कहाँ से हम चले थे,
कहाँ तक आ पहुंचे।
सभी की मेहनत ने,
दिखा जोश जो अपना।
तभी तो हम भारत को,
इतना विकसित कर सके।
पिन से लेकर एरोप्लेन,
अब हम बनाने जो लगे।।
कड़े परिश्रम और लगन,
के द्वारा ये हुआ है।
तभी तो अपने भारत को,
दुनियां में स्थापित कर सके।
हमें उन विध्दमानो और,
वैज्ञानिकों के योगदानों को।
कभी भी भूल नहीं सकते,
उन किये गये कामो को।।
पर अब हम फिर से,
वही पर पहुँच रहे है।
जहाँ इंसानों और जानवरों में,
कोई अंतर नहीं दिखता।
पढ़े लिखे और बुध्दिजीवी भी,
वही सब काम कर रहे।
जो उन से बेहतर अनपढ़,
हमारे देश में कर सकते।।
कहाँ से हम चले थे,
कहाँ तक आ पहुंच है।
सारी मेहनत और लगन का,
अब बुरा हाल हो गया।
यदि ऐसा ही चलता रहा,
हमारे अपने देश में।
तो हम इंसानियत की,
सारी मर्यादाओ भूल जाएंगे।
और फिर इंसान ही इंसान को,
बड़े आसानी से खा जाएगा।।
#संजय जैन
परिचय : संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं पर रहने वाले बीना (मध्यप्रदेश) के ही हैं। करीब 24 वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं।ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों पर भी दिखा चुके हैं। इसी प्रतिभा से कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। मुम्बई के नवभारत टाईम्स में ब्लॉग भी लिखते हैं। मास्टर ऑफ़ कॉमर्स की शैक्षणिक योग्यता रखने वाले संजय जैन कॊ लेख,कविताएं और गीत आदि लिखने का बहुत शौक है,जबकि लिखने-पढ़ने के ज़रिए सामाजिक गतिविधियों में भी हमेशा सक्रिय रहते हैं।