आसमान में इमारतों के नींव का इकबाल जिंदा है!

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nitish
इतिहास के दरख़्त के नीचे जब भी खड़े होते है तब इतिहास का इकबाल यही बोलता है कि यमुना की जमीन के अंदर जितनी चमक है उससे कहीं ज्यादा आगरा के ताजमहल की खूबसूरती का इकबाल आसमान में छिपा हुआ है । यह कैम्ब्रिज और ऑक्सफोर्ड का इतिहास बोलता है लेकिन एक सबाल्टर्न इतिहास स्कूल की इमारतें हमेशा यही बोलती है जिस इंसान के पांव में आंख है वह अपने लहूँ से अपना इतिहास रचता है। उन्नीसवीं सदी में जब शाहजहां बेगम भोपाल में ताज अपने लिए बना रही थी लेकिन दुनिया का कोई भी हिस्टोरिकल भोपाल के ताज को ताज मानने के लिए तैयार नहीं हो रहा था।
भोपाल के ताज को आसमान के नीले दरिया से संवाद करते हुए यही कोई सौ साल हुए होंगे लेकिन तब भी भोपाल के ताज को कोई ताज जैसा मानने के लिए तैयार नहीं हो रहा था।

यह तब की बात है जब भोपाल की चौपाल भी दरिया जैसी बोलती थी …यह उस समय की बात है जब सूचनाएं जागरूक रहती थी लेकिन लोग बागों की नींद कम ही खुलती थी …

जब बड़े तालाब से आंख मिलाने के लिए छोटा तालाब तैयार हो रहा था तब किसको मालूम था सईद खान जिसने यूनियन कार्बाइड के जख्मों के साथ अपनी जवानी की कहानी लिख रहा होगा।

सईद खान थक गया था भोपाल की ताज को दुनिया मे एक पहचान दिलाने के लिए …सईद की उम्र उस समय इतनी ही थी जब लोगों के लिए विज्ञान का प्रयोग कौतूहल का विषय बनता जा रहा था…

लेकिन जब विज्ञान लोगों की जेहन में आयतों की तरह सिकुड़ रहा था तब सईद की आंखों में भविष्य का एक ऐसा रसायन बन रहा था जिससे दुनिया बेखबर थी।

कहने वाले तो यहां तक कहते थे कि भोपाल को दिनों के नाम से विभाजित किया जा रहा था उस वक्त किसी की आत्मा रोइ थी तो केवल सईद खान की
सईद को गिनती नहीं आती थी लेकिन भोपाल की आत्मा को दिनों के नाम पर जब बांटा जा रहा था तब भोपाल में पहली बार बड़ा तालाब रोया था तो बस्तियों में सईद रोता फिरता था।

सईद के पास उन दिनों केवल दो आंखे थी लेकिन उसी समय भोपाल की इमारतें भी रोना शुरू कर दी …तब सईद ने अपनी आंखों के समंदर में उठती हुई लहरों को कैद करने के लिए एक कैमरा का बोझ अपनी दो आंखों पर लादने के अलावा अपनी पीठ पर भी कैमरे का बोझ लाद दिया।

कहने वाले कहते है कि सईद मियां सबसे पहले भोपाल के ताजमहल की तस्वीर खींचने के लिए ताजमहल की नींव के नीचे चौबीस घण्टे खड़े रहे जब वह तस्वीर सईद के कैमरे में कैद हुई तब दुनिया के लोग भोपाल की इमारतों से परिचित हुए। बताने वाले बताते है कि जब सईद यह तस्वीर ले रहे थे तब कई सारे जिन्न नींव से बाहर आ गए थे ।

लेकिन सईद नहीं डरा तो नहीं डरा सईद रेलगाड़ी की तरह अपनी सांसों की पटरी पर अपने हुनर को दौड़ाता रहा और इतिहास के हर फलक को कैद करता रहा मानों भोपाल का इतिहास तस्वीरों के जरिये पहली बार सईद लिख रहा हो।

सईद भूल गया था भोपाल में सियासत नाम की भी कोई चीज होती है। जब दिग्विजय सिंह की तूती पूरे प्रदेश में बोलती थी तब सईद भूले भटके प्रदेश के मुखिया दिग्गी राजा के पास चला गया था।

बताने वाले बताते है कि सईद को देखकर तब दिग्गी राजा बहुत ही गुस्साए थे लेकिन जब दिग्गी राजा की नजर सईद की आत्मा पर गई तब उन्हें होश आया कि सईद कैमरामैन के अलावा एक इतिहासकार भी है लेकिन सईद शब्दों की बजाए तस्वीरों के जरिये भोपाल का इतिहास लिखने में मशगूल है। तब जा कर दिग्गी राजा को होश आया और दिग्गी राजा बोले मिया सईद मुझे भी अपने कैमरे में कैद कर लो क्योंकि तुम सियासत के नहीं इतिहास संजोने वाले पत्रकार हो।

सईद की भला उम्र ही क्या थी सियासत को समझने की लेकिन सईद ने इतना ही समझा कि जैसे इमारतों की नींव बोलती है वैसे ही यह हांड मांस का आदमी भी बोल रहा है।

तब सईद ने कहा आइये हुजूर और कैमरे के सामने खड़े हो जाइए और जो मैं पूछुंगा उन्हीं सवालों का जबाब दीजियेगा
सईद ने दिग्गी राजा से पूछा कि राजा लोगो का ताजमहल क्यों पत्थरों का होता है। दिग्गी राजा सवाल सुनकर कुछ देर के लिए झेंप गए लेकिन दिग्गी राजा राजा के अलावा एक सजग इंसान भी थे। दिग्गी राजा ने सईद से पूछा तुम बताओं तुम किसका ताजमहल बनाने पर लगे हुए हो
तब सईद ने कहा मैं तो अपने पसीने से अपनी देह पर हर रोज ताजमहल बनाता हूँ।

कहने वाले कहते है कि दिग्गी राजा यह जबाब सुनकर घण्टो खामोश रहे।

आज दिग्गी राजा भोपाल की इमारतों को देखते है और सईद के जबाब को पत्थरों में खोजते है।

#नीतीश मिश्र 

परिचय : १ मार्च १९८२ को बनारस में जन्में, प्रारंभिक शिक्षा ग्राम पहाड़ीपुर, जिला मउ( उत्तरप्रदेश ) से हासिल कर बी.ए. ( लखनउ विश्वविधयालय) और एम ए ( हिन्दी साहित्य में इलाहबाद विश्वविधयालय)किया | कविता के क्षेत्र में सामाजिक, राजनीतिक, व्यवस्था को विकल्प देती कविताए लिखने के लिए प्रसिद्ध है मिश्रा| अपने समय को विकल्प देने की और व्यवस्था से जूझने की ताक़त नीतीश मिश्र के शब्दों मे दिखाई देती है और उस आदम की बात करते है जिसको व्यवस्था भूल चुकी हैं | देश की राजधानी दिल्ली में रहकर भी मिश्र ने अपनी कविताओ को रंग दिया | विगत 5 वर्षो से इंदौर (मध्यप्रदेश ) में दैनिक अख़बार में रह कर पत्रकारिता कर रहे है | नीतीश मिश्रा के जीवन के आँगन का प्रथम केंद्र इलाहबाद है तो दूसरा केंद्र इंदौर | इंदौर की मिट्टी का मिश्रा अपने व्यक्तित्व में बार-बार अतिक्रमण करते हैं | जो संघर्ष हिन्दी जगत के मूर्धन्य कवि ‘मुक्तिबोध’ ने मालवा की धरती पर रहते हुए किया था ठीक उसी तरह का ताना-बाना मालवा ने नीतीश मिश्रा की आत्मा में उकेरा है |

 

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।