हमारी मातृभूमि पर अनेक ज्ञानी संत हुए महान,
वेद प्रवर्तक विवेकानंद जी की अद्वितीय पहचान।
बाल्यावस्था से प्रभुदर्शन की पाली उर में आस,
गुरु माने श्रीरामकृष्ण परमहंस को धारे विश्वास।
गुरु की दी शिक्षा से ओजस्वी गुणों से युक्त हुए,
विश्व कल्याण के लिए गुरु माँ से आशीर्वाद लिए।
ठाना, विश्वपटल पर भारत का परचम फैलाने की,
शिकागो धर्म सम्मेलन में धर्म संस्कृति बताने की।
तिरस्कार से न घबराए, सत्य है सनातन समझाया,
सकारात्मकता से विश्व मैत्री का, सही अर्थ बताया।
उद्बोधन में कह भाइयों-बहनों अपनत्व को बढ़ाया,
सत्य सनातन धर्म को सब धर्मो की माता बतलाया।
गीता श्लोकों दृष्टांत से सबके मन को निर्मल किया,
प्रभु भक्ति में लीन भारत ने सब धर्मो को मान दिया।
ब्रह्माण्ड के ज्ञान से अवगत हम सदा सहिष्णु रहे,
हम अग्र हिन्सा से दूर, मानवता दर्शन माने, कहे।
हम करें सम्मान सर्वजन का, न तिरस्कार करते,
रहा विश्व से नाता, हम वसुधैव कुटुंबकम् कहते।
धर्म की राह पर चलो पर, अंधविश्वास में न पड़ो,
मानवता की राह चुन, सही कर्म की राह पकड़ो।
लक्ष्य निश्चित कर, उस पर आगे बढ़ो प्रतिदिन,
सब नवपथ का अनुसरण करें कटुता के बिन।
स्वामी विवेकानंद जी युवा शक्ति के पर्याय हुए,
हम सब उनके पदचिह्नों पर चल जीवन जीए।
#सपना सीपी साहू “स्वप्निल”
इंदौर (म.प्र.)