राजा का राज्य,राजा के गुण

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prabhat dube
एक राज्य का बहुत बड़ा राजा था,जो निःसंतान था। वह बहुत ही बड़े राज्य का राजा था,पर संतान न होने की वजह से बेहद परेशान रहा करता था।उसे यह चिंता हमेशा सताती कि मेरे बाद इस राज्य का राजा कौन होगा, मेरी जनता की देखभाल कौन करेगा। वह राजा बेहद ही जनता प्रिय था, राजा ने संतान प्राप्ति के लिए बहुत से प्रयास किए,मगर कोई लाभ नहीं हुआ। अतः उसने निर्णय लिया कि, मैं अपने जनता में से चुनकर ही इस राज्य का राजा घोषित करूँगा। राजा ने जनता सम्मेलन का आयोजन किया,सम्मेलन में राज्य के बहुत से अमीर,गरीब,महात्मा,विद्वान शामिल हुए। राजा ने अपनी बात सम्मेलन में बताई, और बोले-जो भी सज्जन जनता की सेवा करने के इच्छुक हैं,वह हमारे पास आएं। सबसे पहले एक रूपवान,धनरहित व्यक्ति सामने आया। राजा ने उनसे पहला सवाल किया?
राजा-आप अपनी जनता के प्रति क्या करेंगे?
व्यक्ति-मैं जनता को कर मुक्त कर दूँगा,उसे स्वतंत्र जिंदगी दूँगा,राज्य का समुचित विकास करुंगा।
राजा ने उसे जाने को कहा।
इसके बाद एक गरीब व्यक्ति आया जो बुद्धिमान,तेजस्वी तथा प्रजा लायक था। राजा ने फिर सवाल किया।
राजा-राज्य का राजा कैसा हो?
व्यक्ति-महराज राज्य का राजा दयालु होना चाहिए,धर्मयुक्त होना चाहिए।
राजा को उनके सवालों का जवाब शायद नहीं मिला। राजा चिंता में डूब गए,अब कौन संभालेगा मेरे राज्य को।
राजा के राज्य में एक महात्मा जी आए। राजा ने उनका भव्य स्वागत किया,महात्मा जी बहुत ही प्रसन्नचित हुए। इस स्वागत से महात्मा जी ने कहा-राजा मैं आपके स्वागत से अतिप्रसन्न हूँ,आप मुझसे कुछ मांगो,मैं तुम्हें दूँगा। राजा ने बड़ी ही नम्र आँखों से महात्मा जी को कहा-महात्मा जी मुझे कोई संतान नहीं है। मेरे देहांत के बाद राज्य की देखभाल कौन करेगा? लेकिन मैं आपसे संतान नहीं मांगता, क्योंकि मैंने राज्य के लिए उत्तराधिकारी खोजने की कोशिश की मगर सब अयोग्य साबित हुए।
मैंने प्रश्न किया, पर उन्होंने सही उत्तर नहीं दिया,इसलिए अगर मेरी संतान हो भी जाए और वह अयोग्य हो तो मेरी समस्या बनी रह जाएगी। इसलिए आप मुझे इस राज्य का उत्तराधिकारी दें।
महात्मा ने कहा-महराज ये कलियुग है,सारे व्यक्ति माया,मोह से घिरे हुए हैं सब अपने लिए ही सोचते हैं, लेकिन कोई बात नहीं। मुझे एक अबोध वालक चाहिए और पंद्रह वर्ष का समय। राजा ने उस महात्मा को अबोध वालक और पंद्रह वर्ष का समय दे दिया। महात्मा जी अबोध वालक को लेकर चले गए। महात्मा जी पंद्रह वर्ष के बाद एक नवयुवक के साथ फिर आए,राजा से मिले। राजा ने कहा-महात्मा जी क्या आप हमारी इच्छा की पूर्ति करके आए हैं? हमारे राज्य का उत्तराधिकारी कौन होगा? महात्मा जी ने कहा-महाराज ये नवयुवक… जो एक महात्मा का कपड़ा पहने हुए,मुख पे चमक,सूर्य की किरणों के जैसा चमकता हुआ चेहरा।
राजा ने कहा ठीक है-मैं इसका निर्णय कल जनता की सभा में करुगाँ।
दूसरे दिन सभा आयोजित हुई। राजा ने नवयुवक को बुलाया और फिर वही सवाल किया।
राजा-आप अपनी जनता के लिए क्या करेंगे ?
नवयुवक-महराज मैं जनता का सहयोगी बनूँगा,शासनकर्ता नहीं क्योंकि जनता पुत्र के समान होती है।
पुत्र के साथ पिता का कर्त्तव्य है कि वह पुत्र का सहयोगी बने।
राजा-राज्य का राजा कैसा हो?
नवयुवक-महाराज,राज्य का राजा मन से कठोर एवं हृदय से दयालु होना चाहिए,सिर्फ दयालु नहीं। क्योंकि दयालु व्यक्ति,सत्य और असत्य में फर्क नहीं देखता,वह सबको माफ कर देता है। मगर मन से कठोर ओर हृदय से कोमल व्यक्ति सदा न्यायप्रिय होता है। मन से व्यक्ति सत्य,असत्य को समझता है और गलत कार्य करने वालों को दंडित करता है,और हृदय कोमल रहने से वह गरीबों पर सदा दयावान होता है।
राजा बेहद प्रसन्नचित हुए। सभा में ही राजा ने उस युवक को वहाँ का राजा बना दिया और स्वयं जंगल में तपस्या करने चले गए।

                                                                                  #प्रभात कुमार दुबे 

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