क्या परिवार की प्रगति का पर्याय बन गई हैं कामकाजी महिलाएं?

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  महिला सशक्तिकरण का उद्देश्य ही उन्हें अपने पांव पर खड़ा करना है।उनके ब्रह्मचर्य काल से लेकर गृहस्थ जीवन तक के मनोबल को बढ़ाना है।वह शादी के बिना भी मां-बाप पर बोझ ना बने और अपना जीवनयापन अपनी इच्छा अनुसार स्वतंत्रतापूर्वक जी सके।उसे अबला से सबला बनाना मुख्य उद्देश्य के पर्याय हैं।
  मान्यता यह भी है कि गृहस्त खुशहाल जीवन के पीछे नारी शक्ति का हाथ होता है।बुद्धिजीवियों का तो यहां तक मानना है कि प्रत्येक पुरुष की सफलता एवं विफलता का श्रेय नारी शक्ति को ही जाता है।
  इसके अलावा नारी शक्ति को सशक्त करने का उद्देश्य यह भी है कि ईश्वर ना करें कि यदि शादीशुदा महिला के परिवारिक जीवन में,पति द्वारा धोखा देने के उपरांत या पति के अस्वस्थ होने की स्थिति में या पति को किसी भी कारण नौकरी से निकाल देने पर या अपने पति के मरणोपरांत अपने परिवार का दायित्व कंधों पर पड़ जाए।तो वह उक्त दायित्व का निर्वाह सफलतापूर्वक करते हुए अपने परिवार का भरणपोषण कर सके।
  ऐसे ही एक और एक ग्यारह होते हैं और वर्तमान आर्थिक चुनौतियों के चलते अकेले पति की कमाई से परिवार की प्रगति संभव ही नहीं है।प्रगति नहीं है, तो पति-पत्नी के सपने पूरे नहीं होते।जिससे परिवारिक जीवन खुशहाल नहीं हो सकता।जिसके परिणाम स्वरूप घरेलू हिंसा आरम्भ हो जाती है।रोज के झगड़े बढ़ जाते हैं।जो घर से निकल गली-मोहल्ले से होते हुए विवाह विच्छेद का विकराल रूप धारण कर लेते हैं।जिसका सब से अधिक दुष्प्रभाव निर्दोष बच्चों पर पड़ता है और उनका जीवन नर्क में परिवर्तित हो जाता है।
  किंतु यदि महिला पढ़ी-लिखी,बुद्धिमान,कुशल और सर्वसम्पन्न होगी, तब ऊपरोक्त कठिनाईयों से परिवार को बचाने में वह सक्षम होंगी।ऐसे में विपत्तियों एव चुनौतियों की क्या औकात कि वह नारी शक्ति के समक्ष ठहर पाएं?

#इंदु भूषण बाली

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