कभी छत से, गुजरो तुम गर्म क्लांत हवाओं पहर दोपहर ठहरना तुम शीतल होना देना शीतलता इतनी-सी उम्मीद, इत्मीनान रखता हूँ। प्रकृति तेरी पूजा में, अभ्यर्थना में हाथ जोड़े सर झुकाए सम्मान रखता हूँ। भारत माँ का, हिमालयo-सा मस्तक ऊँचा रहे.. ये स्वाभिमान रखता हूँ। सेवक हूँ माँ का, इतना […]