नहीं छोड़ पाया अपने खिलौने का मोह वो बालमन, छीना-झपटी करते रहे घण्टों एक-दूसरे के संग। नजर मेरी टकटकी लगाए देख रही थी उनके गुन, सहसा एक किनारे जा खड़ा हुआ वह शिशु खिलौने संग। माँ बुलाती रही बाबू आ जाओ, वह अनसुनी सी करता। मोह था उसे अपने खिलौने […]
साहित्य
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ए गुलमोहर,तुझे देखकर,यादें ताजा हो आई, तेरी वो तेरी नाजुक पंखुड़ी, यादें बचपन की ले आई। झुकी डालियों से अनुरक्ति,कैसे बयां करुं बचपन की, तेरी रक्तिम आभा से जुड़ गई,स्वर्णिम यादें जीवन की। सखियों संग हँसते-गाते,कितने अनजान ज़माने थे, वो नादानी कहती है,बचपन में हम कितने इतराते थे। यौवन की दहलीज न जाने कब लांघी,हमने सकुचाते शरमाते, जाने कब […]