(वैश्विक हिंदी परिचर्चा भाग – 2)
तुच्छ राजनीतिक लाभ के लिए थरूरी आक्षेप
पूरी दुनिया में जहां भी लोकतंत्र है, सत्ता की चाह रखने वालों के बीच प्रतिद्वंद्वता, आपसी खींचतान, आरोप- प्रत्यारोप सामान्य बात है। लेकिन यह शोध का विषय है कि क्या भारत के अतिरिक्त भी कोई ऐसा देश है जहां पक्ष- विपक्ष की कटुता इतनी जहरीली हो कि अपने राजनीतिक विरोधियों की आलोचना करते हुए अपने ही देश की अस्मिता, भाषा और संस्कृति तक को अपमानित करने वाले मौजूद हैं। सर्वविदित हे कि पूर्व राजनयिक, मंत्री और वर्तमान सांसद शशि थरूर ने पिछले दिनों ट्विट किया, ‘हिन्दी, हिन्दू और हिन्दुत्व की विचारधारा देश (भारत) को बाँट रही है।’ थरूर विदेशों में पढ़़े हुए बुद्धिजीवी हैं। विचारणीय है कि ऐसा आखिर क्या हुआ कि वह ‘हिन्दी, हिन्दू और हिन्दुत्व’ को कोसने में सुख महसूस कर रहे हैं? क्या विदेश में पढ़ने या रहने से उनकी बुद्धि इतनी मलीन हो गई कि उन्हें स्मरण नहीं रहा कि हिन्दी, हिन्दू और हिन्दुत्व ने कभी किसी व्यक्ति, समाज, अथवा देश पर स्वयं को नहीं थोपा है। न किसी को अपना उपनिवेश बनाया और न ही किसी का शोषण किया। वास्तविकता तो यह है कि दुनिया भर में जब भी किसी को सताया गया तो भारत ने उसे शरण दी। उसकी भाषा और संस्कृति को अक्षुण रखने में मदद की। उसके धार्मिक विश्वास का सम्मान करते हुए उन्हें हर संभव सहायता दी। यदि हिन्दुस्तान में ऐसी सहिष्णुता न होती तो अभारतीय विश्वासों के मानने वाले कभी इतने सशक्त और सक्षम हो ही नहीं सकते थे कि ‘अलग कौम’ के नाम पर ‘बंटवारे’ की सोच भी सकते।
क्या थरूर जैसे लोग नहीं जानते या नहीं जानना चाहते कि भारत की प्रथम मस्जिद एक हिन्दू राजा ने बनवायी थी। दुनिया में यदि वास्तविक अर्थों में सहिष्णुता है तो वह भारत में ही है जहां अल्पसंख्यक कहे जाने वाले भी करोडो ंमें है। यहां जबरन धर्मान्तरण बहुसंख्यकों ने नहीं किया। भिन्न विश्वास को मानने वालों पर जजिया किसी हिन्दु राजा ने नहीं लगाया। मुट्ठी भर विदेशी आक्रांताओं के वंशजों की संख्या करोड़ों होना अगर अहिष्णुता है तो सहिष्णुता आखिर क्या है?
थरूर जैसे लोग जानबूझ कर अपने ही देश की संस्कृति को बदनाम करते है जबकि वे बखूबी जानते है कि हिन्दुत्व आज से नहीं, सदियों से ‘वसुधैव कुटुंबकम’’ और ‘सर्वधर्म सद्भाव’ का पर्याय रहा है। हालांकि निष्पक्ष इतिहासकारों ने ‘अति उदार’ व्यवहार के कारण उसकी सीमाएं लगातार सिकुडने की बात भी कही है। सबको जोड़ने वाली विचारधारा पर थरूरी आक्षेप और कुछ नहीं बल्कि स्वयं और स्वयं के दल के अप्रसंगिक हो जाने की बौखलाहट है। यह किसी विवेकशील देशभक्त की भाषा नहीं। हिन्दी, हिन्दू और हिन्दुत्व’ का सम्मान करने वाले समझते है कि ‘ थरूरों के पैरो तले की जमीन खिसक रही है वे स्वयं को चर्चा में लाने अथवा अपना महत्व प्रदर्शित करने के लिए देश की कोटिशः जनता का मनोबल तोड़ने का उपक्रम कर रहेे है।’ थरूर और उनके आका जिन्हंें बेफकूफ समझ रहे हैं या बेफकूफ बनाने का प्रयास कर रहे हैं, पूरी दुनिया उनके उस कौशल को देखा है जब उसने क्रूरों थरूरों को भूलुंठित किया है।
ऐसा नहीं कि कांग्रेसी नेता शशि थरूर भारतीय जीवन शैली और भाषाओं से परिचित न हो। वास्तव में वे जानबूझ कर भारत, भारतीयता और भारतीय विश्वास को कमजोर करना चाहते है। ऐसा करने के लिए ‘फूट डालों और राज करों’ के अपने आकाओं के पुराने दांव आजमा रहे हैं। वे जानबूढ कर भ्रम पैदा कर रहे है जबकि ‘हिंदी बांटने वाली नहीं, जोड़ने वाली’ भाषा है। इस देश का सामान्यजन अपनी मातृभाषा और हिंदी दोनो का सम्मान करता है। उसके लिए ये दोनो उसकी दो आंखों के समान है। दोनो की जरूरी। परंतु इन दोनो आंखों को लड़ा कर तीसरी आंख को सशक्त करने वालों की बेचैनी जगजाहिर है। यदि थरूर उसी अभियान को आगे बढ़ा रहे हो तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
जानते हुए भी वह यह मानने को तैयार नहीं कि विश्व में प्राचीनतम एवं सर्वाधिक समृद्ध और वैज्ञानिक भाषा संस्कृत कभी हर हिंदुस्तानी की भाषा रही है। भाषायी विकास की प्रक्रिया में हिंदी सहित लगभग सभी भारतीय भाषाओं का उद्भव हुआ। इस तरह सभी भारतीय भाषाएं सहोदर है। हिंदी केवल हिंदुओं की भाषा नहीं है, यह मुस्लिम, ईसाई, बौद्ध, जैन, सिख सहित सभी भारतीयों की भाषा है। सभी भाषा भाषियों ने इसे समृद्ध करने में अपना योगदान दिया है। स्वतंत्रता-संग्राम हो या अन्य कोई आंदोलन हिंदी की भूमिका सबको जोड़कर सफलता के द्वार पर दस्तक देने की रही है। गांधी जी ने हिन्दी को भारत की राष्ट्रभाषा के रूप में स्थापित करने के लिए अनेक प्रयास किये। क्या थरूर इतने अल्पज्ञ है कि उन्हें गांधी जी द्वारा दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा की स्थापना की जानकारी न हो। संभवत सेक्युलर रोग उन्हें बौद्धिक रूप से दिवालिया बना रहा है।
यह भी कम कष्ट की बात नहीं कि ‘स्वयं को हिन्दुत्व पेरोकार साबित करने के लिए बेचैन थरूर के दल कांग्रेस के अध्यक्ष ने हिन्दी और हिन्दुत्व के विरुद्ध विषवमन करने वाले अपने इस नेता से असंबंद्धता की जानकारी अब तक इस देश को नहीं दी। उन्हें तत्काल सामने आकर इस विभाजक अँग्रेज़ीदाँ को अपने दल से निकाल बाहर करने की घोषणा करनी चाहिए। क्योंकि मगरूर थरूर उनके भी बोझ के अतिरिक्त और कुछ नहीं है।
#डॉ. विनोद बब्बर,
उत्तम नगर नई दिल्ली