कैसे हम प्रेम को चरित्रहीन कहते हैं …?
कैसे कुछ प्रेम पावन हो जाते हैं ।
कैसे कुछ प्रेम शाश्वत नहीं कहलाते हैं …?**

अक्सर यही कहा जाता है प्रेम कभी सच्चा नहीं होता है , प्रेम की एक उम्र होती है प्रेम बन्धन को मानता है , प्रेम की एक मर्यादा होती है प्रेम सीमाओं में निर्धारित होता है , कुछ प्रेम मर्यादा नहीं मानते उनकी कोई सीमा रेखा नहीं होती फिर वो कैसे पूजनीय हो जाते हैं कैसे हम उनके मन्दिर बनाते हैं उनके प्रेम की महिमा गाते हैं रास लीलाओं में उनका वर्णन करते हैं , प्रेम की उपमाओं में उनको श्रृंगारित करते हैं ।
क्यों आज प्रेम लांछित होता है , नहीं यह सिर्फ हमारी निम्न सोच है वरना प्रेम वो जज़्बात हैं , वो एहसास है जो हमें एक ऐसी आत्मा से जोड़ता है जिससे हमारा जन्म जन्मांतर का रिश्ता होता है जो न जाने शिव तपस्या की तरह कितने ही जन्म लेकर पूरा होता है , जिंदगी में हजारों लोग मिलते हैं रिश्ते होते हैं फिर क्यों कोई एक ही ऐसा होता है जिसके लिए रूह तड़प महसूस करती है,,, जिसको पाने से जिसके साथ होने से भी कहीं ऊपर उसको अपने अंदर जीना होता है ।
प्रेम बहुत पवित्र वो बन्धन है जो जिस्म से नहीं रूह से जुड़ता है जो मात्र आकर्षण नहीं उस कुरूपता से भी निखरता है जिस में रूह एक दूसरे को अपनाती है प्रेम कभी कमज़ोर नहीं होता वो कभी बाहरी आचरण से नहीं बिखरता। प्रेम अडिग प्रेम धैर्य की प्रतिमूर्ति है जो जब हाथ पकड़ता है तो सांसों में चलता है , प्रेम कमियों में भी साथ नहीं छोड़ता। प्रेम हमें निखारता है प्रेम हमें जीवन के प्रति सार्थक नज़रिया देता है , प्रेम हमें सफल बनाता है। प्रेम अश्कों की दुनिया से निकाल फिज़ाओं सी रंगत देता है फिर प्रेम अपवित्र या किसी बन्धन में कैसे बन्ध सकता है…?
कैसे प्रेम सीमाओं में दम तोड सकता है …?
प्रेम को समझो आकर्षण को नहीं
प्रेम हर जन्म में पावन है…।

**राधा-कृष्ण और बांसुरी की वो आखिरी धुन… **

संसार की सबसे अलौकिक,अद्भुत और दिव्य प्रेम कहानी यदि कोई है तो नि:संदेह वह राधा-कृष्ण की ही है!
एक ऐसी प्रेम कहानी जो न जाने कितने युगों के अंतर को पार कर आज भी हमारे आसपास अपने उसी प्रेममयी अलौकिक अहसास को जीवित रखे हुए है !
चाहे फिर यह किस्से-कहानियों के रूप में हो, कविताओं के रूप में हो ,रंगमंच के रूप में हो या फिर फिल्मों या टेलीविज़न धारावाहिकों के रूप में हो…।

धारावाहिक राधा-कृष्णा में उनकी खूबसूरत सी प्रेम कहानी को देख कर न जाने क्यों मन में एक टीस सी उठा करती है क्या कभी राधा के अंतर्मन में उतर कर देखा है तुमने ओ , कृष्णा …?
तुम उसे जिस पल, जिस हाल में बिलखता छोड़ गए और फिर मुड़ कर कभी नहीं देखा , क्या बीती होगी उस पर …?
हां , यह सत्य है कि तुम दोनों कभी दो न थे !
फिर भी यदि संसार में लीला रची ही थी तो संसार को संदेश तो देते,कि अपनी राधा से फिर दोबारा मिले थे तुम !
हां , रुको , सुना है मैंने , शायद पहुंचे थे तुम !
न न …तुम नहीं राधा पहुंची थी तुमसे मिलने , क्योंकि शायद तुमसे ज्यादा दीवानी वह थी तुम्हारी …
और इतना प्रेम तो तुम भी खुद से न करते होंगे जितना हमेशा से ही राधा ने तुमसे किया …
तो तुमसे मिलने का निर्णय भी उसी ने किया था… !

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह माना जाता है कि अपनी वृद्धावस्था में ,सभी पारिवारिक दायित्वों का निर्वाह करने के पश्चात जब राधा का मन हुआ कि चल कर अब श्रीकृृष्ण से मिला जाए तो वे कई दिनों तक निरंतर पैदल चलकर द्वारका जा पहुंची और श्रीकृष्ण से मुलाकात करने में सफल रही।
फिर आगे की कहानी कुछ यूं सुनी गई है कि राधा वहीं कृष्ण के महल में एक देविका के रूप में रहने लगीं। वहां मौजूद किसी अन्य व्यक्ति को इनके बारे में कोई जानकारी नहीं थी। राधा रोज दूर से ही कृष्ण के दर्शन किया करतीं लेकिन न जाने क्यों उन्हें अब यह अहसास होने लगा कि भौतिक रूप से श्रीकृष्ण के करीब रहने का कोई औचित्य नहीं है,ऐसा सोचना शायद एक प्रकार से सही भी था क्योंकि कृष्ण तो सदा से उनके भीतर ही समाए थे,
और फिर इसके बाद उन्होंने बिना किसी को कुछ बताए द्वारका का महल छोड़ दिया…।

प्रौढ़ावस्था में जीर्ण-क्षीर्ण होकर भटकती हुई राधा नहीं जानती थीं कि वे कहां जा रही हैं, आगे मार्ग पर उन्हें और क्या-क्या मिलेगा…?
लेकिन भगवान श्रीकृष्ण तो सर्वज्ञात हैं ,वे राधा के सामने प्रकट हुए और पूछा कि ‘ तुमने मुझसे पूरे जीवन में कभी कुछ नहीं मांगा .आज जो चाहे मांग लो… !’
तब राधा जी ने कुछ नहीं कहा और बस मौन रहकर कृष्ण को निहारती रहीं…!
श्रीकृष्ण ने राधा से फिर एक बार कहा कि “जीवन के इस पड़ाव पर आज उनका हक बनता है कि एक बार तो कम से कम अपनी इच्छा अवश्य बता दें।
तब श्रीकृष्ण के बहुत मान-मनुहार करने पर राधा ने उनसे एक बार फिर से वही पहले की ही तरह उनकी दिव्य बांसुरी की धुन सुनने की इच्छा प्रकट की जिसे सुनकर वह अपनी सुध-बुध भूल दीवानी बन , दौड़ी चली आया करती थी…।
और जैसा कि पौराणिक कहानियों में लिखा गया है कि तब श्रीकृष्ण ने बांसुरी की सबसे मधुर धुन बजाकर राधा को सुनाई।
और फिर बस, इसी धुन को सुनते-सुनते राधा अपनी देह त्याग , सदा-सदा के लिए श्रीकृष्ण में ही विलीन हो गई…
इसी के साथ ही कृष्ण ने भी अपनी बांसुरी तोड़कर खुद से कोसों दूर फेंक दी…।

इस अलौकिक प्रेम कहानी को फिर से जीने , हमारे इस युग में भी कभी आओ न तुम , राधा-कृष्ण… !

रीमा मिश्रा “नव्या”

आसनसोल(पश्चिम बंगाल)

परिचय-

1- नाम-रीमा मिश्रा नव्या
2- पिता का नाम-श्री देवदत्त मिश्रा
3- स्थाई पता
जिला-(पश्चिम बर्धमान)
थाना-जामुड़िया
पिन-713342

4- जन्म तिथि-15/05/1993
5- शिक्षा–एम.ए(हिंदी)
पोस्ट ग्रेजुएशन डिप्लोमा इन ट्रांसलेशन
8- व्यवसाय-शिक्षिका

—प्रकाशित रचनाएँ—

1)नर्मदा प्रकाशन द्वारा अभिति साझा काव्य संकलन में चार कविताएँ प्रकाशित
2)लघुकथा-प्रखर गूंज साहित्यनामा मासिक पत्रिका द्वारा एक लघुकथा प्रकाशित

3)विचार सहचर मासिक पत्रिका में चार कविताएँ प्रकाशित

5)महिला अधिकार अभियान पत्रिका में चर्चित लेखिका के भाषण का लिप्यंतरण,एवं दो आलेख

6)अभिश्री मासिक पत्रिका में बुकर पुरुस्कार 2019 पर लेख

7)इंक़लाब मासिक पत्रिका द्वारा तीन कविताएँ प्रकाशित

8)सर्वभाषा ट्रस्ट त्रैमासिक पत्रिका द्वारा एक कविता प्रकाशित

9)नारी शक्ति सागर पत्रिका द्वार एक कविता प्रकाशित

10हम हिंदुस्तानीसाप्ताहिक U.S.A अमेरिकाद्वारा छः कविताएँ प्रकाशित
11)**कनाडा के *हिंदी अब्रॉड* साप्ताहिक पत्रिका में कई आलेख और कविताएँ प्रकाशित
12)भोजपुरी पत्रिका साहित्य सरिता द्वारा एक भोजपुरी कविता प्रकाशित

13)कई दैनिक अखबारों –आसनसोल कोल्फील्ड मिरर
दिल्ली वोमेन्स एक्सप्रेस
दिल्ली मयूर संवाद
राजस्थान स्वर्ण आभा*
उत्तरप्रदेश हाथरस अमर तनाव
मेरठ विजय दर्पण टाइम्स
**निर्झर टाइम्स *,* कंट्री ऑफ इंडिया (लखनऊ)** में कई आलेख प्रकाशित
अन्य कई पत्र पत्रिकाओं में लेख एवं कविताओं का प्रकाशन
14–** अनुभव पत्रिका ** में प्रकाशित आलेख एवं कविताएँ प्रकाशित
15–एक लघुकथा संकलन प्रकाशित।
16–तीन काव्य संग्रह अप्रकाशित
17) सम्पर्क क्रांति, श्री राम एक्सप्रेस, विभोर सन्देश देवपथ इत्यादि दैनिक एवं साप्ताहिक पत्रिकाओं में प्रकाशित आलेख एवं कवितायें
प्राप्त सम्मान
*विश्व हिंदी लेखिका मंच * द्वारा

  • नारी शक्ति सागर सम्मान*
    कोल्फील्ड मिरर द्वारा साहित्यिक सम्मान पत्र
    नवीन कदम छत्तीसगढ़ द्वारा श्रेष्ठ रचनाकार सम्मान
    कृतिमान साहित्य संस्था द्वारा सरस्वती पुत्री सम्मान
    काव्य कलश पत्रिका द्वारा श्रेष्ठ रचनाकार सम्मान
    साहित्य द्वार संस्था द्वारा श्रेष्ठ रचनाकार सम्मान

साहित्य संगम संस्थान नई दिल्ली द्वारा प्राप्त उपनाम प्रमाण पत्र,एवं प्राप्त उपनाम-
नव्या

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।