तेरी बेवफ़ाई के किस्से मेरे अश्क कहते हैं ।
तेरी याद में ये मोती हरदम यूं ही बहते हैं ।।
न ही तु ज़िन्दगी में ,न तेरा नाम बाक़ी है ।।।
तेरा नाम का दीवाना अब मुझको लोग कहते हैं ।।।।
तेरे बिन शीशमहल भी अब वीराना लगता है ।
ज़माना का हर शख्स़ मुझे बेग़ाना लगता है ।।
दर्द ए जुदाई हम सनम दिन रात सहते हैं ।।।
तेरे नाम का दीवाना अब मुझको लोग कहते हैं ।।।।
मेरी धड़कन में ,सांसों में हमेशा शोर रहता है ।
मेरे दिल के नगर में बस सनम एक तू ही रहता है ।।
महल ख़्वाबों के यूं मेरे पल पल यूं ही ढहते हैं ।।।
तेरे नाम का दीवाना अब मुझको लोग कहते हैं ।।।।
#डॉ.वासीफ काजी
परिचय : इंदौर में इकबाल कालोनी में निवासरत डॉ. वासीफ पिता स्व.बदरुद्दीन काजी ने हिन्दी में स्नातकोत्तर किया है,साथ ही आपकी हिंदी काव्य एवं कहानी की वर्त्तमान सिनेमा में प्रासंगिकता विषय में शोध कार्य (पी.एच.डी.) पूर्ण किया है | और अँग्रेजी साहित्य में भी एमए कियाहुआ है। आप वर्तमान में कालेज में बतौर व्याख्याता कार्यरत हैं। आप स्वतंत्र लेखन के ज़रिए निरंतर सक्रिय हैं।