शहीदों पर लरजता दिल संभालूं तो चलूं,
अश्रु उनके परिजन के छुड़ा लूं तो चलूं।
अपनों में कई रंग भाते नहीं ‘निर्झर,
सबको इक रंग में रंग लूं तो चलूं।
अबकी होली कुछ इस तरह मनाई जाए,
भ्रष्टाचार उन्मुक्तता होली में जलाया जाए।
हो रहे बदरंग रिश्ते ‘निर्झर’ इस संसार के,
प्रेम के इक रंग में सब जग को रंगाया जाए।
फिर नई सौगात ले रंगीली होली आई है,
रंगों की उमंग संग नबेली होली आई है।
टेसू भये हैं लाल,अंबर उड़ रही गुलाल,
छोड़ छल कपट मलाल संदेशा होली लाई है।
बिना खाए पान अधर यूं लाल करते हो,
बिना रंग लोगों के गुलाबी गाल करते हो।
नज़र नीची भवें तिरछी अधर हल्के लहराए,
बिना शब्दों के बतियाते ‘निर्झर’ कमाल करते हो।
#रमेश शर्मा ‘निर्झर’
परिचय : रमेश शर्मा ‘निर्झर’ चांदामेटा निवासी हैं तथा बैंक आॅफ महाराष्ट्र परासिया में सेवारत हैं। गद्य व पद्य दोनों लेखन में रुचि है। वर्तमान में श्रीमद् भागवद्गीता का पद्यानुवाद राधेश्याम धुन में पूर्ण कर चुके हैं।