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सोशल मीडिया पर साहित्य -लेखन साहित्यकारों के लिए एक सुनहरा मौका है। जिससे कम से कम समय में ज्यादा से ज्यादा लोगों के पास हमारे विचार पहुँच जाते हैं । देश ही नहीं विदेशों में भी बैठे लोग भी साहित्य का आनन्द ले रहे हैं। फेसबुक और साहित्य के ग्रुप में कवियों, लेखकों की बाढ़ आई हुई है। बिना मांगे बहुत सारे लोग परामर्श दे रहे हैं, अपने विचार परोस रहे हैं।
दो हजार चौदह वर्ष के चुनाव में सोशल मीडिया का जमकर प्रयोग हुआ था, जिससे राजनीतिक दल अपनी वोट बैंक बढ़ाने में सफल हो पाए हैं।निर्भया कांड में सोशल मीडिया के प्रभाव से एक भीड़ सड़कों पर उतर आई थी। सरकार को एक कारगर कानून बनाने के लिए मजबूर किया गया। इसी तरह अन्ना हजारे द्वारा चलाया गया आंदोलन,जहाँ तक पहुंचा था, वह सोशल मीडिया का ही प्रभाव था। आज भी जो आंदोलन “भ्रष्टाचार मुक्त भारत”के लिए है, उसका प्रसार भी सोशल मीडिया का ही प्रभाव है।
मोबाइल का रिचार्ज, फोन का भूगतान, बिजली बिल का भूगतान, रेलवे टिकट का आरक्षण, किराना भंडार का भूगतान इत्यादि पेटीएम/भीम इत्यादि से किया जाना, सोशल मीडिया के कारण ही संभव हो रहा है।
अपनों से जुड़ाव, पुराने दोस्तों से मिलना, नये मित्र बनाना, वर्तमान के दोस्तों से हर क्षण वार्तालाप कर लेना, समय के साथ चलना, विश्व के सभी समाचारों से तुरंत अवगत होना, कागज के प्रयोग के बिना रचना का सृजन किया जाना, सकारात्मक सोच इत्यादि सोशल मीडिया की ही देन है।
सोशल मीडिया का दुष्प्रभाव
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(1)दूसरी तरफ सोशल मीडिया का दुष्प्रभाव देखें तो छोटे छोटे बच्चों के हाथ में मोबाइल है। वे “सबकुछ”देख ले रहे हैं। कच्चे दिमाग में उनपर जो प्रभाव पड़ता है वह समाज के लिए घातक सिद्ध हो रहे हैं। माता पिता के पास समय नहीं होता है कि बच्चों के क्रियाकलापों पर नजर रख सकें।
(2)अच्छे लेखन की चोरी खूब हो रही है। दूसरे की रचनाओं को अपने नाम से भेजा जाता है। वाहवाही लूटने के लिए अच्छी रचनाओं की चोरी हो रही है। कभी कभी तो सच्चा लेखक को ढ़ूंढ़ना टेढ़ी खीर लगता है।
(3)”साइबर क्राइम”सोशल मीडिया का सबसे बड़ा दुश्मन है।
(4)कभी कभी भ्रामक खबरें भी चंद मिनट में फैल जाती है।दंगा फैलने की आशंका बहुत जल्द ही हो जाती है।
(5)सोशल मीडिया में सक्रियता बढ़ जाने के कारण छात्रों का समय बर्बाद हो रहा है।
(6)इन्टरनेट प्रयोग के लिए डाटा भरवाने में पैसे की बर्बादी होती है।
(7)दिन रात लोग वाट्सएप ,वगैरह सोशल मीडिया में लोग व्यस्त हैं जिसके कारण मानव संबधों की अवहेलना हो रही है। पहले लोग एक दूसरे के घर आते जाते थे लेकिन अब किसी के पास सोशल मीडिया के कारण समय नहीं है। लोग हाथ में मोबाइल पकड़े हुए हैं और उसी में वे व्यस्त हैं।
(8)सोशल मीडिया के कारण समय और पैसे की बर्बादी तो हो ही रही है लेकिन ऐसा लगता है सोशल मीडिया में अब “सोशल”शब्द गायब हो गया है और सिर्फ “मीडिया”रह गया है जिसका भरपूर प्रयोग किया जा रहा है। घर के छोटे छोटे झगड़े को भी लोग, प्रादेशिक, सामाजिक एवं राष्ट्रीय स्तर का मुद्दा बनाकर मीडिया में छाए रहते हैं।
(9)सोशल मीडिया मानव का ही बनाया हुआ ऐसा जाल बन गया है जिसमें मानव स्वयं फंसता जा रहा है और लगता है मानव स्वयं शिकारी है तथा शिकार भी वह स्वयं हो रहा है।सोशल मीडिया का नशा लोगों में इस प्रकार हो गया है लोग दिनभर मोबाइल पकड़े रहते हैं जिसके कारण लोग बीमार भी हो रहे हैं।
(10)सोशल मीडिया में मनुष्य आजाद हो गया है, स्वछंद और बेबाक हो गया है। बेहिचक मुर्खता एवं अमर्यादित भाषा का प्रयोग, अपने मानसिक विकारों और कुंठाओं की भड़ास निकालने का एक माध्यम बनता जा रहा है।
(11)धार्मिक ग्रुप का बढ़ता चलन, जातिवर्ण विरोध के बनते अनगिनत ग्रुप, राजनीतिक दलों के ग्रुप, आस्था और धर्म विश्वास का बनता मजाक सोशल मीडिया की देन है।
(12)आतंकवाद एवं उग्रवाद के नाम पर समाज के विशेष वर्ग को निशाने पर सोशल मीडिया ले रहा है।
सोशल मीडिया, वाट्सएप और मगसम
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सोशल मीडिया में साहित्य से संबंधित अनेक पटल भारतवर्ष में हैं लेकिन सभी से भिन्न मगसम पटल को श्रेष्ठ माना जा सकता है, जहाँ हरेक सप्ताह एक साप्ताहिक विषय, मंच के द्वारा निर्धारित किया जाता है रविवार के लिए अपराह्न तीन बजे से रात्रि दस बजे तक यह कार्यक्रम चलता है, जिसपर रचनाकारों की रचनाएं आती हैं जो प्रेरित करती है सुंदर सृजन के लिए।शनिवार का दिन अपराह्न तीन बजे से रात्रि दस बजे तक निर्धारित है समीक्षा के लिए जिस पर सदस्य दूसरे की रचना की समीक्षा करते हैं।इसका लाभ रचनाकारों को भी मिलता है। दूसरे की रचना पढ़ना, पढ़कर उसपर प्रतिक्रिया/समीक्षा देना, जिसका अर्थ है “मैं”का त्याग और “हम”की ओर बढ़ना। आज जब लोग अपने को श्रेष्ठ मानने में लोग लगे हुए हैं तो अन्य किसी की रचना पढ़ना, यह अहंकार के त्याग का उदाहरण है। मैं का त्याग ही अंहकार का त्याग है।आज के दिन तक मगसम में 128पदाधिकारी हैं, पटल पर 223सदस्य हैं,160,459रचनाकार (हिन्दी भाषा में लिखने वाले)हैं, मुख्य कार्यालय और प्रादेशिक कार्यालय के अतिरिक्त 14अन्य कार्यालय हैं।
रचना का वाचन भी देश विदेश में करवाया जाता है तथा हरा सेव (अच्छा),पीला सेव (सुधार के लिए)लाल सेव (नकार दिया जाना)की गणना की जाती है जिसके आधार पर रचना एवं रचनाकार को भिन्न भिन्न नामों से हरा सेव के आधार पर सम्मानित किया जाता है वह भी रचनाकार के शहर में जाकर, बिल्कुल निशुल्क। रचना का वाचन, रचनाकार का नाम बताए बिना किया जाता है । यहाँ निर्णायक श्रोता ही होते हैं। श्रोताओं के पसन्दगी के आधार पर रचना/रचनाकार को सम्मानित किया जाता है।
ये सिर्फ मगसम के आकड़ें हैं जो सोशल मीडिया की हिंदी के प्रचार प्रसार में भूमिका को दिखाती है और वह भी सिर्फ “व्हाट्सएप”की। इसी प्रकार झारखंड में “झारखंड हिन्दी साहित्य संस्कृति मंच”,हिंदी का एक विशाल मंच है, महान उद्देश्य वाली संस्था और विस्तृत फलक वाला है जो हिन्दी के प्रचार प्रसार में प्रमुख भूमिका निभा रही है। झारखंड महिला काव्य मंच, नारायणी साहित्य अकादमी समूह, महिफल ए अदब इत्यादि अनेक ऐसे साहित्यिक मंच हैं जो हिन्दी के प्रचार प्रसार में प्रमुख भूमिका निभा रही है। व्हाट्सएप की तरह फेसबुक, ब्लॉग, ट्विटर इत्यादि भी हिन्दी के प्रचार प्रसार में प्रमुख भूमिका निभा रही है।
इस प्रकार सोशल मीडिया से कई लाभ भी हैं और कई हानियाँ भी हैं। निष्कर्ष में यही कहा जा सकता है कि यदि हम सतर्कता बरतते हुए सोशल मीडिया का प्रयोग करते हैं, तो इससे हमें लाभ ही प्राप्त होगा और हिन्दी के प्रचार प्रसार में हम सहभागी बनेंगे।
#गीता सिन्हा
राँची,झारखंड
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