दाल रोटी खाते थे, ना अस्पताल जाते थे,,
ना कभी चेकअप कराया, ना खून चढवाते थे,,
लकड़ी के हाथी घोड़े थे, एक ढोल एक बाजा था,
दादी की कहानियों में, हर एक बेटा राजा था,,
आँखो की शरम थी और सबका आदर मान था,,
कितना भी झगड़ा था चाहे दिल परेशान था,,
मगर बड़ो के साथ कभी जुबान ना लड़ाते थे,,
दाल रोटी खाते थे, ना अस्पताल जाते थे,,
ना कभी चेकअप कराया, ना खून चढवाते थे,
स्कूल सरकारी थे पर सस्ती सी पढ़ाई थी,,
मास्टर जी भगवान थे पर डंडो से पिटाई थी,,
मस्ती के रंग थे, ना डिप्रेशन की दवाई थी,,
नंबर कम आने पर बच्चे फांसी ना लगाते थे,,
दाल रोटी खाते थे, ना अस्पताल जाते थे,
ना कभी चेकअप कराया, ना खून चढवाते थे,,
मिट्टी का घरौंदा था, वो कड़ियों का मकान था,
सारे भाई कट्ठै थे, वो घर आलीशान था,,
इतना आना जाना था, रोज़ घर बेठा मेहमान था,
घर बेशक छोटा था पर माँ बापू वृद्धाश्रम ना जाते थे,
दाल रोटी खाते थे, ना अस्पताल जाते थे,
ना कभी चेकअप कराया, ना खून चढवाते थे,,
चूल्हे की रोटीया थी और हांडी का साग था,,
सादा सा खाना वो बड़ा लाज़वाब था,,
दूध दही शक्कर घी का “राणा” गजब का स्वाद था,,
गाय, चिड़िया ओर कुत्ते की भी रोटी बनवाते थे,,
दाल रोटी खाते थे, ना अस्पताल जाते थे,
ना कभी चेकअप कराया, ना खून चढवाते थे,,
सचिन राणा हीरो
हरिद्वार(उत्तराखंड)