जलियांवाला बाग हत्याकांड की दास्तां

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भारतीय इतिहास के सबसे नृशंस हत्याकांडों में से शुमार 13 अप्रैल 1919 का दिन तारीख का रक्तरंजित पन्ना है, देश की आजादी के लिए चल रहे आंदोलनों को रोकने के लिए इस हत्याकांड को अंजाम दिया गया था. लेकिन इस हत्याकांड से क्रांतिकारियों के हौसले कम होने की जगह ओर बुलन्द हो गए थे. बैसाखी के दिन हजारों लोग रोलेट एक्ट और राष्ट्रवादी नेताओं सत्यपाल एवं डॉ. सैफुद्दीन किचलू की गिरफ्तारी के विरोध में जलियांवाला बाग में एकत्र होना थे, अंग्रेज सरकार इस आयोजन को लेकर बुरी तरह घबराई हुई थी। इस सभा को विफल करने के हरसंभव प्रयास किए गए । सभा में भाग लेने मुंबई से अमृतसर आ रहे महात्मा गांधी को पलवल के रेलवे स्टेशन पर गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन सभा को रोक पाने में असफल रहने पर, पंजाब के गवर्नर माइकल ओड्वायर ने जनरल डायर से कहा था कि वे भारतीयों को सबक सिखा दें।
                        13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में बडी संख्या में लोग इकठ्ठा हुए थे. उस दिन शहर में कर्फ्यू लगाया गया था लेकिन इस दिन बैसाखी का पर्व होने से काफी लोग अमृतसर के हरिमन्दिर साहिब यानी स्वर्ण मंदिर आए थे.
जलियांवाला बाग, स्वर्ण मंदिर के करीब ही था. वह लोग भी अनायास ही सभा में शामिल हो गए थे। जब नेता बाग में पड़ी रोड़ियों के ढेर पर खड़े हो कर शांतिपूर्वक भाषण दे रहे थे, तभी शाम के करीब 4 बजे  ब्रिगेडियर जनरल एडवर्ड रेजीनॉल्ड डायर 90 ब्रिटिश सैनिकों को लेकर वहां पहुँच गया, उन सब के हाथों में भरी हुई राइफलें थीं। नेताओं ने सैनिकों को देखा, तो उन्होंने वहां मौजूद लोगों से शांत बैठे रहने के लिए कहा, परन्तु सैनिकों ने बाग को घेर कर बिना कोई चेतावनी दिए निहत्थे 20 हजार लोगों पर अंधाधुंध गोलियाँ चलानी शुरु कर दीं। १० मिनट में कुल 1650 राउंड गोलियां चलाई गईं। उन दिनों जलियांवाला बाग मकानों के पीछे पड़ा एक खाली मैदान था, जो तीनों ओर से ऊंची-ऊंची दीवारों से घिरा था, वहां जाने या बाहर निकलने के लिए केवल एक संकरा रास्ता था। बेबस लोगो को भागने का मौका भी नहीं मिल पाया, कुछ लोग जान बचाने के लिए मैदान में मौजूद एकमात्र कुएं में कूद गए, देखते ही देखते वह कुआं भी लाशों से पट गया। डायर के कारिंदों की बंदूकें तब तक गरजती रही, जब तक उनकी गोलिया  खत्म नहीं हो गई. शहर में क‌र्फ्यू  होने से घायलों को इलाज के लिए भी ले जाया नहीं जा सका और लोगों ने तड़प-तड़प कर वहीं दम तोड़ दिया।                              अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर कार्यालय में 484 शहीदों की सूची है, जबकि जलियांवाला बाग में कुल 388 शहीदों की सूची है। ब्रिटिश राज के अभिलेख इस घटना में 200 लोगों के घायल होने और 379 लोगों के शहीद होने की बात स्वीकार करते है. जिनमें से 337 पुरुष, 41 नाबालिग लड़के और  6 सप्ताह का एक बच्चा था। अनाधिकारिक आँकड़ों के अनुसार 1000 से अधिक लोग मारे गए और 2000 से अधिक घायल हुए।आधिकारिक रूप से मरने वालों की संख्या ३७९ बताई गई, जबकि पंडित मदन मोहन मालवीय के अनुसार कम से कम १३०० लोग मारे गए। स्वामी श्रद्धानंद के अनुसार मरने वालों की संख्या १५०० से अधिक थी,जबकि अमृतसर के तत्कालीन सिविल सर्जन डॉक्टर स्मिथ के अनुसार मरने वालों की संख्या १८०० से अधिक थी।
                          मुख्यालय वापस पहुँच कर ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों को टेलीग्राम किया कि उस पर भारतीयों की एक फ़ौज ने हमला किया था, जिससे बचने के लिए उसको गोलियाँ चलानी पड़ी। पंजाब के गवर्नर ब्रिटिश लेफ़्टिनेण्ट मायकल ओ डायर ने इसके उत्तर में ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर को टेलीग्राम किया कि तुमने सही कदम उठाया, मैं तुम्हारे निर्णय को अनुमोदित करता हूँ। फिर लेफ़्टिनेण्ट गवर्नर मायकल ओ डायर ने अमृतसर और अन्य क्षेत्रों में मार्शल लॉ लगाने की माँग की,  जिसे वायसरॉय लॉर्ड चेम्सफ़ोर्ड नें स्वीकृत कर दिया।
भगत सिंह और उधम सिंह जैसे महान क्रांतिकारी जलियांवाला बाग नरसंहार के बाद स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो गए।
        #राहुल इंक़लाब
संस्था : ऐलान – ए – इंक़लाब
         इंदौर ( म.प्र.)

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