जैसा नाम वैसा ही स्वभाव, वैसी ही आत्मीयता, वैसा ही निश्छल स्नेह, वैसी ही शांति और सरलता की प्रतिमूर्ति और सबसे बड़ी बात तो यह की ग़ज़ल के मायनेजब तो समझाते है तो लगता है खुद ग़ज़ल बोल रही है कि मुझे इस मीटर में, इस बहर में, इस रदीफ़ और इस काफिये के साथ लिखो।
हम बात कर रहे है इंदौर के खान बहादूर कम्पाउंड में रहने वाले अज़ीज़ अंसारी साहब की जो वर्ष २००२ की मार्च में आकाशवाणी इंदौर से केंद्र निदेशक के दायित्वसे सेवानिवृत हुए हैं पर उसके बाद भी अनथक, अनवरत और अबाध गति से साहित्य साधना में रत हैं। हिंदी–उर्दू की महफ़िल और अदब की एक शाम कहूँ यदिअंसारी जी को तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। लगभग १० से अधिक किताब और सैकड़ों सम्मान जिनके खाते में हो, कई वामन तो कई विराट कद को सहजस्वीकार करते, नवाचार के पक्षधर, अनम्य को सिरे से ख़ारिज करने के उपरांत हर दिन होते नव प्रयोगों को सार्थकता से अपनी ग़ज़ल, अपनी जबान और अपनेलहजे में उसी तरह शामिल करते हैं जैसे पानी में नमक या शक्कर।
७ मार्च १९४२ को मालवा की धरती इंदौर में पिता श्री ईदू अंसारी जी के घर जन्मे अज़ीज़ अंसारी जी वैसे तो एमएससी (कृषि), डिप्लोमा इन मास कम्युनिकेशनएन्ड रूरल जर्नलिस्म तक अध्ययन कर चुके हैं और बचपन से उर्दू–हिन्दी साहित्य में रूचि रखते हैं। सन १९६४ से साहित्य की जमीन पर गोष्ठियों के माध्यम सेसक्रियता की इबारत रच रहे हैं। जहाँ साहित्य के झंडाबरदार साहित्य के गलीचे को जनता के पांव के नीचे से खसकाने वाले बन रहे है और अस्ताचल की तरफबढ़वाना चाह रहे है पर ऐसे ही दौर में अंसारी जी नए जोश और उमंग के साथ नवाचार का स्वागत करते हैं।
साफगोई और किस्सों की एक किताब जो बच्चों को भी उसी ढंग से हौसला देते हैं जैसे तजुर्बेदारों या कहूँ विधा के झंडाबरदारों को टोकते हैं उनकी गलती पर।
बात जब हाइकु की हुई तो अंसारी जी कहते है कि ‘सलासी‘ जानते हो? उर्दू में सलासी भी तीन लाइन में लिखे शेर हैं जिसमें रदीफ़ भी होता है और काफिया भीमिलता है।
#डॉ.अर्पण जैन ‘अविचल’
परिचय : डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ इन्दौर (म.प्र.) से खबर हलचल न्यूज के सम्पादक हैं, और पत्रकार होने के साथ-साथ शायर और स्तंभकार भी हैं। श्री जैन ने आंचलिक पत्रकारों पर ‘मेरे आंचलिक पत्रकार’ एवं साझा काव्य संग्रह ‘मातृभाषा एक युगमंच’ आदि पुस्तक भी लिखी है। अविचल ने अपनी कविताओं के माध्यम से समाज में स्त्री की पीड़ा, परिवेश का साहस और व्यवस्थाओं के खिलाफ तंज़ को बखूबी उकेरा है। इन्होंने आलेखों में ज़्यादातर पत्रकारिता का आधार आंचलिक पत्रकारिता को ही ज़्यादा लिखा है। यह मध्यप्रदेश के धार जिले की कुक्षी तहसील में पले-बढ़े और इंदौर को अपना कर्म क्षेत्र बनाया है। बेचलर ऑफ इंजीनियरिंग (कम्प्यूटर साइंस) करने के बाद एमबीए और एम.जे.की डिग्री हासिल की एवं ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियों’ पर शोध किया है। कई पत्रकार संगठनों में राष्ट्रीय स्तर की ज़िम्मेदारियों से नवाज़े जा चुके अर्पण जैन ‘अविचल’ भारत के २१ राज्यों में अपनी टीम का संचालन कर रहे हैं। पत्रकारों के लिए बनाया गया भारत का पहला सोशल नेटवर्क और पत्रकारिता का विकीपीडिया (www.IndianReporters.com) भी जैन द्वारा ही संचालित किया जा रहा है।लेखक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं तथा देश में हिन्दी भाषा के प्रचार हेतु हस्ताक्षर बदलो अभियान, भाषा समन्वय आदि का संचालन कर रहे हैं।