शिक्षा:-एक व्यवसायिक साधन

0 0
Read Time8 Minute, 54 Second

shivankit tiwari

मन व्यथित है आज बड़ी असहनीय वेदना हो रही है आज की इस गर्त में जा रही आधुनिक शिक्षा व्यवस्था को देखकर,

आज शिक्षा को सिर्फ पैसों से तोला जा रहा है मतलब यहाँ तक शिक्षा की दयनीयता देखने को मिल रही हैं की जैसे बड़े-बड़े शिक्षण संस्थान सिर्फ पैसों के लिये ही खोले गयें है और शिक्षा को व्यवसाय का माध्यम बनाने के लिए पूरी तरह से संकल्पित हैं ।

आर्थिक तौर पर अगर कोई कमजोर है और वह बड़े शिक्षण संस्थान पर प्रवेश पा जाता हैं और समय पर वह अगर शिक्षण संस्थानों के शुल्क की अदायगी नहीं कर पाता तो उसे इतना परेशान किया जाता हैं की वह मानसिक व्याधियों से ग्रसित हो जाता हैं।
उसकी क्या परेशानी है वह किन परिस्थितयों से गुजर रहा है,उसकी आर्थिक स्थिति का स्रोत सुदृढ़ है या कमज़ोर है,उससे उन्हें किसी प्रकार का कोई लेना देना नहीं है,उसकी एक नहीं सुनी जाती उसके साथ अमानवीय व्यवहार किया जाता है क्योंकि उन्होंने सिर्फ और सिर्फ पैसों की आवक के लिये ही शिक्षा को जरिया बनाया हैं,एक सशक्त हथकण्डे के रूप में शिक्षा को पूरी तरह से अपनाया है।
ये लचर शिक्षा प्रणाली के चलते अक्सर मध्यम वर्गीय परिवारों से ताल्लुकात रखनें वाले बच्चे जो उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रवेश तो पा जाते है लेकिन उनको शिक्षण शुल्क जमा करने के लिए किस हद तक परेशान किया जाता हैं उनका मानसिक शोषण किया जाता हैं और उनके साथ अभद्रतापूर्वक व्यवहार किया जाता है जिससे वह आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाता हैं और उसके और उसके परिवार वालों के सारे सपनों का अन्त हो जाता हैं।
शिक्षा जो की इस दुनिया का सबसे सशक्त और प्रभावशाली हथियार और शिक्षित होना हर मानव का जन्मसिद्ध अधिकार हैं।
भारत देश की प्रथा के अनुसार घर में बच्चों की किलकारियां गूंजते ही उसके माता-पिता कह देते हैं की मेरा बेटा बड़ा होकर डॉक्टर/इन्जीनियर बनेगा और अन्ततः वह इस बात पर अडिग रहते हैं लेकिन जब बेटे को शिक्षण संस्थानों में प्रवेश मिल जाता है तो बस एक ही बात की समस्या आती हैं की इतनी सारी शुल्क की अदायगी वह एक साथ कैसे करें क्योंकि प्रवेश पाने वाले बच्चों में से कुछ बच्चों के पिता किसान या फिर छोटे व्यवसायी या फिर उनकी आय का स्तोत्र बहुत कम होता हैं जिससे वह समय पर शुल्क नहीं दे पाते जिसकी वजह से होने वाली  तकलीफ उनके बच्चे भुगतते हैं और जब वह मानसिक प्रताड़ना को बर्दाश्त नहीं कर पाते तो वह आखिरी रास्ता के रूप में आत्महत्या या आतंकवाद को चुनते है जिससे उनके माता-पिता के सारे सपनों की बलि चढ़ जाती हैं।
सबके माता-पिता का एक ही सपना होता है की उसका बेटा/बेटी एक दिन उनके सपनों पे खरा उतर कर समाज में मेरा नाम बहुत ऊँचा करें।
लेकिन ये शिक्षा के माफियों का दिल भी नहीं पसीजता की उसको क्या परेशानी है उसको तो बस कुर्सी पे बैठ हुकूमत चलाना है और उसने हुकुम कर दिया की शिक्षण शुल्क चाहिये तो बस चाहिये अब सामने वाले को इतना विवश किया जाता हैं कि उसके पास कोई विकल्प ही नहीं बचता शिवाय आत्महत्या के।
आज शिक्षा और शिक्षा की गुणवत्ता सिर्फ पैसे पर निर्भर करती है मध्यम वर्गीय परिवार वालों का न कोई शिक्षण संस्थान साथ देता न कोई सरकार।
उच्च और निजी शिक्षण संस्थान सिर्फ और पैसों के लिये बनाये गयें जिनका मुख्य उद्देश्य शैक्षिक व्यवसाय करना हैं,न उन्हें शिक्षा की गुणवत्ता से मतलब हैं न उन्हें छात्रों के भविष्य से क्योंकि उनकी कई पीढियों के लिये ये शिक्षा बहुत बड़ा व्यवसाय और आय का साधन हो गया हैं।
बस आखिरी बात की अगर आपके अन्दर थोड़ी सी भी मानवीयता जिंदा हैं चाहें आपने कितना भी बड़ा शैक्षणिक संस्थान चला रहे हो आपका सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य शिक्षा की गुणवत्ता को बरकरार रखना होना चाहिये और शिक्षा को व्यवसाय न समझ कर आपको शिक्षा को मजबूती प्रदान करना चाहिये जिससे आनें वाले समय में शैक्षणिक गुणवत्ता में वृद्धि हो,आप शिक्षा की नींव को सशक्त करें तभी किसी के सपनें रूपी महल तैयार हो सकेगें और शिक्षा के क्षेत्र में अद्भुत सफलता मिलेगी लोंगो का विश्वास शिक्षण संस्थानों और शिक्षा के प्रति बरकरार रहेगा।
#शिवांकित तिवारी ‘शिवा’
परिचय-शिवांकित तिवारी का उपनाम ‘शिवा’ है। जन्म तारीख १ जनवरी १९९९ और जन्म स्थान-ग्राम-बिधुई खुर्द (जिला-सतना,म.प्र.)है। वर्तमान में जबलपुर (मध्यप्रदेश)में बसेरा है। मध्यप्रदेश के श्री तिवारी ने कक्षा १२वीं प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की है,और जबलपुर से आयुर्वेद चिकित्सक की पढ़ाई जारी है। विद्यार्थी के रुप में कार्यरत होकर सामाजिक गतिविधि के निमित्त कुछ मित्रों के साथ संस्था शुरू की है,जो गरीब बच्चों की पढ़ाई,प्रबंधन,असहायों को रोजगार के अवसर,गरीब बहनों के विवाह में सहयोग, बुजुर्गों को आश्रय स्थान एवं रखरखाव की जिम्मेदारी आदि कार्य में सक्रिय हैं। आपकी लेखन विधा मूलतः काव्य तथा लेख है,जबकि ग़ज़ल लेखन पर प्रयासरत हैं। भाषा ज्ञान हिन्दी का है,और यही इनका सर्वस्व है। प्रकाशन के अंतर्गत किताब का कार्य जारी है। शौकिया लेखक होकर हिन्दी से प्यार निभाने वाले शिवा की रचनाओं को कई क्षेत्रीय पत्र-पत्रिकाओं तथा ऑनलाइन पत्रिकाओं में भी स्थान मिला है। इनको प्राप्त सम्मान में-‘हिन्दी का भक्त’ सर्वोच्च सम्मान एवं ‘हिन्दुस्तान महान है’ प्रथम सम्मान प्रमुख है। यह ब्लॉग पर भी लिखते हैं। इनकी विशेष उपलब्धि-भारत भूमि में पैदा होकर माँ हिन्दी का आश्रय पाना ही है। शिवांकित तिवारी की लेखनी का उद्देश्य-बस हिन्दी को वैश्विक स्तर पर सर्वश्रेष्ठता की श्रेणी में पहला स्थान दिलाना एवं माँ हिन्दी को ही आराध्यता के साथ व्यक्त कराना है। इनके लिए प्रेरणा पुंज-माँ हिन्दी,माँ शारदे,और बड़े भाई पं. अभिलाष तिवारी है। इनकी विशेषज्ञता-प्रेरणास्पद वक्ता,युवा कवि,सूत्रधार और हास्य अभिनय में है। बात की जाए रुचि की तो,कविता,लेख,पत्र-पत्रिकाएँ पढ़ना, प्रेरणादायी व्याख्यान देना,कवि सम्मेलन में शामिल करना,और आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति पर ध्यान देना है।

matruadmin

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

जोकर

Mon Mar 11 , 2019
अपने ही तमाशे पर देखो वो मुस्कुरा रहा है। बेशर्म जोकर देखो कैसे खिलखिला रहा है।। अजीब चेहरे बनाकर सबको सर्कस में बुला रहा है। पापी पेट की खातिर बहुत उछल खुद मचा रहा है।। किसी के भी सामने अपना तमाशा दिखा रहा है। बड़ा बेगैरत है अपनी बेज्जती पर […]

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।