कैसा रहा पहला दिन सेवा निवृति का

0 0
Read Time6 Minute, 29 Second

sanjay

पहला दिन सेवा निवृति का कैसा रहा ? कहते है की जब इन्सान अपने कार्य से बिमुख हो जाता है तो उसे काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। क्योकि हम लोग करीब २५-२८ सालो तक काम या नौकरी जो करते है, तो जीवन की रफ़्तार लगभग एक सामन होती है और पूरी दिनचर्या भी ३६५ दिनों की एक जैसी ही होती है। जब घर में कोई नया मेहमान आता है तो बहुत ही खुशियाँ का माहौल रहता है। दूसरी बार घर में खुशियाँ जब मनाई जाती है जब हमें अच्छी नौकरी मिल जाती है, और हमारे जीवन की शुरुआत हो जाती है। थोड़े से समय के उपरांत ही घर में फिर ख़ुशी का दौर शुरू होता है। घर मे मेरी शादी का होना। याने की अब हमने भी अपने बढ़ो बूढ़ो की तरह गृहस्थ जीवन में प्रवेश कर लिया और अब परिवार वालो की जिम्मेदारियों को उठाने का समय आ गया। इसी दौरान हमारे बड़ो का सेवा निवृत होने का समय भी आ गया। ऐसे समय में हम लोग समझ ही नहीं पाते की, हम क्या करे और क्या न करे, क्योकि पहले तो घर परिवार की तमाम जिम्मेदारियां हमारे बड़े बूढ़े जन ही उठाते थे, और हम सब तो सिर्फ मौज मस्ती और अपनी पढ़ाई आदि तक ही सीमित रहते थे। कहाँ से पैसा आता है कितना परिवार पर प्रत्येक माह खर्च होता है कैसे माँ बाप घर को चलाते है आदि आदि। ऐसी बहुत सारी समस्यां होती है जिनका एहसास हमारे बच्चो को उस समय पता नहीं होता है। कहते है की सिर्फ एक इंसान चार पाँच बच्चो को पाल देता है परन्तु वर्तमान समय में चार पाँच बच्चे मिलकर भी अपने मां बाप को नहीं संभाल पाते है। तो इसे हम क्या समझे ? ये प्रश्न कहने में बहुत सरल है परन्तु निभाने में बहुत ही कठिन होता है।
साथियो जैसे की इससे पहले वाला मेरा लेख था की सेवा निवृत होने का एहसास। कल ही मुझे अपनी जिम्मेदारियों से अवकाश मिला है और घर पर रहने का आज मेरा पहला दिन है। मैं अपनी गतिविधियों को आज उसी तरह शुरू की, सुबह सबसे पहले उठकर दूध लेने को जाना और फिर स्नाह आदि करके भगवान की पूजा आदि करना, उसके बाद पेपर पड़ते हुए चाय और नाश्ता आदि करना, फिर कपड़े आदि पहनकर तैयार होना और आवाज़ दी की सुनती हो मेरा दफ्तर जाने का समय हो गया, जल्दी से खाने का डब्बा दे दो, तभी अन्दर से आवाज़ आई की अब आपको कही नहीं जाना है, क्योकि अब आप सेवा निवृत हो गए हो समझे जी। अब तो हमारे बच्चो के जाने के दिन है। आपके नहीं तभी मुझे याद आ गया की हम तो रिटायर हो गए है। हमने सोचा की अब में अपने आप को सामाजिक और धार्मिक गतिविधियों में लगाऊंगा जिससे हमारा समय भी पास हो जायेगा और समाज की सेवा भी कर सकूंगा। तामाम पेपरों को आज दिन भर पढ़ता रहा, अब उनका कोई भी उपयोग नहीं है। ये सब कुछ सोचे और समझाते शाम और रात हो गई दोनों बेटे आफिस से वापिस आ गए, हमेशा की तरह साथ में खाना खाया तो उसी दौरान वो पूछने लगे की आज का पहला दिन पापा जी आपका कैसा रहा, मैंने कहाँ कोई ख़ास नहीं अब कुछ तो दिनचर्या बनाना पड़ेगी। तो सोच रहा हूँ की में क्या कर सकता हूँ, तभी बहुओ ने कहा आपको अब कोई भी काम काज के बारे में नहीं सोचना है। बस आराम करो हम लोग तो कामा रहे है, न तो चिंता किस बात की, ऐसे विचार अपने बच्चो और बहुओ के मुख से सुनकर मेरा दिल भर गया और मैंने भी कह दिया की मैं काम वाले काम के बारे में नहीं बोल रहा हूँ, कुछ समाज की भलाई के बारे में कुछ करू। ताकि मेरा भी मन लगा रहेगा और समय भी पास हो जायेगा।
कुछ धार्मिक गतिविधयां और समाज के विकास के बारे में काम करू। सेवा भाव से बढ़कर और कुछ भी नहीं है। तो क्यों न हम इसी मार्ग को अपनाए और अपना तथा समाज का कल्याण करे। ये ही मैंने आज पहले दिन सोचा है। अब देखते है की हम कितने प्रतिशत कामयाब होते है अपने मिशन में साथियो और बाकी हमारे बच्चों पर भी निर्भर करेगा।

#संजय जैन

परिचय : संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं पर रहने वाले बीना (मध्यप्रदेश) के ही हैं। करीब 24 वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं।ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों  पर भी दिखा चुके हैं। इसी प्रतिभा से  कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन्हें  सम्मानित किया जा चुका है। मुम्बई के नवभारत टाईम्स में ब्लॉग भी लिखते हैं। मास्टर ऑफ़ कॉमर्स की  शैक्षणिक योग्यता रखने वाले संजय जैन कॊ लेख,कविताएं और गीत आदि लिखने का बहुत शौक है,जबकि लिखने-पढ़ने के ज़रिए सामाजिक गतिविधियों में भी हमेशा सक्रिय रहते हैं।

matruadmin

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

भानुमती का कुनबा भी नहीं कर सका नैया पार।

Sat May 25 , 2019
वाह रे राजनीति तेरे रूप हजार यह सत्य है। क्योंकि, 2019 के चुनाव का परिणाम जो देश की जनता के सामने आया है वह सभी विपक्षी पार्टियों के लिए अब अस्तित्व का प्रश्न बन गया है। क्योंकि, इसबार के लोकसभा चुनाव में विपक्षी पार्टियों ने अनेकों प्रकार के प्रयोग किए […]

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।