सूनसान होते खेत

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aashutosh kumar

जगत अपने काम काज निपटा कर ट्रेन पकड़ चुका था।आज वह पिछले छः महीने बाद अपने गाँव लौट रहा था।यहाँ परदेश में कमाकर वो गाँव में खेती करता था।अभी बरसात के सीजन चल रहे थे। इसलिए वो खेतों के बारे में सोचता हुआ ट्रेन में झपकी ले रहा था।उसके साथ चंद और लोग थे जो जगत के तरह ही परदेश कमाने आये थे और जगत के साथ ही गाँव वापस लौट रहे थे।
जगत बोला- भगत भाय! इस बार बारिस अच्छी हुई है अपना गाँव हरा भरा होगा है न ?
भगत- जरूर होगा देखो भगवान ने चाहा तो इस बार की फसल के बाद हमलोगों को परदेश आने की जरूरत नही पडेगी पर बारिस अच्छी तो हुई है जगत लेकिन बाढ़ का अंदेशा भी उतनी ही रहती है ।
जगत -शुभ बोलो भाय बाढ़ के नाम से कलेजा काँप जाता है।
इन्ही विचारों के साथ वे लोग अपने स्टेशन सुबह नौ बजे उतर गए वहाँ से सवारी लेकर अपने गाँव चल पड़े। हरे भरे खेत और बरसात का मौसम हलांकि आज आकाश साफ है पर रोड के दोनो तरफ नाले में पानी सूर्य की लालिमा पाकर चमक विखेर रहे थे हरियाली मानो उन चमको मे खो जाना चाहती हो। जगत और भगत इन नजारों को देखते हुए मन ही मन अपने गाँव की सुन्दरता को देखकर गौरव महसूस कर रहे थे।
दोनो गाँव पहुँचकर परिवार जनों से मिलने के बाद अपने अपने खेतो में चले जाते हैं और वहाँ फसल देखकर खूब खुश होते है ।शानदार फसल थी अबकी बार वाकई मे घने-घने धान के खेत पूरी हरे हरे और पानी से भरी क्यारियाँ गजब ढा रही थी।जगत और भगत शाम को घर पर बैठकर बात कर रहे थे इतने में जोर की बारिस शुरू हो जाती है और पूरी रात बरसती है।
सुबह रेडियो पर समाचार प्रसारित होता है कि नेपाल से कई लाख क्यूसेक पानी छोडा जाएगा नदी के आसपास के लोगो को एलर्ट किया जाने लगा अफरा तफरी का माहौल, उस एक प्रसारित समाचार से बन गया सभी अपने जरूरतों के सामान जुटाने लगे आज खेतों पर कोई नहीं गया।किसी तरह सुबह से शाम हुई और फिर रात पानी सचमुच छोड़ा गया कई दिनों तक दबाब को रोका गया लेकिन आखिरकार बाँघ पर पानी का दबाब ज्यादा होने से वह टूट गया और देखते ही देखते सारा गाँव और खेत जल लीला में समा गया।जगत-भगत के सपने भी इसी जल लीला की भेंट चढ गयी जगत खूब रोया लेकिन प्रकृति की इस विनाश लीला को सुनाई कैसे दे ? इस तरह जगत भगत जैसे लाखों किसानों की फसल तबाह हो गयी और परदेश की कमाई जो फसल पर लगी थी वो भी ये दोहरी बर्वादी न जाने कब-तक होती रहेगी और बाढ़ की विभीषिका झेलने को कबतक विवश होते रहेंगे आखिर वक्त रहते इन समस्याओ से निपटने के उपाय क्यों नही ढूँढे जाते मुआवजो की चंद खानापूर्ति से क्या जगत-और भगत का आत्मविश्वास लौट पाएगा ऐसे समस्याओ के जल्द निदान नही ढूँढे गये तो सभी का विश्वास खो जाएगा और गाँव सून-सान होता चला जाएगा क्योंकि जगत और भगत अब बरसात में कभी गाँव नहीं आता उसका खेतो से मोह भंग हो चुका है उसके खेत ऐसे ही पडे है कई वर्षो से उस खेत में कोई फसल नही बोयी गयी।

“आशुतोष”

नाम।                   –  आशुतोष कुमार
साहित्यक उपनाम –  आशुतोष
जन्मतिथि             –  30/101973
वर्तमान पता          – 113/77बी  
                              शास्त्रीनगर 
                              पटना  23 बिहार                  
कार्यक्षेत्र               –  जाॅब
शिक्षा                   –  ऑनर्स अर्थशास्त्र
मोबाइलव्हाट्स एप – 9852842667
प्रकाशन                 – नगण्य
सम्मान।                – नगण्य
अन्य उलब्धि          – कभ्प्यूटर आपरेटर
                                टीवी टेक्नीशियन
लेखन का उद्द्श्य   – सामाजिक जागृति

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