है अविरल-सी तू कोमल बोली, गठित पाट की जैसे सुंदर डोली। सरल सौम्य की सुता वास्तविक, नित्य जीविका गद् पद्य सात्विक। है यथार्थ का विश्वास मनोरथ, कई मंतव्यों से गंतव्यों तक। जैसे गमन विहार में युक्ति सूचक, वैसे युद्ध प्रहार से मुक्ति बोधक। कष्ट निवारक दिव्य परिणामक, है विश्लेषक विभक्त […]
काव्यभाषा
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