सह लिया मैंने हर सितम को तेरे ,
दर्द की नज़्म को मैं गुनगुनाती रही ।
कह न पाई कभी महफ़िलों में तेरे,
लफ्ज़ से लफ्ज़ को मैं दबाती रही ।
इधर-उधर सदा तुम भटकते फिरे,
तेरे घर को मैं यूँ ही सजाती रही ।
हर वक्त मुझको तुम ठुकराते रहे ,
मैं किस्मत को यूँ ही आजमाती रही ।
जिंदगी भर बेवफा तुम समझते रहे ,
नासमझी पे तेरे मैं मुस्कुराती रही ।
दूरियां मुझसे यूँ तुम बनाते रहे ,
आहटों पर मैं तेरे पलकें बिछाती रही ।
नाम-पारस नाथ जायसवाल
साहित्यिक उपनाम – सरल
पिता-स्व0 श्री चंदेले
माता -स्व0 श्रीमती सरस्वती
वर्तमान व स्थाई पता-
ग्राम – सोहाँस
राज्य – उत्तर प्रदेश
शिक्षा – कला स्नातक , बीटीसी ,बीएड।
कार्यक्षेत्र – शिक्षक (बेसिक शिक्षा)
विधा -गद्य, गीत, छंदमुक्त,कविता ।
अन्य उपलब्धियां – समाचारपत्र ‘दैनिक वर्तमान अंकुर ‘ में कुछ कविताएं प्रकाशित ।
लेखन उद्देश्य – स्वानुभव को कविता के माध्यम से जन जन तक पहुचाना , हिंदी साहित्य में अपना अंशदान करना एवं आत्म संतुष्टि हेतु लेखन ।