अंतर्द्वद्व

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shiv galdava
विशाल जग के अंतर्जाल में
खोया सा, स्तब्ध सा, अंतर्मन की बेचैनी लिए
मन तलाश रहा उस बिन्दु को
कहीं दिख जाए शून्य में जीवन का सारांश
प्राणचातक तरस रहे रजनीभर
कहीं अरुणाभ उजाला दिख जाये|
मैं खोजता रहता हूँ इस शून्य संसार में
फिर से नई चिंगारी मिल जाये,
अंत में फिर उसी राह भटककर ये मन
निराश अंतस् में विलिन हो जाता है |
हर रोज लालिमायुक्त संध्या को निहारते
तम के बढते प्रभाव और रजनी की स्तब्धता में
वही अंतर्द्वद्व पैदा होता हैं कि क्या यही जीवन है?
जीवन में संगीत की झंकार पे कुठाराघात देख
जीवन के अभावों का किसको दू दोष?
कर्म अपने समझ मैं हो जाता हूँ मौन
अंतर्मन की पीड़ा को कोरे कागज पर
उकेर कर तसल्ली देने की
नाकाम कौशिश कर लेता हूँ |
                    #शिव गल्ड़वा “राही”

परिचय~

नाम~शिवरतन गल्ड़वा
साहित्यक नाम~राही
जन्म स्थान~सोनियासर,श्री डूंगरगढ, बीकानेर (राज.) 
वर्तमान पता-बीकानेर(राजस्थान)
शिक्षा ~बी. एड, एम. ए(हिन्दी)
कार्य क्षेत्र ~व्याख्याता हिन्दी
विधा~कविता,निबंध लेखन
प्रकाशन~
सम्मान~कवि नाम से अभिहित एक सम्मान हैं |
लेखन का उद्देश्य ~मातृभाषा प्रसार व हिन्दी काव्य जाग्रति का प्रचार 
मौलिक रचना~किसान का दर्द,अंतर्द्वन्द्व व अन्य
 

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