झुकी पलके निहारें ये,
रुपैये को प्रदाता को।
जुबानें बन्द दोनो की,
करें यों याद माता को।
अनाथों ने,भिखारी नें,
तुम्हारा क्या बिगाड़ा है,
दया आती नहीं देखो,
निठुर देवों विधाता को।
बना लाचार जीवन को,
अकेला छोड़ कर इनको।
गये माँ बाप जाने क्यों,
गरीबी खा गई जिनको।
सुने अब कौन जो सोचे,
पढाई या ठिकाने की,
मिला खैरात ही जीवन,
गुजर खैरात से तन को।
गरीबी मार ऐसी है,
कि जो मरने नहीं देती।
*बिचारा* मान देती है,
परीक्षा सख्त है लेती।
निवाले कीमती लगते,
रुपैया चाक के जैसा,
विधाता के बने लेखे,
करें ये भीख की खेती।
अनाथों को अभावों का,
सही यों साथ मिल जाता।
विधाता से गरीबी का,
महा वरदान जो पाता।
निगाहें ढूँढ़ती रहती,
कहीं दातार मिल जाए,
व्यथा को आज मैं उनकी,
सरे बाजार में गाता।
किये क्या कर्म हैं ऐसे,
सहे फल ये बिना बातें।
न दिन को ठौर मिलती है,
नही बीतें सुखी रातें।
धरा ही मात है इनकी,
पिता आकाश वासी है,
समाजों की उदासीनी,
कहाँ मनुजात जज्बातें।
नाम– बाबू लाल शर्मा
साहित्यिक उपनाम- बौहरा
जन्म स्थान – सिकन्दरा, दौसा(राज.)
वर्तमान पता- सिकन्दरा, दौसा (राज.)
राज्य- राजस्थान
शिक्षा-M.A, B.ED.
कार्यक्षेत्र- व.अध्यापक,राजकीय सेवा
सामाजिक क्षेत्र- बेटी बचाओ ..बेटी पढाओ अभियान,सामाजिक सुधार
लेखन विधा -कविता, कहानी,उपन्यास,दोहे
सम्मान-शिक्षा एवं साक्षरता के क्षेत्र मे पुरस्कृत
अन्य उपलब्धियाँ- स्वैच्छिक.. बेटी बचाओ.. बेटी पढाओ अभियान
लेखन का उद्देश्य-विद्यार्थी-बेटियों के हितार्थ,हिन्दी सेवा एवं स्वान्तः सुखायः