धर्म,शिक्षा और साहित्य के लिए विश्वविख्यात देश में आज प्रेम का प्रतीक माना जाने वाला वेलेंटाइन डे, भारतवर्ष के सभ्यता एवं संस्कृति के लिए किसी अभिशाप से कम नहीं है। वर्तमान युवा पीढ़ी अपने कर्तव्यों एवं जिम्मेदारियों से विमुख होते हुए अपने चरित्र का सत्यानाश रोज डे, चाॅकलेट डे, प्रपोज-डे,हग डे (गले मिलना),किश डे और अंत में वेलेंटाइन डे के चक्कर में पड़कर कर रहा है। ये वहीं आर्यावर्त है, जहां कभी श्रवण एवं मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम जैसे आज्ञाकारी पुत्र अपना पूरा जीवन मां-बाप की सेवा एवं वचनों का पालन करने में व्यतीत कर देते थे। ये वहीं हिंदुस्तान है जहां कभी राणा कुम्भा,राणा सांगा, बप्पा रावल, दाहिरसेन, पृथ्वीराज चौहान, दुर्गादास राठौड़, छत्रपति शिवाजी और महाराणा प्रताप जैसे शूरवीर योद्धाओं ने जन्म लिया। ये वहीं भारत है जहां महारानी लक्ष्मीबाई, अवंतीबाई, महारानी पद्मिनी और सुभद्रा कुमारी चौहान जैसी नारी शक्तियों ने जन्म लिया और अपने मान-सम्मान और स्वाभिमान के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। ये वहीं हिंदुस्तान है जहां हजारों वर्षों की गुलामी सहने के बाद हमारा देश इन्हीं महान शूरवीरों और सैकड़ों महान क्रांतिकारियों जैसे भगतसिंह,रामप्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आजाद, सुभाषचन्द्र बोस आदि के देशप्रेम और देशभक्ति के बदौलत आजाद है। यदि पहले की युवा पीढ़ी भी वर्तमान युवा पीढ़ी की तरह ऐसे ढोंग में पड़ी होती तो शायद हमारा देश आज भी गुलाम होता।’रिवोल्यूश्नरी एंड द ब्रिटिश राज’ में श्रीराम बक्शी लिखते हैं. “14 फ़रवरी 1931 में पंडित मदन मोहन मालवीय ने वायसराय को टेलीग्राम किया और अपील की कि भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव को दी गई फांसी की सज़ा को उम्रक़ैद की सज़ा में बदल दिया जाए.” लेकिन देश के हीं कुछ अराजक तत्व और देश के लिए धब्बा कहे जाने वाले नेहरू एवं गांधी जैसे लोगों ने इसका समर्थन नहीं किया और बाद में इसे खारिज कर दिया गया। वेलेंटाइन डे अंग्रेजों द्वारा पश्चिमी देशों से आया हुआ एक ऐसा अराजक नशा है जो देश, समाज और लोगों के चारित्रिक एवं मानसिक विकास को नष्ट करना एवं भारतीय संस्कृति को आघात पहुंचाना चाहता है। यदि इंसान सच में किसी से सच्ची मोहब्बत करता है तो उसे इजहार करने के वर्ष के कुल 365 दिन होते हैं सिर्फ वेलेंटाइन डे हीं नहीं। भारत और अमेरिका सहित दुनिया के कई देशों में वेलेंटाइन डे मनाने पर विरोध एवं प्रतिबंध होने लगे हैं। अमेरिका के 60 प्रतिशत उच्च पदों पर भारतीय मूल के निवासी काबिज हैं। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने अमेरिकी नागरिकों को सावधान किया,उनका मानना था कि भारतीय अपने मन को केन्द्रित करते हुए गहन अध्ययन करते हैं और अपने चारित्रिक एवं नैतिक मूल्यों का विकास करते हैं इसलिए आज वो हमारे देश में इतने अधिक पदों पर आसीन हैं। आज के युवाओं को अपने मन को केन्द्रित करने, अपने कर्तव्यों, जिम्मेदारियों को समझने और देश की उन्नति के लिए विज्ञान,शिक्षा एवं तकनीकी के क्षेत्र में नये अनुसंधानों की खोज करने की सख्त जरूरत है। देश के भविष्य कहे जाने वाले युवाओं को वेलेंटाइन के चक्कर में ना पड़कर अपना समय देशहित के कार्यों में, माता-पिता की सेवा में, गरीब दुखियों की सेवा में, धर्म, शिक्षा एवं साहित्य के क्षेत्र में, मानवता, इंसानियत और सार्वभौमिकता की भावना में और देश के ऐतिहासिक धरोहरों एवं संस्कृति की रक्षा करने में व्यतीत करने चाहिए। वेलेंटाइन डे पर लिखित यह मेरा लेख देश के रीढ़ की हड्डी कहे जाने वाले किसानों एवं सीमा पर तैनात जवानों को शत् शत् नमन करते हुए उनके चरणों में समर्पित। वंदे मातरम् जय हिन्द जय जवान जय किसान।।।
#मंगल प्रताप चौहान
परिचय: मंगल प्रताप चौहान जी की जन्मतिथि-२० मार्च १९९८ और जन्मस्थली सोनभद्र की पृष्ठभूमि ग्राम अक्छोर, राबर्ट्सगंज (जिला-सोनभद्र ,उप्र) है। राबर्ट्सगंज सोनभद्र के आदर्श इण्टरमीडिएट कालेज से आपने हाईस्कूल व इण्टरमीडिएट की शिक्षा लेकर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी से बी०काम व यू०जी०डी०सी०ए० की शिक्षा प्राप्त किया। ततपश्चात डी०एल०एड० करके अध्यापन के साथ साथ साहित्य क्षेत्र में आप कार्यरत हैं। इसके अलावा एनसीसी,स्काउट गाइड व एनएसएस भी आपके नाम है। आपका कार्यक्षेत्र अध्यापन, लेखन एवं साहित्यिक काव्यपाठ के साथ साथ सामाजिक कार्यकर्ता एवं समाज में व्याप्त नकारात्मक ऊर्जाओं को अपने कलम की लेखनी से उखाड़ फेंकने का पूर्ण रूप से आत्मविश्वास है।अब तक बहुत ही कम समय में आपके नाम कई कविताओं व सकारात्मक विचारों का समावेश है।अब तक आपकी दर्जनों भर रचनाएं हरियाणा, दिल्ली ,मध्यप्रदेश, मुम्बई व उत्तर प्रदेशसे प्रकाशित हो चुकी हैं।