जब कभी मन उचटता है, तो प्रेमचंद याद आते हैं। कहीं हमीद-होरी बनकर तो, कहीं जुम्मन में दिख जाते हैं॥ संवेदना को शब्द देकर गोदान, कफ़न,गबन, नमक का दरोगा। दो बैलों की कथा व्यथित मन, को सामाजिक खुराक दे जाते हैं॥ कलम का सिपाही बन प्रेमचंद, समाज को आईना दिखाने […]