1-
वो (ग़ज़ल)
मुझे मालूम है कंधे से उठ, सर पर चढ़ेगा वो,
मगर खुश हूँ कि है मेरा लहू, मुझसे बढ़ेगा वो।
तुम्हें तख़लीफ़ क्यों होती,बताओ देखकर झुकते,
पढ़ाया जो उसे मैंने, वही सब तो पढ़ेगा वो।
यही दस्तूर है जग का कि जैसा बीज फल वैसा,
मिलेगा गुरु जिसे जैसा, उसी जैसा गढ़ेगा वो।
चला चरखा, बनाया सूत, बेमन और बेढंगा,
अगर बिगड़ा हुआ है सूत तो बिगड़ा कढ़ेगा वो।
गटक सब, लीलता मीठा व कड़वा थूक देता जो,
अवध हर दोष – ऐबों को भी दूजे पे मढ़ेगा वो।
2-
जिंदगी (अतुकांत कविता)
ओस की इक बूँद – सी
है जिंदगी मेरी
कभी फूल, कभी धूल
कभी आग या हवा
सोख लेता सूर्य
या बरसात में मिलना
है नहीं रक्षित कहीं
मेरी जगह
मेरा वज़ूद।
जिंदगी का चक्र
फिर भी ठेलता हुआ
चल रहा हूँ देख सूरज,
चाँद, तारों को
अनगिनत राही
गये होंगे क्षितिज को लाँघकर
छोड़कर अमरत्व की
ख़्वाहिश हठीली
अप्राप्य मनभावन रसीली
कर्मपथ पर बढ़ रहा हूँ
जिंदगी सर पर उठाये
चल रहा हूँ।
है मगर कोशिश मेरी
कि लौटकर
पीछे कभी मत देखना
रुकना नहीं
झुकना नहीं
बस जिंदगी की बूँद को
पल भर सही
अपनत्व दे दो।
3-
कोरोना (ग़ज़ल)
हादशों का शहर है, न जाओ सजन,
अब तो घर में समय को बिताओ सजन।
वायरस मौत बनकर रही घूमती,
हाथ उससे नहीं तुम मिलाओ सजन।
थूकते कुछ अमानुष, इधर से उधर,
उनसे खुद भी बचो फिर बचाओ सजन।
हाथ डंडा लिये, घूमती है पुलिस,
इस उमर में न इज्जत लुटाओ सजन।
हाथ में हाथ लेकर, हुए हमसफ़र,
काम में हाथ मेरा, बँटाओ सनम।
बाल – बच्चे नहीं, बस अकेले मिरे,
फर्ज़ बापू का, कुछ तो निभाओ सजन।
सेनिटाइज़ करो खूब घर – आँगना,
साफ रहकर, सफाई सिखाओ सजन।
आप मेरे सखा, मैं सखी आपकी,
प्रेम के फूल, फिर से खिलाओ सजन।
मान मेरा कहा, घर से बाहर न जा,
लॉकडाउन है लॉकअप में आओ सजन।
परिचय
नाम : अवधेश कुमार विक्रम शाहसाहित्यिक नाम : ‘अवध’पिता का नाम : स्व० शिवकुमार सिंहमाता का नाम : श्रीमती अतरवासी देवीस्थाई पता : चन्दौली, उत्तर प्रदेश जन्मतिथि : पन्द्रह जनवरी सन् उन्नीस सौ चौहत्तरशिक्षा : स्नातकोत्तर (हिन्दी व अर्थशास्त्र), बी. एड., बी. टेक (सिविल), पत्रकारिता व इलेक्ट्रीकल डिप्लोमाव्यवसाय : सिविल इंजीनियर, मेघालय मेंप्रसारण – ऑल इंडिया रेडियो द्वारा काव्य पाठ व परिचर्चादूरदर्शन गुवाहाटी द्वारा काव्यपाठअध्यक्ष (वाट्सएप्प ग्रुप): नूतन साहित्य कुंज, अवध – मगध साहित्यप्रभारी : नारायणी साहि० अकादमी, मेघालयसदस्य : पूर्वासा हिन्दी अकादमीसंपादन : साहित्य धरोहर, पर्यावरण, सावन के झूले, कुंज निनाद आदिसमीक्षा – दो दर्जन से अधिक पुस्तकेंभूमिका लेखन – तकरीबन एक दर्जन पुस्तकों कीसाक्षात्कार – श्रीमती वाणी बरठाकुर विभा, श्रीमती पिंकी पारुथी, श्रीमती आभा दुबे एवं सुश्री शैल श्लेषा द्वाराशोध परक लेख : पूर्वोत्तर में हिन्दी की बढ़ती लोकप्रियताभारत की स्वाधीनता भ्रमजाल ही तो हैप्रकाशित साझा संग्रह : लुढ़कती लेखनी, कवियों की मधुशाला, नूर ए ग़ज़ल, सखी साहित्य, कुंज निनाद आदिप्रकाशनाधीन साझा संग्रह : आधा दर्जनसम्मान : विभिन्न साहित्य संस्थानों द्वारा प्राप्तप्रकाशन : विविध पत्र – पत्रिकाओं में अनवरत जारीसृजन विधा : गद्य व काव्य की समस्त प्रचलित विधायेंउद्देश्य : रामराज्य की स्थापना हेतु जन जागरण हिन्दी भाषा एवं साहित्य के प्रति जन मानस में अनुराग व सम्मान जगानापूर्वोत्तर व दक्षिण भारत में हिन्दी को सम्पर्क भाषा से जन भाषा बनाना तमस रात्रि को भेदकर, उगता है आदित्य |सहित भाव जो भर सके, वही सत्य साहित्य ||