होली मचे फागुन रमें, फसलें रहे आबाद।
पंछी पिया कलरव करे, उड़ते फिरे आजाद।
मैं तो हुई बेचैन हूँ, मिलने तुम्हे पिव आज।
आओ प्रिये फागुन चला,अबतो सँवारो काज
फसलें पकी हैं झूमती,मिलके करें खलिहान।
सखियाँ सभी है खेलती, बिगड़े हमारी शान।
आजा विदेशी पाहुने, खेलें स्वदेशी रंग।
साजन हमारे साथ हों, फरके पिया मम अंग।
कोयल सनेही बोलती,लागे अगन सुन गीत।
ये रंग भँवरे फूल पर, वह राग भी सुन मीत।
फागुन सनेही मीत है, तू मान मेरी बात।
कैसे बताऊँ भोर की, जो बीतती है रात।
कब तक निहारूँ बाट मैंं, साजन बने बे पीर।
नदिया बनीे आँखे बहे, अब पीव हम दो तीर।
मिलना लिखे हो भाग्य में,होली निहारूँ बाट।
कैसे मिलूँ मै जीवती, पकड़ी मनो हूँ खाट।
नाम– बाबू लाल शर्मा
साहित्यिक उपनाम- बौहरा
जन्म स्थान – सिकन्दरा, दौसा(राज.)
वर्तमान पता- सिकन्दरा, दौसा (राज.)
राज्य- राजस्थान
शिक्षा-M.A, B.ED.
कार्यक्षेत्र- व.अध्यापक,राजकीय सेवा
सामाजिक क्षेत्र- बेटी बचाओ ..बेटी पढाओ अभियान,सामाजिक सुधार
लेखन विधा -कविता, कहानी,उपन्यास,दोहे
सम्मान-शिक्षा एवं साक्षरता के क्षेत्र मे पुरस्कृत
अन्य उपलब्धियाँ- स्वैच्छिक.. बेटी बचाओ.. बेटी पढाओ अभियान
लेखन का उद्देश्य-विद्यार्थी-बेटियों के हितार्थ,हिन्दी सेवा एवं स्वान्तः सुखायः