“याद आने लगा बचपन”

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kusum

क्या हो गया है मुझको,

लौट आया है बचपन..
सठियाई तो नहीं पर,

बरस बीते पचपन|

साठ के दरमियाँ ,
दस और आठ की नादानियाँ..
याद आ रही है,
गुदगुदा रही हैं |
वे बेर और इमली याद आ रही है,
खटटू और कैरी जिव्हा पे छा रही है..
वो चोंटियों का कसना,
वो खट्टा-मीठा रसना|
ठहठहाके हँसना,
कूदना-उछलना..
फ्राकों के घेर लेकर,
धोती-सा खोंस लेना|
ब्याहती दुल्हन को,
जी भर के ख़ूब तकना..
आँखों में सपने भरना,
बेख़ौफ़ हो के सोना|
आँखे मसल-मसल के,
आँसू की कोशिश करना..
बिन बात रूठ जाना,

फिर कोई मनाने आए..

ऐसा समझते रहना|
बिन बात के ही रोना,

और सबसे रूठ जाना…
छोटे से भाई की माँ ,
जीजी की बच्ची बनना..
बीते हुए और आने वाले,

कल को को न समझना…
आज को ही जीना|
लडकीं हूँ लड़कों पे भारी,

एक सार-सा समझना…
कंधे पे बस्ता टंगना,
साइकल पे कैंची करना…
छुप-छुप के बातें सुनना,
मतलब नहीं समझना…
घर से छूट भगना,
देर हो गई तो चोरी से..

घर में घुसना|
भाई को गोद लेकर,
खेलने निकलना …
या सबसे ही सरल था,
उस वक़्त का बहाना…
तब था पसंद बहुत ही,
माँ की साड़ी को लपेटना|
घूँघट की ओट करना,
इठला के ख़ूब चलना..
पल्लू को बाँधे रखना,
बालों को लंबा करना…
चोटी कमर तक रखना,
माथे पे बिंदी चिपकाना..
कानों के इयरिंग हिलाना,
बस खेलना और खाना…
कई काम रोके रखना|
बीते पचास सालों का,
इतिहास याद आ रहा है..
पचपन से साठ में अब,
उपहास बन रहा है ..
इस उम्र में फिर बचपन,

याद आ रहा है|
रस्सी कुदाई करना,
पॉंचे व गाँव खेलना…
चंदा मामा पुस्तक,
एक साँस ही में पढ़ना…
आटे की लोई गढ़ना,
रोटी को गोल करना…
छोटे-से चकले बेलन,
चूल्हे की ज़िद पे अड़ना…
छोटा-सा घड़ा हो,
प्यारी-सी बाल्टी हो…
पनघट अगर कोई होता,
पनिहारिन की चाह रखना…
कच्ची उमर मे कच्ची चीज़ें ही,

अच्छी लगना
उस आयु का क्या कहना
सब याद आ रहा है
आजकल मेरा बचपन
मुझे याद आ रहा है।

 

         

                                                                #कुसुम सोगानी


परिचय : श्रीमती कुसुम सोगानी जैन का जन्म १९४७ छिंदवाड़ा (म.प्र.) में हुआ है|आपने शालेय  शिक्षा प्राप्त करने के बाद बीए(इंग्लिश व अर्थशास्त्र),एमए(हिंदी साहित्य),एमए(समाजशास्त्र) व  विशारद(हिन्दी साहित्य रत्न) किया हैं| साथ ही इलाहाबाद (हिन्दी प्रचारिणी सभा) से संस्कृत मे कोविद्, सुगम गायन-वादन और झुंझुनू (राजस्थान)वि.वि.से पीएचडी जारी है|आप हिन्दी साहित्य,अंग्रेज़ी भाषा, संस्कृत,मारवाड़ी और राजस्थानी सहित गोंडवाना भाषा ही नहीं, मालवीभी लिखना-पढ़ना तथा अच्छा बोलना जानती हैं| आप आकाशवाणी इंदौर में कई कार्यक्रमों का संचालन कर चुकी हैं| यहाँ सालों तक कई कहानी प्रसारित हुई है| आपकी अभिरुचि रचनात्मक लेखन और कहानी कविता भजन तथा जैन धर्म के विषय पर लेखन में है| कई पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित होने के साथ ही आप कई सामाजिक-धार्मिक संस्थानों मे सहयोगी के रूप में सक्रिय है |आपका निवास इंदौर में है|

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2 thoughts on ““याद आने लगा बचपन”

  1. सब कुछ आंखों के सामने तैर गया
    एक पल को लगा मन बचपन सा फैलगया!!!
    नमन !

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आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।