खोखला हिन्दी विरोध, दबाव में नुकसान ज्यादा

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arpan jain

देश में नई सरकार बन गई, सरकार के आते ही के. कस्तूरीरंगन समिति ने नई शिक्षा नीति का मसौदा सरकार को सौंपा था, इसके तहत नई शिक्षा नीति में तीन भाषा प्रणाली को लागू किया जाना प्रस्तावित हुआ, इसी को लेकर केंद्र के प्रस्ताव पर हंगामा मचना शुरू हो गया है। इसे लेकर तमिलनाडु से विरोध की आवाज उठ रही है।
आखिर दक्षिण में विरोध की बात का है? क्या अंतराष्ट्रीय लोकभाषा सर्वेक्षण विभाग की रपट से दक्षिण अनभिज्ञ है जो यह कहती है कि *’जो बच्चें एक से अधिक भाषा में दक्ष या कहें प्रवीण होते है वो अन्य बच्चों की तुलना में 67% अधिक बुद्धिमान होते है’*
या फिर इस बात से अनभिज्ञ है कि सम्पूर्ण राष्ट्र की 42% जनता हिंदी को अपनी प्रथम भाषा मानती है, और यदि दक्षिण भारतीयों को व्यापार-विनिमय आदि दक्षिण राज्य के अतिरिक्त किसी अन्य राज्य से करना है तो वहाँ के लोगों की भाषा हिंदी का समझना अनिवार्य है, क्योंकि अंग्रेजी जानने-समझने वाले महज 7 प्रतिशत लोग ही है हिंदुस्तान में। या फिर दक्षिण इस बात से अनभिज्ञ है कि उनके राज्य में आने वाले पर्यटकों में 70 फीसद हिन्दीभाषी पर्यटक है, यदि दक्षिण में हिंदी नहीं समझेंगे लोग तो पर्यटकों से कैसे व्यवहार बनाएंगी और हर व्यक्ति स्थानीय गाइड का खर्च उठाने में सक्षम नहीं होता, इसलिए दक्षिण के पर्यटन उद्योग प्रभावित होगा।
अथवा दक्षिण इस बात से भी मुँह मोड़ रहा है कि बिन हिंदी के ज्ञान के दक्षिण के लोगों को हिंदुस्तान के अन्यक्षेत्रों में रोजगार व नौकरी के अवसर मिलना कम हो जाते है।
आखिर दक्षिण चाहता क्या है? महज राजनीति की कुत्सित चाल के आगे सर झुकाने की प्रवृति के चलते नुकसान तो दक्षिण में रहने वाले लोगों का होना तय है।
क्योंकि राजनैतिक लोग तो भाषा के विरोध में अपनी राजनीतिक रोटी सेंक रहें है, जबकि वे भी इस बात को स्वीकारते है कि हिंदी पट्टी के साथ सामंजस्य से ही दक्षिण की सफलता निहित है।
क्योंकि लगभग 50 करोड़ से अधिक भारतीयों की भाषा हिंदी है और बिन हिन्दी ज्ञान के प्रगति के मार्ग बाधित है।

*वैज्ञानिकता और समन्वय का गुण है हिन्दी में*
सभी भारतीय भाषाओं का तुलनात्मक अध्ययन किया जाए तो सभी भाषाओं के मूल में संस्कृत, प्राकृत और पाली निहित है। और हिंदी वर्तमान में जनभाषा के रूप में स्थापित भाषा है, जिसे आधा हिंदुस्तान बोलता-लिखता है। इसी के आधार पर भारतीय राज्यों में समन्वय स्थापित करने, विचार विनिमय करने, अखंडता स्थापित करने, व्यवहारिक आदान-प्रदान की नीति स्थापित करने, पर्यटन आदि उद्योगों को बढ़ावा देने, व्यवसाय को समूचे देश में फ़ैलाने, नौकरी-रोजगार प्राप्त करने जैसे तमाम लक्ष्यों की पूर्ति के लिए हिंदी का जानना-समझना उतना आवश्यक है जितना शरीर में कार्बनडाई आक्साइड और ऑक्सीजन का होना है।
क्योंकि केवल क्षेत्रीय भाषाओं की प्रवीणता से समूचे देश में व्यक्ति का स्थापित हो जाना संभव नहीं है, उसके पीछे कारण यह भी है कि क्षेत्रीय भाषाओं और बोलियों का दायरा सीमित है।
इन्हें बोलने-सुनने और समझने वाले लोगों की संख्या सीमित है।
अब पूरे देश से संबंध बनाने की स्थिति में कोई तो एक भाषा हो जो यह गुण रखती हो, अंग्रेजी अभी भी हिंदुस्तान के 47% गांवों में नहीं पहुँची है, इसलिए अंग्रेजी के समर्थन की तो बात ही सिरे से खारिज हो जाती है।
तमिल, तेलगु, कन्नड़, मलयाली, आसामी, मराठी, गुजराती, पंजाबी, कश्मीरी आदि भारतीय भाषाओं का सीमित दायरा उन्हें जनभाषा का दर्जा नहीं दे सकता, ऐसे में हिंदी के सिवा कौन खेवन हार है भारत की तरक्की का।
दक्षिण और महाराष्ट्र के कुछ नेताओं की विवशता है उनकी राजनैतिक दुकान, इसके चलते वो विरोध तो जताएंगे, पर क्या जनता भी अनपढ़ है जो ये समझ नहीं पा रही है कि किस भाषा को महज अपना लेने मात्र से प्रगति का एक द्वार और खुल रहा है जो अब तक केवल इसलिए बंद था, क्योंकि राजनीति की कुत्सित दृष्टि उस पर है।

*पर्यटन कभी उद्योग नहीं बन पाएगा*
सच तो यह है कि अहिन्दीभाषी प्रदेशों में जो पर्यटन उद्योग थोड़ा बहुत भी अभी चल रहा है उसका कारण है हिंदी पट्टी के पर्यटक। मान लिया जाए कि दक्षिण आदि राज्यों में हिंदी कोई जानने-समझने वाला शेष नहीं रहा, और हिंदी जानने वालों को मारने-पीटने लगे तो क्या हिंदी पट्टी के पर्यटक उस राज्य में कभी आने की सोचेंगे भी? इससे नुकसान किसका है, आम जनता का या राजनैतिक लोगों का।

*अंग्रेजी से लाभ क्या*
जब देश में राजभाषा अधिनियम बन रहा था तब भी एक जनभाषा जिसे बोलने-समझने वालों की संख्या 50 प्रतिशत थी, उसे भी अपना मान एक ऐसी भाषा के साथ साझा करना पड़ा जो अभी भी इकाई में ही सिमटी हुई है।
देश में सक्रिय हिंदी विरोधी ताकतों ने अंग्रेजी को बढ़ावा देने की हिमाकत क्यों की, इसके पीछे विदेशी ताकतों द्वारा हिंदुस्तान को बतौर बाजार इस्तेमाल करना निहित है।
चूँकि भारत विश्व का दूसरा बड़ा बाजार है, और इस पर कब्जा करना अंग्रेजियत की आरंभिक भावना है, इसी के चलते वो देशविरोधी ताकतें इन लोगों को मदद करती आ रही है और हमारे देश का एक इतिहास ये भी रहा है कि जयचंद और कासिम जैसे गद्दार हर युग में भारत में मौजूद रहें है।
आखिर वर्तमान सरकार को ये भी सोचना चाहिए कि जब शिक्षा नीति में सबकी मातृभाषा, स्थानीय भाषा, भारतीय भाषाओं को सम्मान दिया जा रहा है तो फिर क्यों ये विरोध हिंदी का हो रहा है?
इस हिन्दी विरोध के बहाने हमला देश की आंतरिक अखंडता का है। जो ताकतें मुद्दों की राजनीति नहीं कर सकती, वे भाषा, समाज, संस्कृति, धर्म और जातिगत आधार पर ही देश व सरकार का ध्यान भटका सकती है।
विरोध करने वालों में कौन शामिल है, इनका इतिहास क्या है इस बात की भी विवेचना की जानी चाहिए।
वर्ना दबाव तो हिंदी पट्टी भी बना सकती है ,परंतु हिंदी पट्टी में गुंडा तत्व न होना उसके सहिष्णु और संस्कारित होने का सूचक है।
क्योंकि जितने लोग विरोध कर रहें है वो हिंदी समर्थकों का 10वां हिस्सा भी नहीं है।
यदि हिंदी पट्टी ने आंदोलन का रुख अपना लिया तो ये खोखले लोग धरे रह जाएंगे और देश में गृहयुध्द के आसार पनपने लग जाएंगे।
किन्तु हिंदी पट्टी बुद्धिजीवियों से भरी होने का ये लोग जो फायदा उठा रहे है वो निहायती मूर्खता भरा कदम है।
सवाल सरकार से भी हैं कि क्या उसकी नियत राष्ट्र की अखंडता है अथवा फूट डालो राज करो की।
देश के नवागत गृहमंत्री से फिर एक बार उम्मीद सरदार पटेल जैसी है, जैसा सरदार पटेल ने रियासतों को एक करके अक्षुण्ण हिंदुस्तान बनाया था, अमित शाह भी चाहें तो सभी भारतीय भाषाओं का सम्मान बरकरार रखते हुए हिंदी को राष्ट्रभाषा बना कर भाषाई अखंडता निर्मित करके सरदार की परम्परा का निर्वहन कर सकते हैं।
समय का पहिया किस करवट बैठता है यह तो कहना मुश्किल है किंतु यदि सरकार की नीयत अच्छी रहीं तो हिंदी के अच्छे दिन आ सकते हैं।

#डॉ.अर्पण जैन ‘अविचल’

परिचय : डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ इन्दौर (म.प्र.) से खबर हलचल न्यूज के सम्पादक हैं, और पत्रकार होने के साथ-साथ शायर और स्तंभकार भी हैं। श्री जैन ने आंचलिक पत्रकारों पर ‘मेरे आंचलिक पत्रकार’ एवं साझा काव्य संग्रह ‘मातृभाषा एक युगमंच’ आदि पुस्तक भी लिखी है। अविचल ने अपनी कविताओं के माध्यम से समाज में स्त्री की पीड़ा, परिवेश का साहस और व्यवस्थाओं के खिलाफ तंज़ को बखूबी उकेरा है। इन्होंने आलेखों में ज़्यादातर पत्रकारिता का आधार आंचलिक पत्रकारिता को ही ज़्यादा लिखा है। यह मध्यप्रदेश के धार जिले की कुक्षी तहसील में पले-बढ़े और इंदौर को अपना कर्म क्षेत्र बनाया है। बेचलर ऑफ इंजीनियरिंग (कम्प्यूटर  साइंस) करने के बाद एमबीए और एम.जे.की डिग्री हासिल की एवं ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियों’ पर शोध किया है। कई पत्रकार संगठनों में राष्ट्रीय स्तर की ज़िम्मेदारियों से नवाज़े जा चुके अर्पण जैन ‘अविचल’ भारत के २१ राज्यों में अपनी टीम का संचालन कर रहे हैं। पत्रकारों के लिए बनाया गया भारत का पहला सोशल नेटवर्क और पत्रकारिता का विकीपीडिया (www.IndianReporters.com) भी जैन द्वारा ही संचालित किया जा रहा है।लेखक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं तथा देश में हिन्दी भाषा के प्रचार हेतु हस्ताक्षर बदलो अभियान, भाषा समन्वय आदि का संचालन कर रहे हैं।

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संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।